सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सज़ा के दोषी को बरी किया, फौरन रिहा करने का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपने दो भाइयों और बेटे की हत्या के मामले में मौत की सजा पाए एक कैदी को बरी कर दिया।
जस्टिस बीआर गवई , जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने यह फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा 2017 में उत्तर प्रदेश सत्र अदालत द्वारा दी गई मौत की सजा की पुष्टि के खिलाफ दोषी की याचिका पर सुनवाई के बाद सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कैदी को बरेली सेंट्रल जेल से तत्काल रिहा करने का आदेश दिया।
यूपी के बिजनौर में एक अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने इरफान उर्फ नाका को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत दोषी ठहराया और मौत की सजा सुनाई। आरोप यह था कि पारिवारिक झगड़े में इरफान ने अपने भाइयों और अपने बेटे को आग लगा दी और पीड़ितों को कमरे में फंसाकर उन्हें एक कमरे में बंद कर दिया। मदद के लिए उनकी चीख परिवार के अन्य सदस्यों और पड़ोसियों तक पहुंची, जिन्होंने दरवाजा तोड़कर आग बुझाई और तीनों को बाहर निकला। पीड़ितों को गंभीर हालत में अस्पताल ले जाया गया लेकिन अंततः उन्होंने दम तोड़ दिया।
पुलिस पीड़ितों के मरने से पहले उनके बयान (dying declaration) रिकॉर्ड करने में कामयाब रही, जो अभियोजन पक्ष के मामले का केंद्रीय आधार बना। इन मृत्युपूर्व बयानों के आधार पर सत्र अदालत ने आरोपी को दोषी करार दिया और 2018 में इस फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बयानों में कोई विसंगति नहीं पाए जाने के आधार पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बरकरार रखा।
जस्टिस राम सूरत राम मौर्य और जस्टिस इफाकत अली खान की खंडपीठ ने अपील को खारिज करते हुए और इरफान की मौत की सजा की पुष्टि करते हुए कहा -
“अपीलकर्ता ने अपने दो छोटे भाइयों और अपने छोटे बेटे को मारने के इरादे से जला दिया। केवल इस कारण से कि उसका छोटा बेटा उसकी दूसरी शादी के खिलाफ था और उसका भाई उससे अपने इकलौते जवान बेटे को बाहर निकालने के संबंध में असहमत था। दोषी की मौजूदगी उसके परिवार और समाज के लिए भी बेहद खतरनाक है।”
हाईकोर्ट ने मई 2018 में संविधान के अनुच्छेद 134A के तहत सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील दायर करने के लिए स्वत: संज्ञान प्रमाणपत्र दिया। कोर्ट ने देखा कि "मौत की सजा अनुच्छेद 21 का मामला है।" उसी महीने शीर्ष अदालत की एक अवकाश पीठ ने दोषी की अपील पर नोटिस जारी किया।
पूर्व मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने मई 2022 में अनुमति दी , जिसने इरफान को दी गई सजा के क्रियान्वयन पर भी रोक लगा दी। इतना ही नहीं, अदालत ने यह भी कहा कि दोषी के आचरण के आकलन से अंतिम दलीलें देने में मदद मिलेगी और परिवीक्षा अधिकारी और जेल प्रशासन से रिपोर्ट मांगी जाएगी। न्याय के हित में अदालत ने अपीलकर्ता के मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन का भी निर्देश दिया, इसके अलावा दिल्ली के नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के प्रोजेक्ट 39ए के एक सहयोगी से एक स्वतंत्र रिपोर्ट मांगी , जिसे मौत की सजा पाए दोषी तक पहुंच की अनुमति दी गई थी। ये निर्देश जारी करते समय कोर्ट ने कहा-
"चूंकि अपीलकर्ता को मौत की सजा दी गई है, इसलिए हमारे विचार में, मामले में संपूर्ण मूल्यांकन के लिए अपीलकर्ता के चरित्र और व्यवहार से जुड़े पहलू आवश्यक होंगे।"
जस्टिस गवई की अगुवाई वाली पीठ ने पिछले महीने दोषी की ओर से सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन की दलीलें, एनएलयूडी के प्रोजेक्ट 39ए द्वारा दी गई जानकारी और राज्य सरकार की ओर से यूपी के एडिशनल एडवोकेट जनरल अर्धेन्दुमौली कुमार प्रसाद की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
केस : इरफ़ान@नाका बनाम उत्तर प्रदेश राज्य | आपराधिक अपील नंबर 825-826/2022