कोर्ट द्वारा कानून की घोषणा का पूर्वव्यापी प्रभाव होगा यदि इससे इतर कोई विशेष टिप्पणी नहीं की गयी हो: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2022-07-05 07:29 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा कि कोर्ट द्वारा की गयी कानून की घोषणा का पूर्वव्यापी प्रभाव होगा, यदि इससे इतर कोई विशेष टिप्पणी नहीं की गयी हो।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने यह टिप्पणी जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए की जिसके तहत राज्य लोक सेवा आयोग की सिफारिश पर सीधी भर्ती के माध्यम से नियुक्त मुंसिफों के लिए परस्पर वरिष्ठता चयन के समय उनकी परस्पर योग्यता के आधार पर निर्धारित की जानी है, न कि रोस्टर अंक के आधार पर।

अदालत द्वारा विचार किए गए प्रश्नों में से एक यह था कि क्या बिमलेश तंवर बनाम हरियाणा सरकार, (2003) 5 एससीसी 604 में दिया गया यह निर्णय पूर्वव्यापी है कि पी.एस. घलौत बनाम हरियाणा सरकार [(1995) 5 एससीसी 625] एक अच्छा कानून नहीं है?

बिमलेश तंवर में, इस प्रकार कहा गया था :

"संविधान के अनुच्छेद 16 (4) के संदर्भ में एक सकारात्मक कार्रवाई उन नागरिकों के वर्ग का प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिए है, जो सामाजिक या आर्थिक रूप से पिछड़े हैं। भारत के संविधान का अनुच्छेद 16 नियुक्ति के मामले में लागू होता है। यह वरिष्ठता के निर्धारण की बात नहीं करता है। इस प्रकार, रोस्टर बिंदुओं के संदर्भ में वरिष्ठता तय नहीं की जानी चाहिए। यदि ऐसा किया जाता है, तो सकारात्मक कार्रवाई के नियम को बढ़ाया जाएगा जो पूर्णरूपेण संवैधानिक योजनाओं के अनुरूप नहीं होगा। हमारी राय है कि 'पीएस घलौत' मामले में दिया गया निर्णय एक अच्छा कानून नहीं बनाता है।"

कोर्ट ने देखा कि बिमलेश तंवर (सुप्रा) मामले में वास्तव में कानून की घोषणा थी।

इसलिए, इसका पूर्वव्यापी प्रभाव होगा।

'पी.वी. जॉर्ज बनाम केरल सरकार, (2007) 3 एससीसी 557' मामले में इस कोर्ट ने कहा था, 

"एक कोर्ट द्वारा घोषित कानून का पूर्वव्यापी प्रभाव होगा, यदि इससे इतर इसमें कोई विशेष टिप्पणी न की गयी हो।'' पीठ ने कहा, ''यह कोर्ट इस तथ्य से अवगत था, जैसा कि पी.वी. जॉर्ज (सुप्रा) की रिपोर्ट के पैरा 19 में देखा जा सकता है कि जब निर्णीत दृष्टांतों का अनुसरण करने के सिद्धांत का पालन नहीं किया जाता है, तो कानून में बदलाव से नागरिकों के हित पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। लेकिन फिर भी इस कोर्ट ने माना कि संभावित ओवररूलिंग (ताकि प्रतिकूल प्रभाव को दूर करने के लिए) के सिद्धांत को लागू करने की शक्ति का प्रयोग स्पष्ट संभव अवधि में किया जाना चाहिए। इसलिए, यह स्पष्ट है कि पी.एस. घलौत (सुप्रा) मामले में इस कोर्ट के निर्णय के परिणामस्वरूप कुछ भी किया गया है तो यह टिक नहीं सकता, क्योंकि इस कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में 'बिमलेश तंवर (सुप्रा)' मामले में संभावित ओवररूलिंग के सिद्धांत को लागू नहीं किया था।"

मामले का विवरण

मनोज परिहार बनाम जम्मू और कश्मीर सरकार | 2022 लाइव लॉ (एससी) 560 | एसएलपी (सी) नंबर 11039/2022 | 27 जून 2022

कोरम: जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला

हेडनोट्सः सेवा कानून - न्यायिक सेवा - मुंसिफ्स- रोस्टर अंक एक साथ नियुक्तियां प्राप्त करने वाले कर्मचारियों की वरिष्ठता का निर्धारण नहीं करते हैं; अर्थात्, जो एक ही तिथि को सामूहिक रूप से नियुक्त होते हैं या एक ही तिथि को नियुक्त समझे जाते हैं, भले ही वे अपने पदों पर कब शामिल हुए - रोस्टर प्रणाली केवल यह सुनिश्चित करने के उद्देश्य से है कि भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण की मात्रा इसमें परिलक्षित होती हो। इसका भर्ती किए गए लोगों के बीच परस्पर वरिष्ठता से कोई लेना-देना नहीं है। (पैरा 29)

संभावित ओवररूलिंग - कोर्ट द्वारा घोषित कानून का पूर्वव्यापी प्रभाव होगा, यदि इससे इतर कोई विशेष टिप्पणी नहीं की जाती है - संभावित ओवररूलिंग (ताकि प्रतिकूल प्रभाव को दूर करने के लिए) के सिद्धांत को लागू करने की शक्ति का प्रयोग स्पष्ट संभव अवधि में किया जाना चाहिए - संदर्भ पी.वी. जॉर्ज बनाम केरल सरकार, (2007) 3 एससीसी 557. (पैरा 26-28)

सेवा कानून - सीधी भर्ती - चयनित उम्मीदवारों की परस्पर योग्यता सूची तैयार करना अनिवार्य है, नियम या नीति में स्पष्ट प्रावधान के अभाव में भी, भर्ती प्राधिकरण उम्मीदवारों को नियम के तहत थम्ब रूल या वैसी कार्यप्रणाली को अपनाकर चयन सूची में शामिल नहीं कर सकता जो संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 की भावना से असंगत हैं। चयनित उम्मीदवारों की परस्पर योग्यता सूची कई कारकों जैसे लिखित परीक्षा, वस्तुनिष्ठ परीक्षा, मौखिक परीक्षा और/या अन्य मापदंडों के संयुक्त प्रभाव के रूप में तैयार की जा सकती है, जैसा कि सेवा की विशेष आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए निर्धारित किया गया हो। (पैरा 16)

सेवा कानून - योग्यता सह वरिष्ठता के आधार पर पदोन्नति - वरिष्ठता ही चयन पद पर पदोन्नति के लिए एकमात्र योग्यता नहीं है - तुलनात्मक योग्यता का मूल्यांकन किया जाना है जिसमें वरिष्ठता अन्य कारकों में से केवल एक कारक होगी - यहां तक कि सबसे जूनियर व्यक्ति भी अपने वरिष्ठों को मात दे सकता है और त्वरित पदोन्नति के लिए कतार में कूद सकता है। (पैरा 16)

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