सुप्रीम कोर्ट ने प्लास्टर ऑफ पेरिस वाली गणेश मूर्तियों की बिक्री पर रोक लगाने वाले मद्रास हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार किया
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (18 सितंबर) को मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिसमें तमिलनाडु में प्लास्टर ऑफ पेरिस युक्त गणेश मूर्तियों की बिक्री की अनुमति नहीं दी गई थी।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने मद्रास हाईकोर्ट की खंडपीठ के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। मद्रास हाईकोर्ट की खंडपीठ ने प्लास्टर ऑफ पेरिस का उपयोग करके बनाई गई गणेश मूर्तियों की बिक्री की अनुमति देने वाले एकल न्यायाधीश के आदेश पर रोक लगा दी थी।
मामले का तत्काल उल्लेख सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान ने किया। उन्होंने पीठ को अवगत कराया कि एकल न्यायाधीश ने माना था कि मूर्तियों के निर्माण पर रोक नहीं लगाई जा सकती और प्रतिबंध केवल प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियों के विसर्जन पर है।
हालांकि याचिका को आज सूचीबद्ध नहीं किया गया था, लेकिन पीठ ने तात्कालिकता (कल गणेश चतुर्थी मनाई जाएगी) को देखते हुए इसे बोर्ड के अंत में लेने पर सहमति व्यक्त की।
श्याम दीवान ने कहा कि याचिकाकर्ता एक कारीगर है जो वर्षों से मूर्तियां बना रहा है। उन्होंने बताया कि शुक्रवार को पुलिस ने मूर्तियों की बिक्री पर रोक लगा दी। इसके बाद याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट की मदुरै खंडपीठ का दरवाजा खटखटाया, जिसने शनिवार को आयोजित एक सुनवाई में कहा कि ऐसी मूर्तियों की बिक्री नहीं रोकी जा सकती और केवल जलाशयों में उनके विसर्जन को रोका जा सकता है।
एकल पीठ के इस फैसले पर रविवार को विशेष सुनवाई आयोजित कर खंडपीठ ने रोक लगा दी।
दीवान ने कहा कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की गाइडलाइन सिर्फ विसर्जन को लेकर है।
तमिलनाडु के एडिशनल एडवोकेट जनरल, अमित आनंद तिवारी ने कहा कि सीपीसीबी दिशानिर्देशों ने प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियों के निर्माण पर भी रोक लगा दी है और दिशानिर्देशों में कहा गया है कि पर्यावरण के अनुकूल सामग्री से बनी मूर्तियों को भी निजी पानी के टैंकों में विसर्जित किया जाना चाहिए।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने मामले को खारिज करने से पहले दीवान से कहा, "आप प्राकृतिक मिट्टी का उपयोग कर सकते थे, क्षमा करें। इसे खारिज किया जाता है।"
इससे पहले, जब सुबह मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने का उल्लेख किया गया तो सीजेआई चंद्रचूड़ ने पूछा कि अगर प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियों का विसर्जन नहीं किया जा सकता है तो लोग उनका क्या करेंगे।
मामले की पृष्ठभूमि
मदुरै पीठ के जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने शनिवार (16.09.2023) को कहा था कि प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी विनायक मूर्तियों की बिक्री को प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता, लेकिन जल निकायों में उनके विसर्जन को प्रतिबंधित किया जा सकता है। इस प्रकार एकल न्यायाधीश ने कारीगरों को प्लास्टर ऑफ पेरिस का उपयोग करके बनाई गई गणेश मूर्तियों को एक रजिस्टर में सभी खरीदारों का विवरण रखकर बेचने की अनुमति दी थी। अदालत ने विवरण रखने के लिए इसलिए कहा जिससे बाद में इसके आधार पर अधिकारियों द्वारा निरीक्षण किया जा सके।
एकल न्यायाधीश ने फैसला सुनाया था कि कारीगर अपने सामान बेचने का हकदार है और यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19(1)(जी) के तहत गारंटीकृत है। उन्होंने यह भी कहा था कि बिक्री को रोकना मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा। इसके अलावा यदि मूर्तियां पर्यावरण-अनुकूल हैं तो इसके निर्माण और बिक्री को रोका नहीं जा सकता और यह एक अवैधता होगी जिसके लिए अधिकारियों को जवाब देना होगा।
जस्टिस एसएस सुंदर और जस्टिस भरत चक्रवर्ती की खंडपीठ ने हालांकि रविवार (17.09.2023) को एक विशेष सुनवाई में इस आदेश पर रोक लगा दी। पीठ ने कहा कि एकल न्यायाधीश के आदेश को कायम नहीं रखा जा सकता क्योंकि पूजा की जाने वाली प्रत्येक विनायक मूर्ति को विसर्जित करना होगा। पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि मूर्तियां पारंपरिक रूप से मिट्टी का उपयोग करके बनाई जाती हैं और कहा कि प्रतिबंध केवल प्लास्टर ऑफ पेरिस के उपयोग के संबंध में है।