सुप्रीम कोर्ट ने फिर कहा, बचाव में कमज़ोरी को अभियोजन अपनी ताक़त नहीं बना सकता, पढ़िए यह निर्णय

सही आपराधिक सुनवाई के लिए सुनवाई से पहले सही जाँच ज़रूरी है, सही सुनवाई ऐसी जिसमें अभियोजन अदालत से कुछ भी नहीं छिपाता है और क़ानून के अनुरूप बिना किसी पक्षपात के अपने उत्तरदायितों को पूरा करता है ताकि न्याय के हित में अदालत को सही और उचित निर्णय लेने में मदद मिल सके…

Update: 2019-08-08 04:48 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि संदेह के लाभ पर अवश्य ही अमल होना चाहिए बशर्ते कि अभियोजन ने अपने मामले को इस तरह से साबित कर दिया है कि इसमें संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है। अदालत ने कहा कि बचाव में अगर कोई कमज़ोरी है तो वह अभियोजन की ताक़त नहीं बन सकता।

आनंद रामचंद्र चौगुले बनाम लक्ष्मण चौगला मामले में न्यायमूर्ति अशोक भूषण और नवीन सिन्हा की पीठ ने आरोपी के बरी किए जाने को सही ठहराया। हाईकोर्ट ने इस मामले में आरोपी को संदेह का लाभ दिया था।

इस मामले में पीठ ने कहा कि आरोपों को किसी भी संदेह से परे साबित करने का दायित्व अभियोजन पर है। इसके उलट, आरोपी को सिर्फ़ अभियोजन के मामले और उसके बचाव की संभावना को लेकर संदेह पैदा करना होता है। अदालत ने कहा,

"आरोपी को अभियोजन की तरह अपने मामले को किसी भी संदेह से परे तक साबित करने की ज़रूरत नहीं होती है। अगर आरोपी बचाव के किसी बिन्दु को सामने रखता है जो कि असंभव नहीं लगता है और ऐसा लगता है कि ऐसा होने की संभावना है, इस बचाव के पक्ष में उसके पास सबूत है तो आरोपी को इससे आगे किसी बात को साबित करने की ज़रूरत नहीं होती। संदेह के लाभ पर अमल अवश्य ही होना चाहिए बशर्ते कि अभियोजन ने अपनी बात को किसी भी संदेह की परे इसे साबित कर दिया है"।

अदालत ने आगे कहा कि यह तथ्य कि हो सकता है कि आरोपी ने सीआरपीसी की धारा 313 के तहत ख़ुद का बचाव नहीं किया है पर यह भी अभियोजन को अपनी बात को शक की किसी गुंजाइश के नहीं होने की हद तक साबित करने से नहीं बचाता। अगर बचाव पक्ष किसी बात का उत्तर नहीं दे पाता है, तो बचाव में किसी तरह की कमज़ोरी को अभियोजन का ताक़त नहीं बनाया जा सकता और वह यह दावा नहीं कर सकता कि उसे अब और कुछ साबित करने की ज़रूरत नहीं है।

अदालत ने आगे कहा कि आरोपी ने उसी घटना के बारे में जो प्राथमिकी दर्ज करवाई थी, उसकी जाँच में अभियोजन की विफलता ने उसको ज़्यादा गंभीर क्षति पहुँचाई है। हाईकोर्ट के फ़ैसले को सही ठहराते हुए पीठ ने कहा,

"सही आपराधिक सुनवाई के लिए सुनवाई से पहले सही जाँच ज़रूरी है, सही सुनवाई ऐसी जिसमें अभियोजन अदालत से कुछ भी नहीं छिपाता है और क़ानून के अनुरूप बिना किसी पक्षपात के अपने उत्तरदायितों को पूरा करता है ताकि न्याय के हित में अदालत को सही और उचित निर्णय लेने में मदद मिल सके…"।  



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