सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाईकोर्ट में फाइलिंग प्रक्रिया और नामकरण में एकरूपता की मांग करने वाली जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार किया
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें देश के सभी हाईकोर्ट को "समान न्यायिक संहिता" अपनाने के लिए उचित कदम उठाने का निर्देश देने की मांग की गई थी। मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित और जस्टिस रवींद्र भट की पीठ ने मामले की सुनवाई की और इसे वापस लेने के रूप में खारिज कर दिया गया।
याचिका में रजिस्ट्र्रेशन की प्रक्रिया में एकरूपता, सामान्य न्यायिक शर्तों के उपयोग, वाक्यांशों और संक्षिप्त रूपों और कोर्ट फीस के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी।
याचिका मे6 कहा गया कि शब्दावली में भारी अंतर न केवल कई राज्यों के उच्च न्यायालयों में बल्कि एक ही उच्च न्यायालय की पीठों के भीतर भी मौजूद है। याचिका ने राजस्थान हाईकोर्ट का एक उदाहरण दिया जिसमें दो बेंच हैं और दोनों, जोधपुर बेंच और जयपुर बेंच में अलग-अलग शब्दावली अपनाई गई है।
याचिका में कहा गया है कि इससे नागरिकों को चोट लगी क्योंकि समान प्रकार के मामलों के लिए मांगी गई कोर्ट फीस अलग अलग थी। याचिका में प्रस्तुत किया गया कि न्यायिक समानता संवैधानिक अधिकार का मामला है और अदालतों के अधिकार क्षेत्र के आधार पर भेदभाव भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
जस्टिस रवींद्र भट ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन को बीच में रोकते हुए कहा-
" क्या याचिकाकर्ता को पता है कि लगभग 13 से 14 साल पहले इसी बात ने मुख्य न्यायाधीशों के सम्मेलन का ध्यान आकर्षित किया था। प्रस्ताव किए गए, कुछ अदालतों ने इसे लागू किया, अन्य उच्च न्यायालयों ने इनकार कर दिया ... यह एक मुद्दा है लेकिन हम इसे 32 जनहित याचिका के माध्यम से लागू कैसे करें? मिस्टर शंकरनारायणन, आप संविधान की योजना जानते हैं। हाईकोर्ट में वे भी जानते हैं। क्या किया जा सकता है, क्या नहीं किया जा सकता है या शायद क्या किया जाना चाहिए। "
सीजेआई यूयू ललित ने कहा-
" क्या इस पर अनुच्छेद 32 के तहत विचार किया जा सकता है? क्या सभी राज्यों का रोल कॉल यहां सभी को बुलाया जाएगा? "
इसके बाद जस्टिस भट ने लंबी दलीलों पर नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि-
"यदि आप मुझसे पूछते हैं कि तत्काल क्या करने की आवश्यकता है तो यह लंबी दलीलों में कटौती करना होगा। आप सभी दलीलें पेश करते हैं, यह ए से जेड नहीं है, कभी-कभी यह जेडजेडजेड है। आपको इस प्रवृत्ति को कम करना होगा।"
जस्टिस रवींद्र भट ने लिखित लंबी दलीलों की स्थिति पर टिप्पणी करते हुए मौखिक रूप से टिप्पणी की कि अदालत में दायर किसी भी विशेष अनुमति याचिका पर एक पेज की लिमिट हो सकती है।
उन्होंने कहा कि-
"आगे बढ़ते हुए क्या हम एसएलपी के लिए एक पेज की सीमा पर सहमत हो सकते हैं? तारीखों की सूची चार पेज से अधिक नहीं होनी चाहिए। सिनॉप्सिस तीन पैरा से अधिक नहीं होना चाहिए। क्या हम न्यायिक आदेश दे सकते हैं?"
इसके साथ ही पीठ ने याचिकाकर्ता से याचिका वापस लेने को कहा। तदनुसार जनहित याचिका को वापस लिए जाने के रूप में खारिज कर दिया गया।
केस टाइटल : अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ और अन्य