सुप्रीम कोर्ट ने बीस साल पहले 300 रुपये रिश्वत लेने के दोषी व्यक्ति को बरी किया
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम 1988 के तहत दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति को वर्ष 2003 में 300 रुपये की रिश्वत लेने के आरोप से बरी कर दिया।
दोषी, जो एक क्लीनर के रूप में काम कर रहा था, जिस पर शिकायतकर्ता को मृत्यु प्रमाण पत्र की एक प्रति देने के लिए रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट और पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के समवर्ती निष्कर्षों के खिलाफ अपील की अनुमति दी।
जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस राजेश बिंदल की खंडपीठ ने कहा कि मामले में अवैध रिश्वत की मांग साबित नहीं हुई। नीरज दत्ता बनाम स्टेट 2022 लाइवलॉ (एससी) 1029 में संविधान पीठ द्वारा हाल ही में दिए गए फैसले के अनुसार अधिनियम के तहत दोषसिद्धि को बनाए रखने के लिए मांग और वसूली दोनों को साबित किया जाना चाहिए।
मौजूदा मामले में ट्रायल कोर्ट ने विशेष रूप से देखा था कि मांग साबित नहीं हुई थी। हाईकोर्ट का फैसला इस धारणा पर आधारित था कि चूंकि अपीलकर्ता से रुपए बरामद किये गये था, इसलिए मांग की गई होगी। राज्य ने तर्क दिया था कि तथ्य यह है कि स्वतंत्र गवाहों की उपस्थिति में अपीलकर्ता से समान सीरियल नंबर वाले फेनोल्फथेलिन कोटेड करेंसी नोट बरामद किए गए थे, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि मांग की गई थी।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मांग का कोई सबूत नहीं है।
अदालत ने कहा,
"यदि नीरज दत्ता बनाम राज्य (एनसीटी दिल्ली सरकार) (सुप्रा) में संविधान पीठ द्वारा निर्धारित कानून के आलोक में अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए साक्ष्य की जांच की जाती है तो अपीलकर्ता की दोषसिद्धि और सजा कानूनी रूप से कायम नहीं रह सकती।"
केस टाइटल : जगतार सिंह बनाम पंजाब राज्य
साइटेशन : 2023 लाइवलॉ (एससी) 232
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