'जज के टिप्पणियों पर बवाल क्यों? टिप्पणियां आदेश नहीं हैं': बलात्कार मामलों में सीजेआई की टिप्पणियों पर बीसीआई अध्यक्ष ने कहा
बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष (बीसीआई) मनन कुमार मिश्रा (4 मार्च 2021) ने प्रेस रिलीज में कहा कि, "कुछ लोगों का अपनी व्यक्तिगत आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए न्यायाधीशों के खिलाफ बोलना एक फैशन बन गया है। यदि इस तरह की प्रवृत्ति को जारी रखने की अनुमति जाती है, तो संस्थान अपनी पवित्रता खो देगी।"
भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबड़े ने एक मामले में अग्रिम जमानत की याचिका पर सुनवाई के दौरान, उन्होंने बलात्कार के आरोपी व्यक्ति से पूछा था कि क्या वह पीड़िता से शादी करने के लिए तैयार है। उनकी इस टिप्पणी का व्यापक रूप से निंदा की गई।
बीसीआई के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की प्रत्येक टिप्पणी को इस तरह से पेश किया जा रहा है जैसे कि न्यायाधीश ने अदालत में टिप्पणी करके कुछ अपराध किया है।
"न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सीधा हमला" के रूप में वर्णित करते हुए, प्रेस रिलीज का अवलोकन किया कि,
"मुट्ठी भर राजनेता और कुछ तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता सोशल और प्रिंट मीडिया के माध्यम से न्यायाधीशों के खिलाफ भद्दी टिप्पणियां और आलोचना करके गर्व महसूस कर रहे हैं।"
राजनेता बृंदा करात और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी द्वारा सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठतम न्यायाधीश के खिलाफ आरोप लगाते हुए लिखे गए पत्र को भी अवमानना के रूप में बयान में कहा गया कि अभिव्यक्ति और बोलने की स्वतंत्रता को इस हद तक नहीं खींचा जाना चाहिए जो संस्था की छवि धूमिल और कमजोर करे।
बीसीआई की प्रेस रिलीज में कहा कि,
"न्यायाधीशों द्वारा की गई टिप्पणियां आदेश नहीं हैं और इन टिप्पणियों के कोई कानूनी मायने नहीं है, फिर जज की टिप्पणियों पर इतना बवाल क्यों हो रहा है?
बीसीआई ने अपनी प्रेस रिलीज में दावा किया है कि कुछ लोग और यहां तक कि कुछ मीडिया इस मामले के महत्वपूर्ण / प्रासंगिक तथ्यों को छिपाते हैं जो अदालत की टिप्पणियों की पृष्ठभूमि के रूप में काम करते हैं।
मामले के तथ्यों के विवरण पर बीसीआई अध्यक्ष कहा है कि मामले में अभियोजन पक्ष और अभियुक्त पक्ष के बीच यानी दोनों पक्षों के माता-पिता का शादी के लिए हस्ताक्षरित समझौता किया गया था।
आगे कहा कि, मीडिया ने लोगों के सामने के "लिखित समझौते के महत्वपूर्ण तथ्य" को नहीं लाया। प्रेस स्टेटमेंट इस सवाल का जवाब देता है कि "इसलिए, इस पृष्ठभूमि के तहत (लिखित समझौते के), यदि एक न्यायाधीश ने पार्टियों के बीच शादी के संबंध में एक प्रश्न रखा है, तो इसमें गलत क्या है?"
बीसीआई अध्यक्ष ने आगे कहा है कि जब उच्चतम न्यायालय को पता चला कि अभियुक्त ने दूसरी लड़की से शादी कर ली है तो कोर्ट ने अभियुक्त को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया।
प्रेस रिलीज में कहा कि,
"किसी पर बेवजह टिप्पणी करने से पहले, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के परिणाम की सराहना की जानी चाहिए। दुर्भाग्य से, एक विशिष्ट एजेंडा वाले कुछ प्रेरित लोग जानबूझकर इस मामले के परिणाम को छिपा रहे हैं और यहां तक कि मीडिया ने भी इस तरह से रिपोर्ट किया है, जैसे कि अदालत ने अभियुक्त को राहत दी हो।"
"महिलाओं की सुरक्षा के लिए बने कानूनों का दुरुपयोग किया जा रहा है।"
बीसीआई अवलोकन करता है कि महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित कानूनों का दुरुपयोग हो रहा है, जिसके परिणामस्वरूप निर्दोष लोगों को परेशान किया जाता है और सलाखों के पीछे डाल दिया जाता है।
आगे कहा कहा कि,
"जिस तरह से कुछ मीडियाकर्मी सार्वजनिक रूप से दुर्भावनापूर्ण अभियान शुरू कर देते हैं, वह इसे भी ज्यादा गंभीर चिंता का विषय बनाता है।"
आगे कहा कि,
"यह दावा करते हुए कि लिव इन रिलेशनशिप में यौन उत्पीड़न के संबंध में एक अन्य मामले में मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणी के खिलाफ लोगों ने सोशल मीडिया के माध्यम से जानबूझकर देश के निर्दोष लोगों को गुमराह करने की कोशिश की। बीसीआई का कहना है कि हमला (Assault), रेप नहीं हो सकता और यह लिव-इन रिलेशनशिप का मामला था।"
इस मामले में एफआईआर को रद्द करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए, सीजेआई ने पूछा था कि "जब दो लोग पति-पत्नी के रूप में रह रहे हैं, हालांकि पति क्रूर है, क्या उनके बीच हुए संभोग (Sexual Intercourse) को बलात्कार कहा जा सकता है?"
बीसीआई अध्यक्ष ने कहा कि,
"कृपया संस्थान को बदनाम करने की कोशिश न करें, उच्चतम न्यायपालिका की अदालती कार्यवाही से राजनीतिक लाभ न लें, देश आपको माफ नहीं करेगा।"
इस टिप्पणी के साथ प्रेस नोट समाप्त होता है कि,
"भारत एक विशाल देश है, इसलिए कुछ सौ लोगों का हस्ताक्षर करने वाला कदम निरर्थक और बेकार है।"