गिरफ्तारी में अरनेश कुमार मामले में दी गई गाइडलाइंस का पालन करने के लिए पुलिस को दिशा निर्देश देने की मांग करने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इनकार किया
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें यह सुनिश्चित करने के लिए दिशा-निर्देश देने की मांग की गई थी कि पुलिस गिरफ्तारी करते समय सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए 'अर्नेश कुमार मामले के फैसले' में निर्धारित दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन करे।
एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण रिपोर्ट का हवाला देते हुए, कानून शोधकर्ताओं अमेया बोकिल और सुरजना बेज द्वारा दायर जनहित याचिका में कहा गया कि लॉकडाउन अवधि के दौरान पुलिस द्वारा की गई अंधाधुंध गिरफ्तारियों के दौरान 'अर्नेश कुमार मामले' के फैसले की अनदेखी की गई जिससे जेलों में विचाराधीन कैदियों की संख्यां में भारी बढ़ोतरी हुई।
इससे COVID-19 महामारी के बीच आपातकालीन पैरोल या अंतरिम जमानत देने के लिए सुप्रीम कोर्ट और राज्यों की उच्चाधिकार प्राप्त समितियों द्वारा जेल में कैदियों की संख्यां कम करने के प्रयासों को आघात पहुंचा।
गुरुवार को जब इस मामले को उठाया गया, तो भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ताओं के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता डॉक्टर कॉलिन गोंसाल्विस को बताया कि रिट याचिका में प्रार्थनाएं व्यापक और सामान्य हैं।
डॉक्टर गोंसाल्वेस ने राष्ट्रीय सर्वेक्षण रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि याचिका ने उल्लंघन के विशिष्ट उदाहरणों को उठाया है।
वरिष्ठ वकील ने प्रस्तुत किया कि पुलिस ने महामारी के दौरान छोटे अपराधों के लिए लोगों को जेल में डाल दिया, जबकि अरनेश कुमार मामले में कहा कि उन मामलों में असाधारण गिरफ्तारी होनी चाहिए जिन मामलों में सजा का प्रावधान सात साल से कम है।
मुख्य न्यायाधीश ने सुझाव दिया,
"यदि गिरफ्तारी आदेश (अर्नेश कुमार) के उल्लंघन में है तो आप अवमानना का मामला दर्ज करें।"
हालाँकि डॉ. गोंसाल्वेस ने यह कहते हुए पीठ को मनाने की कोशिश की कि याचिका ने विशिष्ट उदाहरणों को उजागर किया है, फिर भी बेंच ने इस मामले पर विचार नहीं किया।
बेंच ने वरिष्ठ वकील से कहा,
"आप ठोस तथ्यों के साथ मामला दर्ज करते हैं। यह याचिका वापस ली जानी चाहिए।"
तदनुसार, याचिका को नए सिरे से दायर करने की स्वतंत्रता के साथ वापस लिया गया।