"आप आपस में लड़ रहे हैं": सुप्रीम कोर्ट ने स्वामी चक्रपाणि की अखिल भारत हिंदू महासभा को चुनाव लड़ने की अनुमति देने की मांग वाली याचिका खारिज की

Update: 2022-02-07 09:50 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को स्वामी चक्रपाणि द्वारा दायर एक याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। इस याचिका में स्वामी अखिल भारत हिंदू महासभा के अध्यक्ष होने का दावा करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के एक आदेश को चुनौती दी गई। दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने उक्त आदेश में उन्हें और अन्य पदाधिकारियों को कई राज्यों में विधानसभा चुनाव लड़ने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था।

जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस जेके माहेश्वरी की खंडपीठ स्वामी चक्रपाणि द्वारा दायर एक याचिका में दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली एक विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें भारत के चुनाव आयोग को पार्टी के पदाधिकारियों को कई राज्यों में विधानसभा चुनाव लड़ने की अनुमति देने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

स्वामी चक्रपाणि की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने तर्क दिया कि वर्तमान मामले पर सुप्रीम कोर्ट को फैसला करने की जरूरत है।

उन्होंने तर्क दिया कि वर्तमान में कोई भी व्यक्ति महासभा के लिए उम्मीदवारों को नामित करने में सक्षम नहीं है, क्योंकि यह शून्य से पैदा हुआ है।

उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग ने कहा कि वह याचिकाकर्ता को महासभा के अध्यक्ष के रूप में मान्यता नहीं दे सकता।

जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने कहा,

"आप आपस में लड़ रहे हो, क्या किया जा सकता है?"

सिंह ने कहा,

"इस अदालत को इस मामले को देखना होगा। यह सबसे पुरानी पार्टी है। किसी को पार्टी का प्रतिनिधित्व करना चाहिए। यह एक ऐसा मामला है जिस पर सुप्रीम कोर्ट को फैसला करना चाहिए।"

इस पर जस्टिस बनर्जी ने कहा,

"सबसे पुरानी पार्टी! आप पार्टी के भीतर लड़ रहे हैं। कोई कहता है कि मैं अध्यक्ष हूं, कोई और कहता है कि मैं अध्यक्ष हूं।"

चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस ज्योति सिंह की दिल्ली हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने स्वामी चक्रपाणि की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि चक्रपाणि के अध्यक्ष पद पर काबिज होने का तथ्य अत्यधिक विवादित है।

चीफ जस्टिस ने टिप्पणी की थी,

"आधा दर्जन से अधिक लोग इस संगठन के अध्यक्ष होने का दावा कर रहे हैं।"

कोर्ट ने कहा कि भारत के चुनाव आयोग के पास राजनीतिक दल के इस आंतरिक विवाद को तय करने की शक्ति या अधिकार क्षेत्र नहीं है और संबंधित व्यक्ति एक सक्षम सिविल कोर्ट से पार्टी में अपनी स्थिति के बारे में घोषणा की मांग कर सकते हैं।

पृष्ठभूमि

स्वामी चक्रपाणि ने अखिल भारत हिंदू महासभा (ABHM) के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में उनके नेतृत्व में पदाधिकारियों की सूची को मान्यता देने के लिए चुनाव आयोग को निर्देश देने से इनकार करने वाले एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट के समक्ष अपील की थी। याचिका में चुनाव आयोग को सूची को मान्यता देने और उन्हें विधानसभा चुनाव लड़ने की अनुमति देने का निर्देश देने की मांग की गई।

यह प्रस्तुत किया गया कि चक्रपाणि को पहली बार 2006 में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में चुना गया था। नवंबर 2020 में भी उन्हें चुनाव आयोग द्वारा पार्टी के अध्यक्ष के रूप में मान्यता दी गई थी। हालांकि, जनवरी 2011 में आयोग ने प्रतिद्वंद्वी दावों मिलने पर उपरोक्त मान्यता वापस ले ली।

इसी तरह के मुद्दे पर मुकदमेबाजी के पहले दौर में हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने यह माना कि संगठन के अध्यक्ष होने का दावा करने वाले व्यक्ति को सक्षम न्यायालय से इस संबंध में एक घोषणा प्राप्त करनी होगी।

डिवीजन बेंच ने एलपीए 522/2011 में फैसला सुनाया,

"यह उस व्यक्ति के लिए है जो अध्यक्ष/ पदाधिकारी के रूप में अधिकारों का प्रयोग करना चाहता है। यह ऐसे पद के लिए घोषणा की मांग करता है और उसे केवल इस कारण से पद धारण करने या उसकी शक्तियों का प्रयोग करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है कि दूसरों ने न्यायालय का दरवाजा नहीं खटखटाया है।"

हाईकोर्ट के समक्ष जुलाई, 2012 में एक पुनर्विचार याचिका में इस स्थिति की पुष्टि की गई और इसके खिलाफ एक एसएलपी को मई, 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।

यह कहते हुए कि न्यायालय न्यायिक पदानुक्रम से बाध्य है, हाईकोर्ट ने आदेश में कहा,

"हमें इस एलपीए पर विचार करने का कोई कारण नहीं दिखता है।"

इसमें कहा गया कि कथित आपराधिक शिकायतों का विवादित दावे के साथ "सीधा संबंध" हो सकता है।

केस शीर्षक: स्वामी चक्रपाणि बनाम भारत निर्वाचन आयोग

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