सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में लोक अभियोजकों के रूप में पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में लोक अभियोजक के रूप में पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने केंद्र और जम्मू-कश्मीर प्रशासन से जवाब मांगा है।
मामले की अगली सुनवाई 20 मार्च को होगी।
अमित पठानिया की ओर से दायर याचिका जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट द्वारा 2019 में सरकार के एक फैसले के बारे में दिए गए फैसले को चुनौती देती है, जिसमें जम्मू-कश्मीर पुलिस के व्यक्तियों को मिलाकर एक अलग अभियोजन सेवा बनाकर "अभियोजन निदेशालय" की स्थापना की गई थी और उन्हें उप निदेशक/ लोक अभियोजक/सहायक लोक अभियोजक इत्यादि नियुक्त किया गया है।
याचिका में कहा गया है कि यह दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 24, 25 और 25ए का उल्लंघन है, जो जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के बाद यूटी में लागू है और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निहित निष्पक्ष सुनवाई की भावना के खिलाफ है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि उत्तरदाताओं ने यूटी में सीआरपीसी के लागू होने से एक दिन पहले गैरकानूनी, असंवैधानिक और मनमाने तरीके से अपनी शक्तियों का प्रयोग किया।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि केवल 7 साल से अधिक प्रैक्टिस करने वाले वकील को ही लोक अभियोजक नियुक्त किया जा सकता है।
बेंच ने पूछा,
"इसमें गलत क्या है?"
वकील ने कहा,
“पुलिस अभियोजकों को ‘वकील’ नहीं कहा जा सकता है। एक सरकारी वकील होने के लिए, आपको एक वकील होने की आवश्यकता है।"
उन्होंने कहा कि जब ये पुलिस अधिकारी पुलिस ड्यूटी में शामिल होते हैं, तो वे वकील नहीं रह जाते हैं।
लोक अभियोजकों को सत्र न्यायालयों में अनुभव होना चाहिए। उन्होंने तर्क दिया कि इन लोगों के पास मजिस्ट्रेटी अदालतों का अनुभव है।
बेंच ने कहा,
“लेकिन वे समान कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं।“
वकील ने कहा,
"फिर वे बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स के नियम 49 से प्रभावित होंगे।"
कुछ ही देर में कोर्ट ने नोटिस जारी कर दिया।
याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट अनुपम रैना, एपी सिंह और सुनंदो राहा पेश हुए।
केस टाइटल: अमित पठानिया बनाम भारत संघ | एसएलपी (सी) संख्या 24100/2022 XVI-ए