कामगार मुआवजा अधिनियम | पूर्ण विकलांगता का दावा करने के लिए शारीरिक विकलांगता नहीं, कार्यात्मक विकलांगता निर्णायक कारक: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने श्रमिक मुआवजा अधिनियम 1923 के तहत एक घायल मजदूर को मुआवजा बढ़ाते हुए दोहराया कि कार्यात्मक विकलांगता निर्धारण कारक है, न कि शारीरिक विकलांगता।
पीड़िता एक मजदूर थी, जब एक खंभा उसकी बायीं बांह पर गिर गया और उसकी नसों को नुकसान पहुंचा, जिसके कारण उसने अपनी बांह की पकड़ खो दी। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने विकलांगता का आकलन 40% किया। हाईकोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसे "पूर्ण विकलांगता" माना जाना चाहिए क्योंकि दावेदार वह काम नहीं कर सकती जो वह पहले कर रही थी।
न्यायालय ने माना कि अधिनियम की धारा 2(1) के अनुसार दावेदार पूरी तरह से विकलांग हो गया है या नहीं, इसका आकलन करने के लिए कार्यात्मक विकलांगता निर्धारक कारक है, न कि केवल शारीरिक विकलांगता।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा,
"यदि किसी दुर्घटना में हुई विकलांगता किसी श्रमिक को उन सभी कार्यों के लिए अक्षम कर देती है जो वह दुर्घटना के समय करने में सक्षम था, जिसके परिणामस्वरूप ऐसी विकलांगता होती है, तो अधिनियम की धारा 4(1)(बी) के तहत मुआवजे के पुरस्कार के प्रयोजनों के लिए विकलांगता को कुल के रूप में लिया जाएगा, भले ही चोट अधिनियम की अनुसूची I के भाग I में निर्दिष्ट न हो।"
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ एमपी हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें श्रमिक मुआवजा अदालत के आदेश के खिलाफ ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी की अपील को आंशिक रूप से अनुमति दी गई थी। हाईकोर्ट ने स्थायी विकलांगता को 100% से 40% मानते हुए अपीलकर्ता को दिए गए मुआवजे को 3,74,364 से घटाकर 1,49,745 कर दिया।
मामला
अपीलकर्ता सिम्प्लेक्स कंक्रीट कंपनी में लोडिंग/अनलोडिंग मजदूर के रूप में कार्यरत थी। ट्रक पर खंभे लादते समय खंभे उसके बाएं हाथ पर गिर गए, जिससे उसकी बांह में फ्रैक्चर हो गया और उसकी नसें क्षतिग्रस्त हो गईं। उसे स्थायी पूर्ण विकलांगता का सामना करना पड़ा और इसलिए, उसने कंपनी से मुआवजे की मांग की। कंपनी का बीमा ओरिएंटल इंश्योरेंस (प्रतिवादी 1) द्वारा किया गया था, इसलिए उसने अपीलकर्ता से उनसे मुआवजे का दावा करने का अनुरोध किया।
चूंकि कोई मुआवज़ा नहीं दिया गया, अपीलकर्ता ने कामगार मुआवज़ा अधिनियम, 1923 (अधिनियम) के प्रावधानों के तहत कामगार मुआवज़ा आयुक्त से संपर्क किया। आयुक्त के समक्ष डॉक्टर ने कहा कि एक प्रमाण पत्र जारी किया गया था जिसमें कहा गया था कि वह 50% स्थायी विकलांगता से पीड़ित है और श्रम कार्य के लिए अयोग्य है।
आयुक्त ने दर्ज किया कि अपीलकर्ता श्रम कार्य करने के लिए स्थायी रूप से अयोग्य थी जो वह दुर्घटना के समय कर रही थी। अतः पूर्णतः अशक्तता हो गयी। अधिनियम की धारा 4(1) के अनुसार 3,74,364 रुपये के मुआवजे की गणना की गई। इससे व्यथित होकर बीमा कंपनी ने अधिनियम की धारा 30 के तहत हाईकोर्ट के समक्ष अपील दायर की।
प्रक्रियात्मक पृष्ठभूमि
हाईकोर्ट ने नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम मुबासिर अहमद का हवाला देते हुए कहा कि यदि अधिनियम की अनुसूची में निर्दिष्ट नहीं की गई चोटों के कारण स्थायी विकलांगता है, तो कमाई की क्षमता का नुकसान शारीरिक विकलांगता के प्रतिशत को प्रतिस्थापित नहीं कर सकता।
हाईकोर्ट ने उसकी विकलांगता का आकलन 40% किया और उसका मुआवजा कम कर दिया। फैसले से व्यथित होकर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अनुच्छेद 136 के तहत अपील दायर की गई।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
सुप्रीम कोर्ट ने प्रताप नारायण सिंह देव बनाम श्रीनिवास सबटा मामले में 4 जजों की बेंच के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि देखने वाला असली सवाल यह है कि क्या विकलांगता के कारण व्यक्ति वह सभी काम नहीं कर सकता जो वह दुर्घटना के समय कर रहा था?
पीठ ने चनप्पा नागप्पा मुचलगोडा के मामले का संदर्भ दिया जहां डॉक्टर ने प्रमाणित किया था कि श्रमिक के पूरे शरीर में 37% विकलांगता है, और वह अब ट्रक चालक का काम नहीं कर सकता है। इस मामले में, चूंकि वह अब ड्राइवर के रूप में काम नहीं कर सकता था, जैसा कि उसने पहले किया था, उसकी कार्यात्मक विकलांगता का मूल्यांकन 100% किया गया था।
अदालत ने यह भी माना कि मुबासिर अहमद मामले पर हाईकोर्ट द्वारा गलत तरीके से भरोसा किया गया था क्योंकि उस मामले में अदालत के पास यह जांचने का कोई अवसर नहीं था कि क्या श्रमिक अब वह काम कर सकता है जो वह दुर्घटना के समय कर रहा था?
कानून के सिद्धांतों को तथ्यों पर लागू करते हुए अदालत ने कहा कि उसके बाएं हाथ की पकड़ पूरी तरह से खत्म हो गई थी। अब एक मजदूर होने के नाते जो सामग्री लोड/अनलोड करता है, उसे दोनों हाथों की आवश्यकता होती है। अदालत ने आगे कहा कि अपीलकर्ता कोई अन्य काम करने में कुशल नहीं थी, न ही मशीनों का उपयोग करके अपना काम कर सकती थी।
अदालत ने कहा कि “उसकी कार्यात्मक विकलांगता के कारण उसकी विकलांगता को पूर्ण मानकर मुआवजा देने के आयुक्त के फैसले में कोई गड़बड़ी नहीं थी। हमारे विचार में, हाईकोर्ट ने आयुक्त के आदेश को आंशिक रूप से रद्द करके और आयुक्त द्वारा मूल्यांकन के अनुसार विकलांगता को 100% के बजाय 40% आंकने में गलती की।
केस टाइटल: इंद्रा बाई बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड
साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (एससी) 543