विशिष्ट राहत अधिनियम – विशेष अदायगी के बदले मुआवजा तब तक नहीं दिया जा सकता जब तक कि विशेष रूप से वाद में दावा नहीं किया जाए: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2022-02-20 07:48 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने हाल के एक फैसले में, करार की विशिष्ट अदायगी के बदले उठाए गए नुकसान के दावे को इस कारण से खारिज कर दिया कि वादी ने विशेष रूप से वाद में मुआवजे की राहत की मांग नहीं की थी।

कोर्ट ने विशिष्ट राहत अधिनियम की धारा 21(5) का उल्लेख किया, जो कहता है:

"इस धारा के तहत कोई मुआवजा नहीं दिया जाएगा जब तक कि वादी ने अपने वाद में इस तरह के मुआवजे का दावा नहीं किया है:

बशर्ते कि जहां वादी ने वादपत्र में ऐसे किसी मुआवजे का दावा नहीं किया है, कोर्ट कार्यवाही के किसी भी चरण में, उसे ऐसे मुआवजे के दावे को शामिल करने के लिए, जो उचित हो, वादपत्र में संशोधन करने की अनुमति देगा।"

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ यूनिवर्सल पेट्रो केमिकल्स लिमिटेड बनाम बीपी पीएलसी एवं अन्य मामले पर विचार कर रही थी, जो कलकत्ता उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील थी।

मामला अपीलकर्ता और प्रतिवादी के बीच अनुबंधात्मक विवादों से संबंधित है। अपीलकर्ता ने प्रतिवादी के साथ समझौते से संबंधित विशिष्ट अदायगी की मांग करते हुए एक वाद दायर किया था और प्रतिवादी द्वारा जारी करार समाप्ति नोटिस के खिलाफ एक स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की थी। हालांकि, हाईकोर्ट ने निषेधाज्ञा की राहत दी, लेकिन विशिष्ट राहत अधिनियम, 1963 की धारा 14 (1) (बी) में प्रतिबंध का हवाला देते हुए विशिष्ट अदायगी की राहत से इनकार किया गया था। हाईकोर्ट ने कहा कि अनुबंध में भविष्य के अनिर्दिष्ट दायित्वों और कर्तव्यों को तामील किया जाना शामिल है और अनुबंध की भौतिक शर्तों की विशिष्ट अदायगी को लागू करना कोर्ट के लिए संभव नहीं होगा। हाईकोर्ट ने आगे कहा कि यह एक खुला समझौता था, जिसमें विश्व स्तर के मानकों को पूरा करने के लिए समय-समय पर अपग्रेड किए जाने वाले उत्पादों के नवाचार और ओवरहालिंग के लिए प्रौद्योगिकी का निरंतर प्रवाह शामिल था। इसलिए, हालांकि करार समाप्ति का समझौता कानून के अनुसार नहीं पाया गया, लेकिन अनुबंध की विशिष्ट अदायगी की अनुमति नहीं दी गई थी।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष, अपीलकर्ता ने मुआवजे की मांग की, क्योंकि समझौते की अवधि 31.12.2009 को समाप्त हो गई थी। इसलिए 24.08.2005 से 31.12.2009 की अवधि के लिए हर्जाना मांगा गया था।

अपीलकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्री राकेश द्विवेदी ने 'जगदीश सिंह बनाम नत्थू सिंह (1992) 1 एससीसी 647', 'उर्मिला देवी एवं अन्य बनाम मंदिर, श्री चामुंडा देवी (2018) 2 एससीसी 284' और 'सुखबीर बनाम अजीत सिंह (2021) 6 एससीसी 54' के निर्णयों पर भरोसा जताया और दलील दी कि अपीलकर्ता नुकसान का हकदार है, भले ही ऐसी राहत का विशेष रूप से दावा नहीं किया गया हो।

सुश्री देबोलीना रॉय प्रतिवादियों की ओर से पेश हुईं। उन्होंने 'शमसु सुहारा बीवी बनाम जी. एलेक्स और अन्य (2004) 8 एससीसी 569' मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए कहा कि जब तक वाद में विशेष रूप से मांग नहीं की जाती है, तब तक हर्जाना नहीं दिया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता द्वारा दिए गए निर्णय तथ्यों पर अलग-अलग थे। कोर्ट ने कहा :

