मानहानि के मामले में पक्षकारों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए पासपोर्ट जमा कराने का आदेश दिया जा सकता है : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मानहानि के मामलों में पक्षकारों की अदालत में उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए हाईकोर्ट पासपोर्ट जमा कराने सहित उचित आदेश दे सकता है।
हाईकोर्ट में एक दीवानी मुक़दमा दायर किया गया जिसमें विवादित संपत्ति के क़ब्ज़े पर स्थाई रोक लगाए जाने की माँग की गई।
एकल जज की पीठ ने अंतरिम रोक लगाते हुए बचाव पक्ष को इस विवादित संपत्ति की बिक्री, इसे अलग करने या तीसरे पक्ष का अधिकार बनाने से रोक दिया।
वादी ने आरोप लगाया कि प्रतिवादियों ने इस आदेश का उल्लंघन किया और उसने सीपीसी के आदेश XXXIX नियम 2A के तहत और अदालत की मानहानि अधिनियम की धारा 10 और 12 के तहत मामला दायर किया।
यह देखते हुए कि प्रतिवादियों ने जो वादा किया था या बयान जारी किया था उसका पालन नहीं किया है, एकल जज की पीठ ने प्रतिवादियों से अपना पासपोर्ट जमा कराने और भारत छोड़कर जाने से रोक दिया। बाद में इस आदेश को खंडपीठ ने निरस्त कर दिया।
इस मामले की अपील सुप्रीम कोर्ट में की गई और न्यायमूर्ति आर बनुमती और एएस बोपन्ना की पीठ ने इसकी सुनवाई की। पीठ ने कहा कि खंडपीठ ने इस तरह मामले को आगे बढ़ाया जैसे एकल जज ने पासपोर्ट ज़ब्त कर लिया हो जबकि एकल जज ने प्रतिवादी को अपना पासपोर्ट अदालत में जमा कराने को कहा था।
पीठ ने खंडपीठ के आदेश को ख़ारिज कर दिया और कहा,
चूँकि कई बार अंडरटेकिंग दिए गए थे और इनका पालन नहीं हुआ इसलिए एकल जज ने प्रतिवादी नंबर 1 को अपना पासपोर्ट जमा कराने को कहा।
यह आदेश इसलिए दिया गया ताक प्रतिवादी नंबर एक अदालत में मौजूद रह सके। यह नहीं कहा जा सकता कि एकल जज ने पासपोर्ट जमा कराने का आदेश देकर अपने न्यायिक क्षेत्राधिकार का उल्लंघन किया।
अवमानना के मामले में पक्षकारों की अदालत में मौजूदगी सुनिश्चित करने के लिए अदालत को उचित आदेश देने का अधिकार है जिसमें पासपोर्ट को जमा कराने का आदेश भी शामिल है।
डेविड जूड बनाम हैना ग्रेस जूड और अन्य, 2003, 10 SCC 767 मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार को निर्देश दिया था कि वह सुनवाई के दिन बच्चे के साथ अवमानना कारक नम्बर 1 की अदालत में उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए उसका पासपोर्ट रद्द कर दे।
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