सुप्रीम कोर्ट ने 1995 के दोहरे हत्याकांड मामले में पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह को उम्रकैद की सजा सुनाई

Update: 2023-09-01 06:57 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को पूर्व सांसद (एमपी) और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) नेता प्रभुनाथ सिंह को 1995 के दोहरे हत्याकांड मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई। शीर्ष अदालत ने मृतकों को 10-10 लाख रुपये का मुआवजा देने का भी निर्देश दिया। घटना में घायलों को पांच-पांच लाख रुपये देने का निर्देश दिया। ये मुआवजा बिहार सरकार और दोषी अलग-अलग देंगे। अदालत ने सिंह को आईपीसी की धारा 307 के तहत हत्या के प्रयास के अपराध में सात साल कैद की सजा भी सुनाई।

दो हफ्ते पहले अदालत ने सिंह को 1995 के दोहरे हत्याकांड में दोषी ठहराया था और निचली अदालत द्वारा दिए गए बरी करने के फैसले को पलट दिया था। पटना हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले की पुष्टि की थी। सिंह उस समय बिहार पीपुल्स पार्टी (बीपीपी) के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहा था। सिंह पर मतदान नहीं करने पर मार्च 1995 में छपरा में एक मतदान केंद्र के पास दो व्यक्तियों की हत्या करने का आरोप लगाया गया था।

जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ शुक्रवार को सिंह की सजा के सवाल पर सुनवाई कर रही थी।

आज सुनवाई में जस्टिस कौल ने कहा, ' सज़ा या उम्रकैद, दो ही विकल्प हैं।

प्रतिवादी की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट आर बसंत ने तर्क दिया कि बच्चन सिंह के मामले में यह कहा गया है कि सजा का गंभीर विकल्प तब चुना जाता है जब छोटा विकल्प निर्विवाद रूप से समाप्त हो जाता है।

जस्टिस ओक ने सीनियर एडवोकेट से पूछा, "क्या आप गंभीरता से सोचते हैं कि हम मृत्युदंड पर विचार कर रहे हैं?"

सीनियर एडवोकेट एएम सिंघवी ने तर्क दिया कि दो बरी होने से निर्दोषता का अनुमान बढ़ गया है और मामले पर पुनर्विचार लंबित है। हालांकि कोर्ट ने कहा कि पुनर्विचार पर निर्णय बाद में चैंबर में लिया जाएगा।

कोर्ट को बताया गया कि सिंह की उम्र अब 70 साल है।

जस्टिस कौल ने कहा, " बाकी तो भगवान पर निर्भर है, वह उसे जो भी दे।"

जस्टिस विक्रम नाथ ने टिप्पणी की, " इस तरह का मामला पहले कभी नहीं देखा।"

न्यायालय ने 18 अगस्त के अपने फैसले में सिंह को 01.09.2023 को सचिव, गृह विभाग, बिहार राज्य और पुलिस महानिदेशक, बिहार द्वारा न्यायालय के समक्ष पेश करने का निर्देश दिया था। हालांकि सिंह के एक आवेदन पर उसे वर्चुअल पेश होने की अनुमति देने के लिए आदेश को संशोधित किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने कड़े शब्दों में दिए गए फैसले में मुकदमे को जर्जर और जांच को "दागदार कहा, जो अभियुक्त-प्रतिवादी नंबर 2 की मनमानी को दर्शाता है, जो एक शक्तिशाली व्यक्ति है और सत्तारूढ़ पार्टी का सांसद रहा।"

2008 में पटना की एक अदालत ने सबूतों की कमी का हवाला देते हुए सिंह को बरी कर दिया था। बाद में 2012 में पटना हाईकोर्ट ने बरी किए जाने के फैसले को बरकरार रखा। परिणामस्वरूप, पीड़ितों में से एक के भाई ने बरी किए जाने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

मुकदमे में कई खामियों की ओर इशारा करते हुए शीर्ष अदालत ने मामले को " हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली का एक असाधारण दर्दनाक प्रकरण" कहा।

केस टाइटल : हरेंद्र राय बनाम बिहार राज्य, 2015 की आपराधिक अपील नंबर 1726

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