केंद्र के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट की अवमानना नोटिस पर रोक; सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को दिल्ली को 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए योजना बनाने का निर्देश दिया

Update: 2021-05-05 11:13 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के निर्देशों के अनुसार दिल्ली को प्रतिदिन 700 मीट्रिक टन मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति करने में विफलता पर अवमानना कार्रवाई के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा जारी कारण बताओ नोटिस पर रोक लगा दी।

बेंच ने कहा कि,

"न्यायिक अवमानना से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की समस्याओं का समाधान नहीं होगा। जब देश महामारी का सामना कर रहा है तब अदालत का प्रयास हितधारकों के साथ सक्रिय रूप से समस्या को हल करने का होना चाहिए"।

कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार को COVID19 संकट से निपटने के लिए दिल्ली को मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति 700 मीट्रिक टन प्रतिदिन बढ़ाने के उच्चतम न्यायालय के 30 अप्रैल के आदेश का पालन करना होगा। न्यायालय ने जोर देकर कहा कि उसके 30 अप्रैल के आदेश को केवल दिल्ली में प्रति दिन 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की आपूर्ति करने के निर्देश के रूप में व्याख्या की जा सकती है।

कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि केंद्र सारणीबद्ध चार्ट के साथ एक योजना बनाकर यह सुनिश्चित करेगा कि केंद्र 700 मीट्रिक टन मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करेगा।

योजना में यह शामिल होगा - (1) आपूर्ति के स्रोत (2) परिवहन और (3) आवश्यक व्यवस्थाएं।

पीठ के समक्ष इस योजना को कल सुबह 10.30 बजे प्रस्तुत करने का आदेश दिया गया है।

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की खंडपीठ ने केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई की।

यह ध्यान दिया जा सकता है कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार दिल्ली सरकार को 700 मीट्रिक टान प्रति दिन लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति के संबंध में आश्वासन को पूरा करने में अपनी विफलता के लिए केंद्र को फटकार लगाई थी।

जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस रेखा पल्ली की खंडपीठ ने केंद्र सरकार के अधिकारी सुमिता डावरा और पीयूष गोयल (जिन पर ऑक्सीजन आवंटन की जिम्मेदागी है) से COVID रोगियों के इलाज के लिए हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के निर्देश के अनुसार दिल्ली सरकार को आवश्यक ऑक्सीजन की आपूर्ति में विफलता के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया।

दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ केंद्र ने आज सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष सॉलिसिटर जनरल द्वारा इस मामले का उल्लेख किए जाने के बाद यह मामला न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की पीठ को सौंपा गया।

सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा को दिल्ली उच्च न्यायालय से यह कहते हुए सुना कि उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली को प्रतिदिन 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की आपूर्ति का निर्देश नहीं दिया है।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि,

"आपके एएसजी ने यह क्यों कहा कि हमने 700 मीट्रिक टन का निर्देश नहीं दिया है? समस्या यह है कि जब आपका एएसजी दिल्ली हाईकोर्ट के सामने तर्क दे रहा है तो आप क्रॉस-फायर कर रहे हैं।"

सॉलिसिटर जनरल ने जवाब दिया कि,

"मैं इसमें शामिल नहीं हो रहा हूं। मैं अपने सहयोगी के साथ खड़ा रहूंगा",

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि,

"उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद प्रयास अनिवार्य रूप से होना चाहिए। अधिकारियों को जेल में डालने या उन्हें अवमानना के लिए दोषी ठहराने से ऑक्सीजन नहीं मिलेगा। हमें समाधान खोजना होगा। हमें सुनिश्चित करना होगा कि लोगों का जीवन बच जाए।"

न्यायाधीश ने जोर दिया कि लोगों के जीवन को बचाने के लिए सहयोग की भावना होनी चाहिए।

सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि केंद्र 700 मीट्रिक टन के आंकड़े तक पहुंचने की प्रक्रिया में है और आखिरकार यह पहुंच जाएगा। उन्होंने बताया कि कल (मंगलवार) 585 मीट्रिक टन आवंटित किया गया।

एसजी ने बताया कि प्रत्येक राज्य के लिए मेडिकल ऑक्सीजन कोटा का आवंटन विशेषज्ञों द्वारा विकसित एक सूत्र के आधार पर है। प्रत्येक राज्य की मांग को अस्पतालों के बेड और COVID मामलों के आधार पर अनुमानित किया जाता है।

सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि इस फार्मूले के आधार पर दिल्ली सरकार द्वारा 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की मांग उचित नहीं है।

पीठ ने कहा कि बेड-ऑक्सीजन फॉर्मूला कोई वैज्ञानिक फॉर्मूला नहीं है।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने पूछा कि क्या ऑक्सीजन कोटा के आवंटन का फार्मूला वैज्ञानिक है। न्यायाधीश ने कहा कि सूत्र इस धारणा पर आधारित है कि 100% आईसीयू बेड को ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है और 50% गैर-आईसीयू बेड को ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि,

"अलग-अलग राज्य अलग-अलग बिंदुओं पर पहुंच रहे हैं। इसलिए आपके पास पूरे देश का सामान्य मूल्यांकन नहीं हो सकता है।"

आगे कहा कि क्या यह फॉर्मूला वास्तव में वैज्ञानिक है।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि,

"हमें इसे और अधिक वैज्ञानिक रूप से करने की आवश्यकता है।"

पीठ ने एसजी को दिल्ली को प्रतिदिन 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन प्रतिदिन आंवटन करने के उच्चतम न्यायालय के 2 मई के आदेश के बाद प्रति दिन आंवटित किए गए ऑक्सीजन की डिटेल्स मांगा।

एसजी ने बताया कि 3 मई को 433 मीट्रिक टन ऑक्सीजन और 4 मई को 585 मीट्रिक टन ऑक्सीजन आंवटित किया गया। इस बिंदु पर दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने 555 मीट्रिक टन ऑक्सीजन के आंकड़े को सही बताते हुए कहा कि इसमें दो बार काउंटिंग की गई थी।

पीठ ने एसजी से पूछा कि दिल्ली के लिए 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन सुनिश्चित करने के क्या तरीके हैं। पीठ ने कहा कि केंद्र को प्रति दिन 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की आपूर्ति का निर्देश दिया गया है, लेकिन केंद्र ने कहा है कि यह अधिक है।

COVID मामले में लिए गए स्वत: संज्ञान के एमिकस क्यूरी वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने कहा कि अस्पताल के बेड के आधार पर ऑक्सीजन की जरूरत की गणना वैज्ञानिक नहीं है क्योंकि कई लोग हैं, जिन्हें अस्पताल में भर्ती के लिए जगह नहीं मिली है और उन्हें ऑक्सीजन की आवश्यकता है।

पीठ ने सहमति जताते हुए कहा कि ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए अस्पताल के बेड का फार्मूला वैज्ञानिक नहीं है और केंद्र से इस पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया।

बेंच ने कहा कि 500 मीट्रिक टन ऑक्सीजन दिल्ली के लिए पर्याप्त नहीं है।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने सुनवाई के दौरान कहा कि जमीनी स्थिति देखने पर पता चलता है कि दिल्ली के लिए 500 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का आवंटन पर्याप्त नहीं है।

न्यायाधीश ने यह टिप्पणी तब कि जब सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि दिल्ली 500 मीट्रिक टन ऑक्सीजन के साथ प्रबंधन करने में सक्षम होगी।

एसजी ने कहा कि,

"मेरे अनुसार यदि उनके पास 500 मीट्रित टन ऑक्सीजन हैं तो वे प्रबंधन करने में सक्षम होंगे। हमारे पास सीमित ऑक्सीजन है, इसलिए हमें तर्कसंगत बनाना होगा।"

पीठ ने कहा कि वह इसे स्वीकार नहीं कर सकती।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि,

"हम नागरिकों के लिए जवाबदेह हैं। जितने लोगों के साथ आपका संपर्क है हमारा नहीं है। लेकिन मेरे कार्यालय के अधिकारी बताते हैं कि वकील रो रहे हैं, मदद मांग रहे हैं। 550 मीट्रिक टन ऑक्सीजन पर्याप्त नहीं है। यह जमीनी स्थिति पर दिख रहा है।"

क्या मुंबई मॉडल को अपनाया जा सकता है?

