हाईकोर्ट ने न्यायिक अधिकारी को कहा 'लापरवाह', सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई से किया इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश में दखल देने से इनकार किया, जिसमें एक न्यायिक अधिकारी के आचरण पर प्रतिकूल टिप्पणी की गई। उस अधिकारी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि आरोपी ने जमानत मांगते समय पहले के निर्देशों का पालन नहीं किया।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की बेंच न्यायिक अधिकारी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा जमानत याचिका से निपटने के तरीके पर की गई प्रतिकूल टिप्पणियों को चुनौती दी गई।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में अधिकारी के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी करते हुए उसे 'लापरवाह' कहा है।
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि आरोपी को पहले जमानत नहीं मिली है।
जस्टिस बागची ने बीच में टोकते हुए कहा कि अधिकारी ने जमानत याचिका खारिज करने के बजाय आरोपी के 'अस्पष्ट बयान' को नज़रअंदाज़ कर दिया।
आगे कहा गया,
"यहीं पर आपकी लापरवाही सामने आती है। 2007 में हाईकोर्ट के निर्देश के अनुसार याचिकाकर्ता को पिछली अर्जियों के बारे में घोषणा करनी है और उसने ऐसा नहीं किया। एक अस्पष्ट बयान दिया गया, आपने उसे नज़रअंदाज़ किया और सुनवाई आगे बढ़ा दी।"
वकील ने जवाब दिया कि आरोपी ने गलत जानकारी दी।
जस्टिस बागची ने तब कहा कि अधिकारी यह पता लगाने में विफल रहा कि हाईकोर्ट द्वारा 2007 में पारित पिछले आदेश का पालन किया गया या नहीं, जिसमें आरोपी को पिछले आदेश पेश करने के लिए कहा गया।
आगे कहा गया,
"आपको उसी आधार पर आवेदन खारिज कर देना चाहिए था....आप तथ्यों का पता लगाने की भूमिका में नहीं हैं - आपको यह देखना है कि 10.7.2007 के निर्देश का पालन किया गया या नहीं और यदि याचिका नियमों के अनुसार नहीं है तो आपको उसी आधार पर इसे खारिज कर देना चाहिए था।"
जब वकील ने दोहराया कि आदेश में अधिकारी को 'लापरवाह' कहा गया, तो जस्टिस बागची ने जवाब दिया कि "हमें भी लगता है कि वह लापरवाह है"।
वकील ने तर्क दिया कि अधिकारी ने हाईकोर्ट के सामने एक स्पष्टीकरण दिया, जिसमें कहा गया कि ट्रायल कोर्ट के आदेश नहीं मिले और आरोपी ने भी जमानत याचिका खारिज होने की पिछली बात छिपाई।
जस्टिस बागची ने जवाब दिया,
"स्वाभाविक रूप से आरोपी छिपाएगा, यह जज ही तय करेंगे कि यह नियमों के अनुसार है या नहीं....हमें इस बात से कोई मतलब नहीं है कि आप गेटकीपर हों; जब तक वह घोषणा नहीं हो जाती, आप एप्लीकेशन की सुनवाई नहीं होने देंगे...खुद को (अस्पष्ट) बनाने के लिए यह लापरवाही है, अगर आप जानबूझकर गलत पढ़ते हैं तो यह भ्रष्टाचार का मामला है - और यहीं पर जज फर्क करते हैं। यह कर्तव्य में लापरवाही का मामला है।"
सीजेआई ने भी इसमें जोड़ते हुए कहा,
"और उस हद तक फायदा दिया गया।"
इसके बाद बेंच ने याचिका को वापस ले लिया गया मानकर खारिज कर दिया और याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट जाने की स्वतंत्रता दी।