केंद्र ने SC/ST में क्रीमी लेयर को लेकर सात जजों की संविधान पीठ का गठन करने का अनुरोध किया 

Update: 2019-12-02 09:47 GMT

केंद्र ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोगों को आरक्षण लाभ के लिए क्रीमी लेयर को अलग करने पर निर्णय लेने के लिए एक बड़ी पीठ गठित करने को कहा है।

अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सोमवार को समता आंदोलन समिति की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे, जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस बीआर गवई की शीर्ष अदालत की पीठ से कहा कि जरनैल सिंह मामले में 2018 के फैसले को फिर से लागू करने के लिए 7 न्यायाधीशों की एक पीठ का गठन किया जाना चाहिए, जिन्होंने सरकारी नौकरियों में प्रोन्नति में आरक्षण के लिए SC / ST समुदायों पर क्रीमी लेयर का सिद्धांत लागू किया है ।हालांकि पीठ ने कहा कि वो इस मुद्दे पर दो सप्ताह के बाद सुनवाई करेगी।

दरअसल 2018 के फैसले के केंद्र में 12 साल पहले दिया गया एक निर्णय था। 2006 के इस फैसले ने प्रभावी रूप से यह निहित किया था कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों को गारंटीकृत पदोन्नति तभी मिल सकती है जब सरकार इसके कारणों को प्रदर्शित करने के लिए डेटा प्रस्तुत करे।

 सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी बेंच के अनुरोध को ठुकरा दिया था 

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 2006 के फैसले पर विचार करने के लिए एक बड़ी बेंच के अनुरोध को ठुकरा दिया था, लेकिन फैसला सुनाया कि समुदायों को सकारात्मक कार्रवाई की जरूरत दिखाने के लिए "मात्रात्मक डेटा" प्रदान करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

सरकार ने SC और ST के लिए पदोन्नति में कोटा बहाल करने का पुरजोर समर्थन किया है और दलील दी है कि इन समुदायों को वर्षों से सामाजिक असमानताओं का सामना करना पड़ा और यह माना जाना चाहिए कि वे सार्वजनिक सेवाओं में पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए अल्प विकसित समुदाय बने हुए हैं।

'क्रीमी लेयर' शब्द का इस्तेमाल मंडल आयोग के प्रावधानों के अनुसार आरक्षण के लिए अयोग्य अन्य पिछड़े वर्गों के बीच बेहतर व्यवहार करने वाले व्यक्तियों के लिए किया जाता है। केंद्र इस सिद्धांत को एससी और एसटी के लिए कोटा के राष्ट्रपति के आदेश पर बढ़ाने के खिलाफ है ।

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