"इस न्यायालय द्वारा 'शमसू सुहारा बीवी बनाम जी एलेक्स और अन्य (सुप्रा)' में धारा 21 (4) और (5) के दायरे की समीक्षा की गई थी। इस कोर्ट ने भारत के विधि आयोग की सिफारिश को संदर्भित किया था कि किसी भी मामले में मुआवजा का आदेश तब तक नहीं होना चाहिए जब तक कि एक उचित अर्जी द्वारा दावा नहीं किया जाता है। हालांकि, विधि आयोग की राय थी कि वादी को विशिष्ट अदायगी के बदले या अलग से मुआवजा दावे के वास्ते एक अर्जी दाखिल करने के लिए कार्यवाही के किसी भी चरण में, वाद में संशोधन की मांग करने का अधिकार होना चाहिए। उक्त मामले में बिक्री समझौते के उल्लंघन के लिए मुआवजे की अदायगी के बदले या अलग से मुआवजे का कोई दावा नहीं किया गया था। माना जाता है कि बिक्री समझौते की अदायगी के लिए अतिरिक्त या प्रतिस्थापन के तौर पर मुआवजे की मांग के वास्ते वाद में कोई संशोधन नहीं था।''

शीर्ष अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता ने वाद में हर्जाने का दावा नहीं किया था। अपीलीय चरण में भी ऐसी राहत का दावा नहीं किया गया था। इस पृष्ठभूमि में, कोर्ट ने हर्जाने के दावे को खारिज कर दिया।


केस शीर्षक: यूनिवर्सल पेट्रो केमिकल्स लिमिटेड बनाम बीपी पीएलसी और अन्य

साइटेशन : 2022 लाइव लॉ (एससी) 185

हेडनोट्स

विशिष्ट राहत अधिनियम, 1963- धारा 21(5) - क्या विशिष्ट अदायगी के बदले मुआवजा दिया जा सकता है जब तक कि वाद में दावा नहीं किया जाता है – सुप्रीम कोर्ट मुआवजे के दावे को अस्वीकार करता है क्योंकि यह विशेष रूप से वाद में दावा नहीं किया गया था।

इस न्यायालय द्वारा शमसू सुहारा बीवी बनाम जी एलेक्स और अन्य (सुप्रा) में धारा 21(4) और (5) के दायरे की जांच की गई थी। इस न्यायालय ने भारत के विधि आयोग की इस सिफारिश का हवाला दिया कि किसी भी मामले में मुआवजे की घोषणा नहीं की जानी चाहिए, जब तक कि उचित दलील देकर इसका दावा न किया जाए।

इस न्यायालय द्वारा 'शमसू सुहारा बीवी बनाम जी एलेक्स और अन्य (सुप्रा)' में धारा 21 (4) और (5) के दायरे की समीक्षा की गई थी। इस कोर्ट ने भारत के विधि आयोग की सिफारिश को संदर्भित किया था कि किसी भी मामले में मुआवजा का आदेश तब तक नहीं होना चाहिए जब तक कि एक उचित अर्जी द्वारा दावा नहीं किया जाता है। हालांकि, विधि आयोग की राय थी कि वादी को विशिष्ट अदायगी के बदले या अलग से मुआवजा दावे के वास्ते एक अर्जी दाखिल करने के लिए कार्यवाही के किसी भी चरण में, वाद में संशोधन की मांग करने का अधिकार होना चाहिए। उक्त मामले में बिक्री समझौते के उल्लंघन के लिए मुआवजे की अदायगी के बदले या अलग से मुआवजे का कोई दावा नहीं किया गया था। माना जाता है कि बिक्री समझौते की अदायगी के लिए अतिरिक्त या प्रतिस्थापन के तौर पर मुआवजे की मांग के वास्ते वाद में कोई संशोधन नहीं था। (पैरा 21)

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