सुप्रीम कोर्ट ने इस्तीफे पर विवाद में फंसी सरकारी कर्मचारी को पेंशन राहत दी
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक एएनएम (आग्ज़िल्यरी नर्स मिडवाइफ) को पेंशन लाभ प्रदान किया। गुजरात सरकार के तहत कार्यरत एएनएम ने 1993 में अपने इस्तीफे को वापस लेने के फैसला किया था, जिसके बाद वह एक लंबी कानूनी लड़ाई में फंस गई।
जिला पंचायत, वलसाड ने अपीलकर्ता को एएनएम नियुक्त किया था। उसने 18 अप्रैल, 1993 को इस्तीफा सौंप दिया था, हालांकि उसी वर्ष 23 नवंबर को इसे वापस ले लिया।
इस्तीफा स्वीकार करने का आदेश 20 दिसंबर, 1994 को पारित किया गया। इस आदेश को अपीलकर्ता ने गुजरात हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी थी। 2000 में हाईकोर्ट की एकल पीठ ने उनके इस्तीफे को स्वीकार करने के आदेश को रद्द कर दिया और घोषणा की कि वह सभी परिणामी सेवा लाभों की हकदार होंगी।
राज्य ने इस आदेश के खिलाफ खंडपीठ में अपील की। 22 फरवरी, 2001 को खंडपीठ ने कहा कि अपीलकर्ता उस अवधि में किसी भी लाभ की हकदार नहीं होगी, जब तक कि उनक "इस्तीफा लागू था"। इसलिए, अपीलकर्ता 18 अप्रैल, 1993 और 20 दिसंबर, 1994 के बीच किसी भी परिणामी लाभ का हकदार नहीं रह गई।
हालांकि, राज्य ने 8 अप्रैल, 2002 को एक आदेश पारित किया, जिसमें कहा गया कि 24 नवंबर 1993 से 30 मार्च 2001 तक की अवधि को अनधिकृत अवकाश माना जाएगा; और उपरोक्त अवधि को अवैतनिक सेवा विराम माना जाएगा।
जिसके बाद 17 जुलाई 2002 को त्यागपत्र की अवधि को अनाधिकृत अवकाश मानते हुए इसी प्रकार का आदेश पारित किया गया।
राज्य सरकार के आदेशों को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई और उन्हें रद्द कर दिया गया। न्यायालय ने राज्य को 24 नवंबर, 1993 से 30 मार्च, 2001 तक की अवधि के लिए 22 फरवरी, 2001 से 9% ब्याज के साथ सभी लाभों का भुगतान करने का निर्देश दिया।
उक्त निर्णय के खिलाफ कोई अपील नहीं थी, तभी राज्य ने तीसरा आदेश पारित किया, जिसमें कहा गया कि जहां तक अपीलकर्ता का संबंध है, 782 दिनों को अनधिकृत छुट्टी माना जाएगा।
इसे फिर से कोर्ट में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट ने माना कि 782 दिनों की अवधि में सेवा से अनुपस्थित रहने के कारण सेवा की निरंतरता प्रदान नहीं की जा सकती है। डिवीजन बेंच ने इस विचार की पुष्टि की। व्यथित होकर, अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दीवानी अपील दायर की।
तथ्यों को देखने के बाद, न्यायालय ने विशेष रूप से कहा कि "जिस अवधि के लिए इस्तीफा लागू था" अभिव्यक्ति को 23 नवंबर, 1993 को इस्तीफे के लागू होने से पहले वापस लेने के बाद की तारीख तक नहीं बढ़ाया जा सकता है।
782 दिनों की अनुपस्थिति के संबंध में
राज्य के 17 जुलाई, 2002 के आदेश के अनुसार निम्नलिखित अवधि को अनाधिकृत अनुपस्थिति माना गया था-
(i) 21 जून 1988 - 31 जुलाई 1988 - 41 दिन;
(ii) 18 अप्रैल 1993 - 23 नवंबर 1993 - 220 दिन; और
(iii) 6 नवंबर 1991 - 7 अप्रैल 1993 - 521 दिन
न्यायालय ने कहा कि 41 दिनों की पहली अवधि जून 1988 और जुलाई 1988 के बीच है जो सेवा से इस्तीफे की तारीख से पहले की है। 220 दिनों की अप्रैल और नवंबर 1993 के बीच की दूसरी अवधि इस्तीफा देने के बाद की अवधि है और इसे वापस लेने तक की अवधि है जो पहले से ही 22 फरवरी 2001 को डिवीजन बेंच द्वारा पारित आदेश की विषय वस्तु थी। हालांकि 521 दिनों की अंतिम अवधि 6 नवंबर 1991 से 7 अप्रैल 1993 के बीच है। यह अवधि 16 जुलाई 2005 को पारित आदेश में निर्धारित की गई है।
न्यायालय ने कहा,
"स्पष्ट रूप से, यह राज्य के लिए इस प्रकृति के क्रमिक आदेश को जारी रखने के लिए खुला नहीं था, एक बार इस्तीफे की अवधि पर विवाद और जिस तरीके से इस्तीफे को ट्रीट किया जाना था, उसे अंतिम रूप दिया गया था"।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया धनंजय वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पी नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की खंडपीठ ने कहा कि अपीलकर्ता केवल 18 अप्रैल 1993 से 23 नवंबर 1993 के बीच की अवधि के लिए किसी भी परिणामी लाभ का हकदार नहीं थी।
अपीलकर्ता को 30 नवंबर, 2011 को सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति प्रदान की गई थी। कोर्ट ने संकेत दिया कि अपीलकर्ता ने 31 वर्ष 8 महीने और 15 दिनों की कुल सेवा में से 24 वर्ष 10 महीने और 5 दिन की पेंशन योग्य सेवा पूरी कर ली है। अदालत ने कहा कि पिछले 11 वर्षों से, अपीलकर्ता को केवल अनंतिम पेंशन दी गई थी।
न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि अपीलकर्ता को 25 वर्ष की न्यूनतम पेंशन योग्य सेवा पूरी करने वाला माना जाना चाहिए।
केस टाइटल: भारतीबेन चंद्रकांतभाई ठाकोर बनाम गुजरात राज्य और अन्य | सिविल अपील नंबर 24/2013
साइटेशन : 2023 लाइवलॉ (एससी) 181