पीठ ने सुझाव दिया कि ऑक्सीजन की कमी के मुद्दे से निपटने के लिए मुंबई निगम द्वारा अपनाए गए मॉडल को दिल्ली में भी अपनाया जाना चाहिए।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की कि,

"बॉम्बे नगर निगम कुछ महान काम कर रहे हैं। वे क्या कर रहे हैं? वे कैसे प्रबंधन कर रहे हैं? मैं समझता हूं कि महाराष्ट्र ऑक्सीजन का उत्पादन करता है, जो कि दिल्ली नहीं कर सकता है। लेकिन अगर मुंबई जैसा महान महानगर ऐसा कर सकता है, तो दिल्ली मुंबई से कुछ सबक सीख सकता है।"

सॉलिसिटर जनरल ने सहमति व्यक्त की कि मुंबई मॉडल के तहत जब मुंबई में 92,000 कोविड मामले थे तब भी वह 275 मीट्रिक टन ऑक्सीजन के साथ मैनेज किया। यह प्रशंसनीय है।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने सुझाव दिया कि दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार दोनों के मुख्य सचिवों और स्वास्थ्य सचिवों को मुंबई के अनुभवों को समझने के लिए मुंबई निगम के आयुक्त के साथ चर्चा करनी चाहिए।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की कि,

"अगर दिल्ली और केंद्र के मुख्य सचिव और स्वास्थ्य सचिव दोनों बीएमसी आयुक्त और अतिरिक्त आयुक्त के साथ बात करते हैं और यह जान जाते हैं कि मुंबई ने कैसे काम किया और कैसे भंडारण टैंक और बफर स्टोरेज बनाया। अगर आप आज और सोमवार तक यह कर लेते हैं तो हम भी बॉम्बे मॉडल के तर्ज पर दिल्ली के लिए एक योजना बना सकते हैं। यह मॉडल दिल्ली जैसे शहर में सफल होगा।"

न्यायाधीश ने कहा कि,

"मुंबई जैसे बड़े महानगर ने क्या किया होगा और इसका अनुकरण कैसे किया होगा, हम इसका विश्लेषण चाहते हैं।"

पीठ ने सुनवाई के बाद पारित आदेश में कहा कि,

 "इस बात पर आम सहमति है कि जीएनसीटीडी और केंद्र के अधिकारियों की एक टीम अगले तीन दिनों के भीतर नगर निगम ग्रेटर मुंबई के अधिकारियों और चिकित्सा विशेषज्ञों के साथ बातचीच करेगी और ऑक्सीजन आपूर्ति बढ़ाने में के लिए अपनाए जाने वाले तौर-तरीकों से कुछ सीख लेगी। दिल्ली में मुंबई मॉडल के आधार पर उठाए गए कदमों और उनके अनुभव से कुछ सीखेगी और इसी आधार पर कदम उठाए जा सकते हैं।"

सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि उच्च न्यायालय के कारण बताओ नोटिस पर रोक लगाने का यह मतलब बिल्कुल भी नहीं कि अब इस मामले के संबंध में उच्च न्यायालय काम नहीं करेगी।

पीठ ने आदेश में कहा कि, "हम स्पष्ट करते हैं कि जो रोक लगाई गई है वह हाईकोर्ट को ऑक्सीजन के आवंटन की निगरानी रखने और इसमें कार्यवाही करने से नहीं रोकता है।"

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