दिल्ली- NCR में यात्रा के लिए एक समान और सुसंगत नीति होनी चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2020-06-04 09:49 GMT

 सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में सभी तीन हितधारक राज्य सरकारों को एक साथ आने और केंद्र के साथ बैठक आयोजित करने का निर्देश दिया ताकि एनसीआर के भीतर व्यक्तियों के आवागमन के लिए एक आम योजना तैयार की जा सके।

यह मानते हुए कि हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली की सरकारों की विरोधाभासी नीतियों के कारण लोग पीड़ित हैं, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एमआर शाह की पीठ का मानना ​​था कि एनसीआर में नियमों के लिए केवल एक समेकित नीति होनी चाहिए ।

शुरुआत में, याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल तलवार ने विभिन्न राज्यों की विरोधाभासी नीतियों और उसके बाद लगातार फेरबदल के कारण एनसीआर में आम आदमी को होने वाली कठिनाइयों की जानकारी दी।

याचिकाकर्ता से सहमति जताते हुए जस्टिस एसके कौल ने कहा कि "एनसीआर क्षेत्र के लिए एक सुसंगत नीति होनी चाहिए।"

वकील अनिल ग्रोवर ने अदालत को सूचित किया कि हरियाणा राज्य ने सभी प्रतिबंध हटा दिए हैं। केंद्र ने हालांकि कहा कि यह राज्यों के लिए एक निर्णय है और इसमें केंद्र सरकार शामिल नहीं है।

तदनुसार,पीठ ने कहा कि वे केंद्र से राज्यों की एक बैठक बुलाने के लिए कहेंगे, ताकि वे अंतरराज्यीय आवागमन के लिए एक सामान्य कार्यक्रम खोजने का प्रयास करे।

पीठ ने आदेश दिया, 

"एक नीति, एक पथ और एक पोर्टल की आवश्यकता है। वर्तमान मामले के तथ्यों को देखते हुए, सभी राज्य अधिकारी एनसीआर क्षेत्र में अंतर-राज्य आवागमन के लिए एक सामान्य कार्यक्रम और पोर्टल का पता लगाने का प्रयास करेंगे।" 

संबंधित राज्यों को उसपर निर्णय लेने के लिए एक सप्ताह की अवधि दी गई है। सॉलिसिटर जनरल, तुषार मेहता को केंद्र से निर्देश लेने और यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया कि अदालत के आदेश के अनुपालन में बैठक बुलाई जाए।

न्यायमूर्ति भूषण ने कहा,

"सिफारिश की गई है कि एनसीआर में सभी राज्यों में मान्यता प्राप्त एक पास होना चाहिए। एसजी इस बारे में निर्देश लेंगे और एनसीआर क्षेत्र में अंतरराज्यीय परिवहन के लिए एक साझा पोर्टल तय करने के लिए एक बैठक बुलाई जाएगी।"

यह आदेश पिछले महीने की शुरुआत में ट वकील अनिंदिता मित्रा और रोहित भल्ला द्वारा दायर एक जनहित याचिका में आया है। याचिकाओं में तीनों प्रशासनों के उन निर्णयों की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है, जिनमें अनुमय गतिविधियों के व्यक्तियों के आवागमन को प्रतिबंधित किया गया है और विभिन्न राज्यों के सरकारी पोर्टलों पर इन राज्यों में से प्रत्येक के लिए आवेदन करने की आवश्यकता तय की गई है।  

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