रेप और हत्या : सुप्रीम कोर्ट ने UP सरकार से पूछा, कितने दोषियों को समय-पूर्व रिहाई दी, ब्योरा दें

Update: 2019-12-10 04:49 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया कि वह समय से पहले जेल से सजा माफ कर रिहा किए गए बलात्कार और हत्या के सजायाफ्ता कैदियों का ब्योरा कोर्ट में दाखिल करे।

कोर्ट ने ये निर्देश तब दिया जब ये बताया गया कि 1 जनवरी, 2018 से अब तक राज्य में कुल 1,544 ऐसे अपराधी समय- पूर्व रिहा किए गए हैं।

शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को बलात्कार और हत्या के दोषियों की उम्र भी बताने को कहा है जिन्हें समय से पहले रिहा कर दिया गया।

जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस के एम जोसेफ की पीठ ने राज्य सरकार को हलफनामे पर विवरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया और मामले को छह सप्ताह के बाद आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध

कर दिया।

पीठ ने कहा,

"पक्षकारों की सुनवाई के बाद हम राज्य से आह्वान करते हैं कि वह एक हलफनामा दाखिल करे कि पीड़िता की उम्र के साथ बलात्कार और हत्या के कितने दोषियों को समय से पहले छोड़ दिया गया।"

दरअसल शीर्ष अदालत बलात्कार और हत्या के मामले में एक दोषी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जो पिछले 35 वर्षों से आगरा जेल में बंद है। सजायाफ्ता महेश ने पिछले साल राज्य सरकार द्वारा उसके समय से पहले रिहाई के आवेदन खारिज करने को चुनौती दी है।

पीठ ने महेश को अंतरिम जमानत दे दी और उसे निर्देश दिया कि वह 10 बजे हर वैकल्पिक सोमवार को निकटतम पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करे।

"बेंच ने कहा, 

"इस बीच यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता लगभग 35 वर्षों से वास्तविक हिरासत में है और ये छूट के साथ लगभग 45 वर्ष होगा, हम याचिकाकर्ता को अंतरिम जमानत देते हैं। याचिकाकर्ता हर दूसरे सोमवार को 10 बजे अपने निकटतम पुलिस स्टेशन को रिपोर्ट करेगा।" 

शुरुआत में पीठ द्वारा मामले में एमिकस क्यूरी नियुक्त किए गए वकील पीयूष कांति रॉय ने कहा कि जब उत्तर प्रदेश सरकार ने समय से पहले कई इसी तरह के दोषियों को रिहा किया है, तब महेश के आवेदन को खारिज करने का कोई मतलब नहीं था, जिसने 35 साल जेल में बिताए हैं। उन्होंने कहा कि 35 साल पहले गिरफ्तारी के बाद से महेश एक भी दिन जेल से बाहर नहीं आया है।

वहीं उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि शीर्ष अदालत के पहले के आदेश के अनुपालन में उन्होंने दोषियों की समय-पूर्व रिहाई पर रिपोर्ट प्रस्तुत की है।

राज्य के वकील ने कहा कि 1 जनवरी 2018 से, अब तक राज्य सरकार ने 1,544 कैदियों के अनुरोध को स्वीकार कर लिया है और सीआरपीसी के प्रावधानों के तहत उन्हें समय से पहले रिहाई की अनुमति दी है।

तब शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि अंतरिम जमानत पर महेश की रिहाई से पहले, उसका मनोवैज्ञानिक द्वारा मूल्यांकन किया जाना चाहिए और उस रिपोर्ट को भी कोर्ट के सामने रखा जाना चाहिए।

गौरतलब है कि राज्य सरकार ने 4 नवंबर को शीर्ष अदालत को सूचित किया था कि उसने दोषी महेश की समयपूर्व रिहाई के लिए आवेदन को खारिज कर दिया है।

शीर्ष अदालत ने तब राज्य सरकार को उन मामलों को रिकॉर्ड में रखने के लिए कहा था, जहां समय से पहले रिहाई के लिए अनुरोध किया गया है और 1 जनवरी, 2018 से अभी तक रिहाई और उसके कारणों को बताने के लिए भी कहा था।

दरअसल सीआरपीसी की धारा 432 (1) राज्य सरकार को किसी भी स्थिति के साथ या उसके बिना किसी व्यक्ति की सजा को निलंबित या माफ करने की शक्ति देती है।

वहीं धारा 432 (2) में कहा गया है कि जब भी सजा माफ करने के लिए कोई आवेदन किया जाता है तो उपयुक्त सरकार अदालत के पीठासीन न्यायाधीश की राय ले सकती है जिसने दोषी को सजा सुनाई थी या सजा की पुष्टि की थी, इस अनुरोध पर कि क्या उसे अनुमति दी जानी चाहिए। 

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