सुप्रीम कोर्ट ने वर्चुअल कोर्ट की सुनवाई को मौलिक अधिकार घोषित करने की याचिका पर तत्काल लिस्टिंग से इनकार किया

Update: 2022-04-29 10:09 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को वर्चुअल कोर्ट की सुनवाई एक मौलिक अधिकार घोषित करने की मांग वाली याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया।

जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने 06.09.2021 को रिट पर नोटिस जारी किया था, जिसमें सुनवाई के हाइब्रिड मोड बनाए रखने की मांग की गई थी क्योंकि यह एक्सेस के अधिकार को बढ़ाता है।

जस्टिस राव की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा ने इस मामले का उल्लेख किया। उन्होंने प्रस्तुत किया कि यह देखते हुए कि COVID -19 मामले बढ़ रहे हैं, मामले को सुप्रीम कोर्ट द्वारा तत्काल सुनवाई की आवश्यकता है।

बेंच ने कहा कि तुरन्त सुनवाई की कोई आवश्यकता नहीं है। हालांकि यह विचार है कि अगर भविष्य में स्थिति और बिगड़ती है तो अदालत उसी के अनुसार फैसला करेगी।

जस्टिस राव ने माना,

"और भी जरूरी मामले हैं। लोग जेल में हैं। जमानत के मामले हैं। जुलाई में सूचीबद्ध होंगे।"

याचिका "ऑल इंडिया एसोसिएशन ऑफ ज्यूरिस्ट्स" और लाइव लॉ के लीगल रिपोर्टर स्पर्श उपाध्याय नामक वकीलों के एक संगठन द्वारा दायर की गई थी, जिसमें उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें हाइब्रिड विकल्प के बिना फिज़िकल सुनवाई पूरी करने के लिए वापस किया गया था।

यह तर्क दिया गया था कि उत्तराखंड, बॉम्बे, मध्य प्रदेश और केरल के हाईकोर्ट वर्चुअल मोड के माध्यम से मामलों में भाग लेने के लिए जॉइनिंग लिंक प्रदान नहीं कर रहे थे।

याचिका में तर्क दिया गया कि वर्चुअल मोड के माध्यम से मामलों की सुनवाई की सुविधा तक पहुंच से इनकार करना भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 के तहत मौलिक अधिकारों से वंचित करने जैसा है।

केस शीर्षक : ऑल इंडिया एसोसिएशन ऑफ ज्यूरिस्ट्स और एक अन्य बनाम उत्तराखंड हाईकोर्ट और अन्य

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