वर्ष 2013 में कांग्रेसी नेताओं पर माओवादी हमला- सुप्रीम कोर्ट ने बड़े षड्यंत्र के आरोपों की जांच के लिए छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा दर्ज नई एफआईआर को चुनौती देने वाली एनआईए की याचिका पर नोटिस जारी किया

Update: 2022-09-20 04:30 GMT
सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा दायर उस अपील पर नोटिस जारी किया है, जिसमें वर्ष 2013 के माओवादी हमले में बड़ी राजनीतिक साजिश के आरोपों की जांच करने के लिए छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा वर्ष 2020 में दर्ज की गई एक नई एफआईआर को चुनौती दी गई है। गौरतलब है कि वर्ष 2013 में बस्तर में माओवादी हमले में वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं की हत्या कर दी गई थी।

''यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, हम नोटिस जारी कर रहे हैं।''

जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने वर्ष 2020 में दर्ज की गई दूसरी एफआईआर के संबंध में स्थानीय पुलिस द्वारा आगे की जांच करने पर भी रोक लगा दी है।

''स्थानीय पुलिस द्वारा एफआईआर के संबंध में की जा रही आगे की जांच पर रोक लगाई जाए...''

एनआईए की याचिका में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के दिनांक 02.03.2022 के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें हाईकोर्ट ने दूसरी एफआईआर को रद्द करने या उस एफआईआर को आगे की जांच करने के लिए एनआईए को हस्तांतरित करने से इनकार कर दिया था। केंद्रीय जांच एजेंसी ने शुरू में छत्तीसगढ़ में एक विशेष एनआईए अदालत में अर्जी दायर कर मांग की थी कि इस एफआईआर को रद्द कर दिया जाए या उसकी जांच एनआईए को ट्रांसफर कर दी जाए,परंतु विशेष अदालत ने इस मांग को खारिज कर दिया था।

मई 2013 में बस्तर में एक चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं सहित 29 लोगों पर हमला किया गया और उनकी हत्या कर दी गई। केंद्र सरकार ने एनआईए को इस हमले की जांच करने का निर्देश दिया था। हालांकि, 2020 में, एक बड़ी राजनीतिक साजिश का आरोप लगाते हुए, वर्ष 2013 के हमले में अपनी जान गंवाने वाले कांग्रेस नेताओं में से एक के बेटे ने दूसरी एफआईआर दर्ज करवाई थी।

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल, एस.वी. राजू ने एनआईए की ओर से पेश हुए बेंच को अवगत कराया कि एनआईए को 2013 में राष्ट्रीय जांच एजेंसी अधिनियम, 2008 की धारा 6 के तहत केंद्र सरकार द्वारा पारित एक आदेश के अनुसार बस्तर हमले की जांच का जिम्मा सौंपा गया था। हालांकि, लगभग सात के बाद वर्ष, 2020 में, एक नए शिकायतकर्ता के कहने पर बड़ी साजिश के आरोपों की जांच के लिए राज्य पुलिस द्वारा उसी घटना से संबंधित एक एफआईआर दर्ज की ली गई है। उन्होंने तर्क दिया कि 'बड़ी साजिश' का आरोप एक जुड़ा हुआ अपराध है और इसलिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी अधिनियम, 2008 की धारा 8 के संदर्भ में एनआईए द्वारा ही उसकी जांच की जानी चाहिए।

धारा 8 के अनुसार -

''किसी भी अनुसूचित अपराध की जांच करते समय, एजेंसी किसी अन्य अपराध की भी जांच कर सकती है, जिसे आरोपी ने कथित रूप से किया है यदि अपराध अनुसूचित अपराध से जुड़ा है।''

एएसजी राजू ने प्रस्तुत किया कि 2020 में दूसरी एफआईआर दर्ज किए जाने के बाद, यह देखते हुए कि आरोप उसी विधेय अपराध से संबंधित हैं, एनआईए ने विशेष न्यायाधीश को पत्र लिखकर मांग की थी कि स्थानीय पुलिस को जांच करने से रोका जाए और एनआईए अधिनियम की धारा 8 के आधार पर दस्तावेजों को एनआईए को सौंपा जाएं।

राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ वकील ने कहा कि मुख्य अपराध में आरोपपत्र वर्ष 2015 में एनआईए द्वारा दायर किया गया था, और एंजेंसी ने बड़े साजिश के एंगल की जांच नहीं की थी।

केस टाइटल- एनआईए बनाम छत्तीसगढ़ राज्य, एसएलपी (सीआरएल) संख्या 7024/2022

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