जिला जज की परीक्षा में भाग लेने की अनुमति के लिए वकील ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया
तमिलनाडु के एक वकील ने सुप्रीम कोर्ट में एक विशेष अनुमति याचिका दायर की है, जिसमें जिला न्यायाधीश के लिए होने वाली परीक्षा में भाग लेने की अनुमति मांगी गई है। वकील ने आरक्षित श्रेणियों के लिए ऊपरी आयु सीमा में कटौती के आदेश को मद्रास हाईकोर्ट में चुनौती दी है। याचिका में 13 जनवरी को मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें न्यायालय ने परीक्षा में भाग लेने के लिए उसे अंतरिम राहत देने की प्रार्थना को खारिज कर दिया था।
याचिकाकर्ता, एन एस शिवकुमार ने कहा कि जिला न्यायाधीश चयन के लिए आरक्षित श्रेणियों (बीसी / एसटी / एससी) के लिए ऊपरी आयु सीमा 12 दिसंबर, 2019 तक 48 साल थी।
32 रिक्त पदों को भरने के लिए 12 दिसंबर को जारी अधिसूचना ने आरक्षित श्रेणियों के लिए ऊपरी आयु सीमा को 45 वर्ष तक घटा दिया। यह तमिलनाडु राज्य न्यायिक सेवा (कैडर और भर्ती) नियम, 2017 के नियम 5 (3) में संशोधन करके किया गया था।
याचिकाकर्ता के अनुसार, इस ऊपरी आयु सीमा को कम करने के लिए कोई वैध कारण नहीं हैं। उन्होंने यह भी कहा कि 2013 के बाद से सीधी भर्ती से डीजे की कोई भर्ती नहीं हुई थी। इसके परिणामस्वरूप कई व्यक्तियों को कट-ऑफ उम्र से पहले नियुक्ति पाने का अधिकार प्राप्त करने से वंचित होना पड़ा।
उन्होंने यह भी कहा कि कई अन्य राज्य, केरल, महाराष्ट्र, पंजाब और हरियाणा आदि आरक्षित श्रेणी के लिए 48 वर्ष की ऊपरी आयु सीमा का पालन करते हैं।
इस पृष्ठभूमि में, उन्होंने आयु में कमी को चुनौती देते हुए मद्रास हाईकोर्ट से संपर्क किया था। हालांकि याचिकाकर्ता की शिकायत है कि हाईकोर्ट ने "नॉन-स्पीकिंग ऑर्डर" के माध्यम से उनकी अंतरिम प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया। आवेदन जमा करने की अंतिम तिथि 30 जनवरी है।
यह कहते हुए याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट की शरण में जाना पड़ा कि
"यदि याचिकाकर्ता को आवेदन करने और परीक्षा देने की अनुमति नहीं दी जाती है, तो रिट याचिकाएं विनाशकारी हो जाएंगी और याचिकाकर्ता अपने बहुमूल्य मौलिक अधिकार से वंचित हो जाएगा। विशेषकर तब जब माननीय न्यायालय ने रिट में सामग्री की जांच करने पर सहमति व्यक्त की है।"
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