1997 उपहार त्रासदी : अंसल बंधुओं की सजा बढ़ाने की पीड़ितों की क्यूरेटिव खारिज, मामले को फिर से खोलने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार किया
1997 उपहार त्रासदी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अंसल बंधुओं को राहत देते हुए पीड़ितों की क्यूरेटिव याचिका को खारिज कर दिया है और मामले को फिर से खोलने से इनकार कर दिया है।
मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे, जस्टिस एन वी रमना और जस्टिस अरुण मिश्रा ने चेंबर में विचार कर सुशील अंसल और गोपाल अंसल की जेल की सजा बढ़ाने की मांग भी ठुकरा दी। 13 फरवरी को दिए गए इस क्यूरेटिव याचिका के फैसले में खुली अदालत में मांग भी ठुकरा दी गई है। फैसले में कहा गया है कि इस याचिका में कोई मेरिट नहीं है।
दरअसल उपहार पीड़ित एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट के फरवरी 2017 में पुनर्विचार याचिका पर दिए उस आदेश पर क्यूरेटिव याचिका दाखिल की थी जिसमें पुनर्विचार याचिका पर खुली अदालत में सुनवाई के बाद सुशील अंसल की उम्र और बीमारी के चलते जेल की सजा को माफ कर दिया था जबकि गोपाल अंसल की एक साल की सजा को बरकरार रखा था। इस फैसले के बाद अपनी बाकी बची आठ महीने की सजा को पूरा करने के लिए गोपाल अंसल ने तिहाड़ जेल में आत्मसमर्पण कर दिया था जबकि सुशील की पांच महीने की जेल की सजा को ही पर्याप्त माना गया।
इस दौरान सीबीआई ने दलील दी थी कि अदालत में अपना पक्ष रखने के लिए उसे मौका नहीं मिला जबकि पीड़ितों की ओर से कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने दोनों को केवल जुर्माना लगाकर छोड़ दिया। दलील दी गई कि देश के कानून के हिसाब से किसी अपराधी की सजा के साथ जुर्माना ठोका जा सकता है, लेकिन सजा को जुर्माने में तब्दील नहीं किया जा सकता।
गौरतलब है कि नवंबर 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुशील और गोपाल अंसल को तीन महीने के भीतर 30-30 करोड़ रुपये का जुर्माना अदा करने का निर्देश दिया था। सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने कहा था कि जुर्माना ना देने की हालत में 2 साल जेल की सजा दी जाएगी।
उल्लेखनीय है कि 1997 में हिन्दी फिल्म 'बार्डर' के प्रदर्शन के दौरान हुए इस अग्निकांड में 59 दर्शकों की मृत्यु हो गई थी और भगदड़ में 103 लोग जख्मी हुए थे।