रामसेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग वाली डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी किया
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को पूर्व राज्यसभा सांसद डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी की जनहित याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया। इस याचिका में रामसेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने और भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण व भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से उसका सर्वे कराने की मांग की गई।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने यह आदेश पारित किया। सुनवाई के दौरान डॉ. स्वामी की ओर से सीनियर एडवोकेट विभा मखीजा ने पैरवी की।
याचिका में कहा गया कि केंद्र सरकार का संवैधानिक दायित्व है कि वह रामसेतु को किसी भी प्रकार के दुरुपयोग, प्रदूषण और अपवित्रीकरण से सुरक्षित रखे। डॉ. स्वामी ने तर्क दिया कि यह स्थल केवल एक पुरातात्विक धरोहर ही नहीं बल्कि करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है। उन्होंने यह भी कहा कि वर्षों से लंबित इस मुद्दे पर केंद्र ने कोई ठोस निर्णय नहीं लिया है, जबकि उनकी ओर से 27 जनवरी 2023 और 13 मई 2025 को प्रतिनिधित्व प्रस्तुत किया जा चुका है।
गौरतलब है कि डॉ. स्वामी ने पहली बार 2007 में सेतु समुद्र्रम परियोजना के खिलाफ दायर याचिका में इस मुद्दे को उठाया था। इस परियोजना के तहत 83 किलोमीटर लंबी चैनल बनाकर मन्नार और पाक जलडमरूमध्य को जोड़े जाने का प्रस्ताव था, जिसके लिए बड़े पैमाने पर ड्रेजिंग की जानी थी। आशंका जताई गई कि इस प्रक्रिया से रामसेतु को गंभीर क्षति पहुंचेगी। जनवरी, 2023 में भी सुप्रीम कोर्ट में इस विषय पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया कि रामसेतु को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने की प्रक्रिया संस्कृति मंत्रालय में विचाराधीन है।
रामसेतु को लेकर विवाद वर्षों से चला आ रहा है। यह पुल वास्तव में चूना पत्थर के टापुओं की एक श्रृंखला है, जो तमिलनाडु के पंबन द्वीप से श्रीलंका के मन्नार द्वीप तक फैली हुई। धार्मिक ग्रंथ रामायण में इसका उल्लेख मिलता है कि भगवान राम ने अपनी सेना के साथ लंका पहुँचने के लिए इस सेतु का निर्माण करवाया था। इसे लेकर आज भी लाखों श्रद्धालु इसे पवित्र तीर्थ मानते हैं।
डॉ. स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि वह केंद्र सरकार को स्पष्ट समयसीमा के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दे। अब इस याचिका पर आगे की सुनवाई निर्धारित की जाएगी।