आईपीसी की धारा 124ए की फिर से जांच और इस पर पुनर्विचार करेंगे : केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा

Update: 2022-05-09 11:05 GMT

केंद्र ने सोमवार को एक हलफनामे के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि उसने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124 ए (राजद्रोह के लिए लगने वाली धारा) की फिर से जांच करने और इस पर पुनर्विचार करने का फैसला किया है।

केंद्र सरकार का यह हलफनामा पत्रकारों, कार्यकर्ताओं, गैर सरकारी संगठनों और राजनीतिक नेताओं द्वारा दायर याचिकाओं के एक बैच में दायर किया गया, जिसमें आईपीसी की धारा 124 ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है।

केंद्र ने प्रस्तुत किया कि इस क्लाज़ के बारे में विभिन्न न्यायविदों, शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों और सामान्य रूप से नागरिकों द्वारा सार्वजनिक डोमेन में अलग-अलग विचार व्यक्त किए गए हैं।

यूनियन ऑफ इंडिया ने हलफनामे में कहा है कि यह प्रधानमंत्री की इस धारणा के अनुरूप है कि जबकि हमारे देश को आजाद हुए 75 वर्ष हो चुके हैं, वह 'औपनिवेशिक बोझ' को दूर करने की दिशा में काम करना चाहते हैं।

इस भावना में केंद्र ने प्रस्तुत किया कि उसने 2014-15 से 1500 से अधिक पुराने कानूनों को खत्म कर दिया है। इसने 25,000 से अधिक अनुपालन बोझ को भी समाप्त कर दिया है जो हमारे देश के लोगों के लिए अनावश्यक बाधा उत्पन्न कर रहे थे। हलफनामे में कहा गया है कि विभिन्न अपराध जो लोगों को बिना सोचे समझे बाधा पहुंचा रहे थे, उन्हें अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है।

"यह एक सतत प्रक्रिया है। ये ऐसे कानून और अनुपालन थे जो एक औपनिवेशिक मानसिकता को जन्म देते थे और इस प्रकार आज के भारत में उनका कोई स्थान नहीं है।"

यूनियन ऑफ इंडिया ने इस प्रकार प्रार्थना की कि न्यायालय इस धारा (आईपीसी की धारा 124 ए) की वैधता की जांच करने में एक बार फिर अपना समय नहीं लगा सकता, बल्कि एक उपयुक्त मंच के समक्ष सरकार द्वारा किए जाने वाले विचार के की प्रैक्टिस की प्रतीक्षा करने की कृपा कर सकता है, जहां इस तरह के विचार को संवैधानिक रूप से अनुमति दी गई है।

"भारत सरकार ने राजद्रोह के विषय पर व्यक्त किए जा रहे विभिन्न विचारों के बारे में पूरी तरह से संज्ञान लेते हुए और नागरिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की चिंताओं पर विचार करते हुए इस महान राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखने और संरक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध होने के कारण भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के प्रावधानों की पुन: जांच और इस पर पुनर्विचार करने का निर्णय लिया है, जो सक्षम फोरम के समक्ष ही किया जा सकता है।"

केस शीर्षक: एसजी वोम्बटकेरे बनाम भारत संघ

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