J&K में प्रतिबंध हटाने और नेताओं की रिहाई की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने जल्द सुनवाई से इनकार किया
सुप्रीम कोर्ट ने एक्टिविस्ट तहसीन पूनावाला की उस याचिका पर जल्द सुनवाई से इनकार कर दिया जिसमें जम्मू और कश्मीर में केंद्र सरकार द्वारा संवैधानिक अधिकारों के घोर उल्लंघन का आरोप लगाया गया है।
गुरुवार को जस्टिस एनवी रमना से जल्द सुनवाई का अनुरोध करते हुए कहा गया कि कश्मीर में सब कुछ ठप है और इमरजेंसी सेवाएं भी बाधित हैं। लेकिन पीठ ने कहा कि इस केस को लेकर वो मुख्य न्यायाधीश के पास जाएं।
दरअसल याचिका में आरोप लगाया गया है कि जम्मू-कश्मीर के संबंध में भारत सरकार द्वारा पेश किए गए नवीनतम संवैधानिक संशोधनों की पृष्ठभूमि में 4.08.2019 से ही राज्य में अघोषित कर्फ्यू है, फोन सेवाओं और इंटरनेट को बंद किया गया है और समाचार चैनलों पर भी रोक है।
आगे आरोप लगाया गया है कि जम्मू और कश्मीर के नागरिकों की स्वास्थ्य, शैक्षणिक संस्थानों, बैंकों, सार्वजनिक कार्यालयों, खाद्य-सब्जियों और राशन आपूर्ति प्रतिष्ठानों जैसी बुनियादी आवश्यकताओं तक पहुंच भी वर्जित है। यह सब भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 को निलंबित करने के समान है और पूरी तरह अवैध है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि अलगाववादी नेताओं की गिरफ्तारी तो उचित थी लेकिन जम्मू-कश्मीर की मुख्यधारा के राजनीतिक नेताओं की गिरफ्तारी, जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व केंद्रीय मंत्री, पूर्व विधायक और राजनीतिक कार्यकर्ता शामिल हैं, वो मनमानी है। याचिकाकर्ता ने अदालत से राज्य में कर्फ्यू और अन्य सभी प्रतिगामी उपायों को वापस लेने की मांग की है जिसमें राज्य में फोन लाइन, इंटरनेट और समाचार चैनलों को अवरुद्ध करना शामिल है।
इसके अलावा उन सभी राजनीतिक नेताओं की तत्काल रिहाई की भी मांग की गई है जिन्हें अवैध हिरासत में लिया गया हा। जम्मू-कश्मीर का दौरा करने और जमीनी स्थिति का पता लगाने और स्टेटस रिपोर्ट तैयार कर कोर्ट में दाखिल करने के लिएएक न्यायिक आयोग के गठन का अनुरोध किया गया है।