टूर के वक्त स्कूल की लापरवाही के कारण छात्रा बेडरिडेन हुई : सुप्रीम कोर्ट ने 88.73 लाख रुपये का मुआवजा बहाल किया

जब छात्रा टूर पर बीमार हो गयी थी, तब स्कूल ने उसे समय पर इलाज नहीं कराया था, जिसके कारण वह बिस्तर पर पड़ी रही।

Update: 2021-07-25 08:04 GMT

टूर पर बीमार हुई छात्रा के इलाज में लापरवाही के कारण शय्याग्रस्त हुई छात्रा के मामले में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) द्वारा मुआवजा राशि कम किये जाने के खिलाफ अपील की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग द्वारा निर्णित 88 लाख 73 हजार 798 रुपये की मुआवजा राशि बहाल की है।

न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति सुभाष रेड्डी की खंडपीठ ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के उस आदेश से प्रभावित शिकायतकर्ता द्वारा दायर अपील पर दिशानिर्देश जारी किया, जिसमें उसने मुआवजा राशि को 88 लाख 73 हजार 798 रुपये से घटाकर 50 लाख रुपये कर दिया था।

मौजूदा मामले में राज्य आयोग और राष्ट्रीय आयोग ने प्रतिवादियों द्वारा घोर लापरवाही बरते जाने को लेकर एक समान निर्णय दिया था और कहा था कि शिकायतकर्ता और अन्य बच्चों के साथ गये शिक्षकों ने अपने कर्तव्य के पालन में लापरवाही बरती थी। हालांकि राष्ट्रीय आयोग ने राज्य आयोग के फैसले की पुष्टि तो की थी, लेकिन कहा था कि 50 लाख रुपये की मुआवजा राशि पर्याप्त होगी।

यह बताते हुए कि एक अपीलीय प्राधिकार के पास मुआवजे को कम करने का अधिकार क्षेत्र है, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि, यह अधिकार क्षेत्र किसी मामले के दिए गए तथ्यों में इस्तेमाल किए जाने वाले न्यायिक विवेक की शक्ति से अपना स्रोत हासिल करता है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

"न्यायिक विवेक के इस्तेमाल की शक्ति वास्तव में व्यापक है, लेकिन यह स्वाभाविक तौर पर विवेकाधीन क्षेत्राधिकार के विवेकपूर्ण इस्तेमाल की आवश्यकता से बंधी होती है।"

बेंच ने कहा है कि आदेश में ऐसा प्रतीत होना चाहिए कि मामले के तथ्यों को लेकर दिमाग का उचित इस्तेमाल किया गया है, उसके बाद उस पर संक्षिप्त चर्चा होनी चाहिए थी कि न्यायिक विवेकाधिकार के इस्तेमाल की आवश्यकता क्यों पड़ी कि मुआवजे की राशि अधिक थी और इसे कम किये जाने की आवश्यकता है।

बेंच ने कहा,

"न्यायिक विवेकाधिकार बगैर कारण इस्तेमाल किये जाने के लिए निरंकुशता नहीं प्रदान करता कि वह किसी अन्य के लिए पूर्वाग्रह का कारण बने।"

खंडपीठ ने कहा कि राष्ट्रीय आयोग द्वारा कोई चर्चा नहीं की गई है और मुआवजे को कम करने के लिए अपनी राय बनाने के लिए कोई कारण भी नहीं बताया गया है। इसके अलावा उसने यह भी कहा कि बिना यह राय दिए कि किसी विशेष मद के तहत दिया गया मुआवजा अत्यधिक था, उसने केवल मुआवजे को कम करने की सलाह दी।

बेंच ने कहा,

"ऐसे किसी तथ्य, विचार अथवा तर्क की गैर-मौजूदगी में मुआवजे की राशि में कटौती करना मनमाना निर्णय होता है तथा इसलिए इसे लागू नहीं रखा जा सकता।"

तथ्य :

घटना के समय शिकायतकर्ता 14 साल की बच्ची थी, जो बेंगलुरु के एक शैक्षणिक संस्थान में 9वीं कक्षा में पढ़ती थी। दिसंबर 2006 में, वह अन्य छात्रों और स्कूल के शिक्षकों के साथ उत्तर भारत के कई स्थानों पर शैक्षिक दौरे पर गई थी। दौरे के दौरान वह वायरल फीवर से ग्रसित हो गई, जिसकी पहचान मेनिंजो एन्सेफलाइटिस के रूप में हुई थी।

डॉक्टरों का मानना था कि अगर उसे समय पर चिकित्सा सहायता उपलब्ध करायी जाती और समुचित ध्यान दिया जाता, तो वह आसानी से ठीक हो सकती थी। अंतत: उसे एयर एंबुलेंस से बेंगलुरु वापस ले जाना पड़ा था।

नतीजतन, शिकायतकर्ता शय्याग्रस्त हो गयी, इसके साथ ही उसकी याददाश्त और जुबान भी प्रभावित हुई, जिससे उबरने की कोई संभावना नहीं थी, और वह सामान्य जीवन एवं विवाह योग्य उम्र के बावजूद शादी की संभावनाओं से वंचित रह गयी।

राष्ट्रीय आयोग ने हालांकि राज्य आयोग के फैसले की पुष्टि तो की, लेकिन कहा कि 50 लाख रुपये का मुआवजा पर्याप्त होगा।

मामले का विवरण :

केस : कुमारी अक्षता बनाम सचिव, बीएनएम शिक्षा संस्थान और अन्य

साइटेशन : एलएल 2021 एससी 323

आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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