आपराधिक मामले को एक राज्य से दूसरे राज्य में ट्रांसफर करने का आदेश राज्य न्यायपालिका और अभियोजन एजेंसी की विश्वसनीयता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि मुकदमे को एक मामले से दूसरे राज्य में स्थानांतरित करने का आदेश केवल असाधारण परिस्थितियों में दिया जाना चाहिए, क्योंकि इससे राज्य की न्यायपालिका और अभियोजन एजेंसी की विश्वसनीयता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने ससुराल में एक महिला की आत्महत्या से संबंधित एक मामले में मुकदमे को ट्रांसफर करने की याचिका को खारिज करते हुए ये टिप्पणी की।
शिकायतकर्ता, महिला के माता-पिता, जिन्होंने पति और उसके परिवार के खिलाफ मामला दायर किया था, ने मुकदमे को रतलाम (एमपी) से फैजाबाद (यूपी) ट्रांसफर करने की मांग की थी।
मुकदमे के ट्रांसफर की मांग करते हुए, ये कहा गया कि शिकायतकर्ता फैजाबाद के निवासी हैं और जब वे रतलाम अदालत गए तो उन्हें प्रतिवादियों से डराने-धमकाने का सामना करना पड़ा।
ट्रांसफर याचिका का विरोध करते हुए प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि संबंधित तिथि पर रतलाम अदालत में कार्यवाही वर्चुअल मोड में आयोजित की गई थी।
पीठ ने कहा,
"मात्र ये तथ्य कि मामले में कुछ गवाह फैजाबाद में रहते हैं, अपने आप में आपराधिक मामले को एक क्षेत्राधिकार से दूसरे क्षेत्र में ट्रांसफर करने का वारंट नहीं होना चाहिए और चिंता केवल एक मामले में निष्पक्ष न्याय सुनिश्चित करने के लिए होनी चाहिए।"
पीठ ने उमेश कुमार शर्मा बनाम उत्तराखंड राज्य के फैसले का भी उल्लेख किया जिसमें कहा गया था कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 406 के तहत ट्रांसफर करने की शक्ति का प्रयोग बहुत "संयमित" किया जाना चाहिए।
पीठ ने उस मामले में कहा था,
"अति संवेदनशील व्यक्ति की मात्र आशंका पर ट्रांसफर याचिका पर विचार नहीं किया जाना चाहिए।"
पीठ ने ट्रांसफर याचिका खारिज करते हुए कहा,
"ये भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि एक आपराधिक मामले को एक राज्य से दूसरे राज्य में ट्रांसफर करना न केवल राज्य की न्यायपालिका की बल्कि अभियोजन एजेंसी की भी विश्वसनीयता को दर्शाता है।“