परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित मामले में 'मकसद' साबित न कर पाना आरोपी के पक्ष में पलड़ा भारी करने वाला कारक : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2020-09-28 11:43 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित मामले में 'मकसद' साबित न कर पाना आरोपी के पक्ष में पलड़ा भारी करने वाला कारक है।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम. आर. शाह की खंडपीठ ने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा दो आरोपियों- अनवर अली एवं शरीफ मोहम्मद को दोषी ठहराये जाने के फैसले को निरस्त करते हुए उन्हें बरी करने का ट्रायल कोर्ट का निर्णय बरकरार रखा। दोनों दीपक नामक व्यक्ति की हत्या के अभियुक्त थे।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील में अभियुक्तों द्वारा उठाये गये विवादित मुद्दों में से एक यह था कि अभियोजन पक्ष अपराध का मकसद स्थापित करने और उसे साबित करने में विफलज रहा है, इसलिए अभियुक्त को बरी होने का हकदार है। बेंच ने इस संदर्भ में कहा :

यह सही है कि अपराध का मकसद साबित न कर पाना अभियोग निरस्त करने का आधार नहीं हो सकता है। यह भी सही है और 'सुरेश चंद्र बहरी बनाम बिहार सरकार 1995 एसयूपीपी(1) एससीसी 80' के मामले में इसी कोर्ट ने स्थापित किया है कि यदि मकसद साबित हो जाता है तो वह परिस्थितिजन्य साक्ष्य की श्रृंखला में एक कड़ी बनेगी, लेकिन उसकी गैर-मौजूदगी को अभियोग निरस्त करने का आधार नहीं बनाया जा सकता, लेकिन, इसी कोर्ट ने 'बाबू'' मामले में यह भी कहा है कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित मामले में 'मकसद' की गैर-मौजूदगी एक ऐसा कारक जरूर है, जिसका पलड़ा सदैव अभियुक्त के पक्ष में झुका होता है।

यह भी दलील दी गयी थी कि चंडीगढ़ से जीप की बरामदगी तथा अभियोजन पक्ष के गवाह नंबर सात (पीडब्ल्यू-7) की तस्वीर एवं उसके मोबाइल फोन की जीप से बरामदगी भी गम्भीर संदेह पैदा करती है। कोर्ट ने यह भी कहा कि जांच अधिकारी ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 166 (3) एवं (4) तथा धारा 100 (4) के तहत जरूरी प्रक्रिया का पालन भी नहीं किया।

"अभियोजन एवं जांच अधिकारी के अनुसार, उसे एक गुप्त सूचना मिली थी कि चंडीगढ़ की सड़क पर एक जीप लावारिश हालत में खड़ी है। यद्यपि यह दूरी 300 किलोमीटर की थी, लेकिन वह सीधे चंडीगढ़ गये और अपने साथ लेकर आये भूंतेर के लोगों के सामने जीप की बरामदगी की। केवल उपरोक्त प्रावधानों का अनुसरण न करना अभियुक्त को बरी करने का आधार नहीं हो सकता। हालांकि, सभी परिस्थितियों पर विचार करने के बाद और एक ऐसे मामले में जहां रिकवरी गंभीर रूप से संदेहास्पद है, उपरोक्त प्रावधानों पर अमल न करना इस मामले में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।"

बेंच ने अपील स्वीकार करते हुए कहा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा रिकॉर्ड किये गये तथ्य रिकॉर्ड में दर्ज सभी साक्ष्यों की समीक्षा पर आधारित हैं तथा इन्हें दुर्भावनापूर्ण या रिकॉर्ड में दर्ज साक्ष्य के विरुद्ध नहीं कहा जा सकता तथा / या यह नहीं कहा जा सकता कि ट्रायल कोर्ट ने रिकॉर्ड में दर्ज साक्ष्यों पर विचार नहीं किया था। इसलिए हमारा मत है कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए ट्रायल कोर्ट द्वारा अभियुक्तों को बरी किये जाने का आदेश पलटकर हाईकोर्ट ने सही नहीं किया है।

केस का नाम : अनवर अली बनाम हिमाचल प्रदेश

केस नंबर : क्रिमिनल अपील नंबर 1121 / 2016

कोरम : न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह

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