पराली जलाने पर किसान को सज़ा देना समस्या का हल नहीं है, उन्हें मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाएं : सुप्रीम कोर्ट ने दिए राज्योंं को निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब की सरकारों को गैर-बासमती चावल के फसल अवशेषों को संभालने के लिए छोटे और सीमांत किसानों को सात दिनों के भीतर 100 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से वित्तीय सहायता देने का निर्देश दिया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे उनके खेत साफ करने के लिए पराली न जलाएं। पराली का धुआं दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में बड़े पैमाने पर गंभीर वायु प्रदूषण का कारण है।
जस्टिस अरुण मिश्रा और दीपक गुप्ता की विशेष पीठ ने गंभीर वायु प्रदूषण के मुद्दे पर दो घंटे की लंबी सुनवाई के बाद अंतरिम आदेश पारित किया।
"इन किसानों को राज्य द्वारा किराए पर मशीन उपलब्ध करवाई जाएंगी और राज्यों को निर्देशित किया जाता है कि वे छोटे और सीमांत किसानों को फसल के ठूंठ को संभालने के लिए खर्च दिया जाए। किसानों को सज़ा देना अंतिम समाधान नहीं है, उन्हें मूलभूत सुविधाएं और सहायता उपलब्ध कराएं।"
अदालत ने कहा, "किसानों को उपकरणों से लैस किया जाएगा, दंडित नहीं।" केंद्र सरकार को 3 महीने के भीतर छोटे और सीमांत किसानों के हितों की रक्षा के लिए एक योजना तैयार करने का निर्देश दिया गया है। इसे पूरे देश में लागू किया जाएगा। इस बीच, राज्यों को किसानों को अपने कोष से प्रोत्साहन के लिए तुरंत धन का भुगतान करना चाहिए। न्यायालय दायित्व के निर्धारण के बारे में बाद में निर्णय करेगा।
मुख्य सचिवों को अदालत की फटकार
कोर्ट ने पंजाब, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के मुख्य सचिवों को पराली जलाने से रोकने के लिए नाकाम रहने पर फटकार लगाई। कोर्ट ने अवलोकन किया, "इन राज्यों के पास पराली जलाने से निपटने के लिए कोई खास योजना नहीं थी। अदालत ने कहा कि सरकारी अधिकारियों को उनकी निष्क्रियता के लिए उत्तरदायी ठहराया जाना चाहिए। मशीनों का समय पर क्रियान्वयन और उपलब्धता होनी चाहिए थी।"
एजी के तर्क
सुनवाई की शुरुआत में अटॉर्नी जनरल ने कहा कि अगर फसल के ठूंठ को जलाने पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है तो किसान प्रभावित होंगे। वे कहते हैं कि उनके पास कोई विकल्प नहीं है।
"पंजाब में अमीर किसानों के स्वामित्व वाले बड़े क्षेत्र हैं और उन्होंने मशीनों की कोशिश की है और वे कहते हैं कि वे बड़े क्षेत्रों में अप्रभावी हैं। छोटे किसानों को यह बहुत महंगा लगता है।" एजी ने कहा।
न्यायमूर्ति मिश्रा ने पीठ का नेतृत्व करते हुए कहा,
"किसी भी परिस्थिति में पराली जलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। "क्या आप लोगों को इस तरह मरने की अनुमति दे सकते हैं? देश में इन सभी घटनाओं के होने का क्या फायदा है? यह देश की मशीनरी और वैज्ञानिक मस्तिष्क की विफलता है।"
न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा,
" अगर पराली जलाने को जारी रखने की अनुमति दी जाती है तो यह पूरी तरह से अराजकता होगी और मशीनरी की विफलता होगी। इसके लिए सरकारों को मिलकर जिम्मेदारी लेनी होगी। स्थानीय प्रशासन को उत्तरदायी बनाएं, ग्राम पंचायतों को जिम्मेदार बनाएं।"