सुप्रीम कोर्ट मुस्लिम पर्सनल लॉ में बहुविवाह और निकाह हलाला की वैधता को चुनौती देने वाले मामलों की सुनवाई के लिए संविधान पीठ बनाने पर सहमत

Update: 2022-11-24 15:49 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को मुस्लिम पर्सनल लॉ द्वारा अनुमत बहुविवाह (Polygamy) और निकाह हलाला (Nikah Halala) की प्रथा की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच की सुनवाई के लिए एक संविधान पीठ (Constitution Bench)के पुनर्गठन पर सहमति व्यक्त की।

इन प्रथाओं को चुनौती देने वाली आठ याचिकाओं को पहले जस्टिस इंदिरा बनर्जी, हेमंत गुप्ता, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस सुधांशु धूलिया की 5-न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था। पीठ ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को नोटिस जारी किया था।

भारत के मुख्य न्यायाधीश, डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस हेमा कोहली और जस्टिस जेबी पर्दीवाला की पीठ के समक्ष पिटीशनर-इन-पर्सन, एडवोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय ने उल्लेख किया कि चूंकि जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस हेमंत गुप्ता सेवानिवृत्त हो गए हैं, एक नई संविधान पीठ याचिकाओं के बैच की सुनवाई के लिए गठित किया जाए।

सीजेआई ने आश्वासन दिया, " हम एक बेंच बनाएंगे। "

मार्च 2018 में 3-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा मामलों को 5-न्यायाधीशों की पीठ को भेजा गया था। याचिकाएं कुछ मुस्लिम महिलाओं नायसा हसन, शबनम, फरजाना, समीना बेगम और वकील अश्विनी उपाध्याय और मोहसिन कथिरी ने बहुविवाह और निकाह-हलाला की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए दायर की हैं।

मुस्लिम महिला प्रतिरोध समिति नाम के एक संगठन ने भी एक याचिका दायर की है। जमीयत-उलमा-ए-हिंद ने प्रथाओं का समर्थन करते हुए मामले में हस्तक्षेप किया है।

शरिया या मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार, पुरुषों को बहुविवाह का अभ्यास करने की अनुमति है, यानी वे एक ही समय में एक से अधिक पत्नियां (कुल चार) रख सकते हैं, । 'निकाह हलाला' एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक मुस्लिम महिला को अपने तलाकशुदा पति से दोबारा शादी करने की अनुमति देने से पहले किसी अन्य व्यक्ति से शादी करनी होती है और उससे तलाक लेना होता है।

याचिकाकर्ताओं ने बहुविवाह और निकाह-हलाला पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए कहा है कि यह मुस्लिम पत्नियों को बेहद असुरक्षित, कमजोर और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। उन्होंने प्रार्थना की कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम की धारा 2 को असंवैधानिक घोषित किया जाए और संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 15 (धर्म के आधार पर भेदभाव) और 21 (जीवन का अधिकार) का उल्लंघन किया जाए। यह बहुविवाह और निकाह-हलाला की प्रथा को पहचानने और मान्य करने का प्रयास करता है।

[केस टाइटल : अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ WP(C) नंबर 202/2018]

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