मेडिकल लापरवाही : ट्रायल कोर्ट को आरोप तय करने से पहले मेडिकल एक्सपर्ट की रिपोर्ट की जांच करनी चाहिए, सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि मेडिकल लापरवाही के आरोपी डॉक्टर के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले एक स्वतंत्र मेडिकल एक्सपर्ट की रिपोर्ट की जांच करना महत्वपूर्ण है।
इससे पहले शीर्ष अदालत ने जैकब मैथ्यू बनाम पंजाब राज्य और अन्य (2005) 6 एससीसी 1 के मामले में आईपीसी की धारा 304 ए के तहत दंडनीय आपराधिक लापरवाही के लिए डॉक्टरों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए दिशा निर्देश दिए थे। इस मामले में कहा गया था कि
1. जब तक शिकायतकर्ता लापरवाही के आरोप की पुष्टि करने के लिए किसी अन्य सक्षम चिकित्सक द्वारा दी गई एक विश्वसनीय राय के रूप में अदालत के समक्ष प्रथम दृष्टया सबूत पेश नहीं करता है, तब तक एक निजी शिकायत पर विचार नहीं किया जा सकता है।
2. जांच अधिकारी को लापरवाही के आरोपी डॉक्टर के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले, एक स्वतंत्र और सक्षम मेडिकल राय प्राप्त करनी चाहिए, यह राय सरकारी सेवा वाले किसी ऐसे डॉक्टर से ली जानी चाहिए जो उस मेडिकल ब्रांच में प्रैक्टिस करने की योग्यता रखता हो।
3. लापरवाही के आरोपी डॉक्टर को सामान्य प्रक्रिया से गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए, जब तक कि जांच को आगे बढ़ाने के लिए या जब तक फ्लाइट रिस्क को देखते हुए उसकी गिरफ्तारी आवश्यक न हो।
तब तात्कालिक सीजेआई आर.सी. लाहोटी ने बेंच का नेतृत्व करते हुए तर्क दिया था कि
"यह सदैव माना नहीं जा सकता कि जांच अधिकारी और निजी शिकायतकर्ता को मेडिकल साइंस का ज्ञान होगा जिससे यह निर्धारित किया जा सके कि मेडिकल प्रोफेशनल आरोपी द्वारा किया गया कृत्य आईपीसी की धारा 304-ए आपराधिक कानून के दायरे में लापरवाही बरतने के विषय में है। मेडिकल प्रोफेशनल के मामले में एक बार आपराधिक प्रक्रिया शुरू की गई थी, जिसमें गंभीर शर्मिंदगी और उत्पीड़न हुआ।"
वर्तमान मामले में अपीलकर्ताओं अरुणा ने एक अन्य के साथ बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ द्वारा पारित आदेश के खिलाफ अपील की, जबकि सत्र न्यायालय ने आरोपियों को आईपीसी धारा 304 ए, आईपीसी धारा 34 के साथ पढ़ा जाए, के तहत आरोप से दोषमुक्त कर दिया था।
आरोपियों की ओर से तर्क था कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किए गए उपरोक्त निर्देशों को ध्यान में रखे बिना लागू किया गया आदेश पारित किया गया था।
गौरतलब है कि ट्रायल कोर्ट ने गवाहों की जांच के बाद आरोप तय किए थे। हालांकि, सत्र न्यायालय द्वारा उक्त आदेश को संशोधित करने की अनुमति दी गई थी, जो अपीलकर्ताओं को निर्वहन करने के लिए चली गई। डिस्चार्ज के इस आदेश पर बाद में उच्च न्यायालय के समक्ष पूछताछ की गई, जिसने डिस्चार्ज के आदेश को पलट दिया गया और मजिस्ट्रेट के आदेश को बहाल कर दिया।
यह देखते हुए कि निचली अदालतें सर्वोच्च न्यायालय के उक्त फैसले के अनुरूप इस केस में आगे नहीं बढ़ी हैं और उन्होंने किसी विशेषज्ञ से राय नहीं ली है, जस्टिस अरुण मिश्रा, विनीत सरन और एस रवींद्र भट की पीठ ने कहा,
"जैसा कि माना जाता है, इस मामले में किसी भी चिकित्सा विशेषज्ञ की जांच नहीं की गई है, हमने नीचे की अदालतों द्वारा पारित किए गए आदेशों को पलट दिया और गवाहों की जांच करने और चिकित्सा विशेषज्ञ की राय के लिए इस मामले को फिर से ट्रायल कोर्ट भेज दिया।"