शाहीन बाग में बच्चे की मौत : सुप्रीम कोर्ट ने धरने में बच्चों की भागीदारी पर केंद्र को नोटिस जारी किया
सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग विरोध प्रदर्शन में 30 जनवरी को एक शिशु की मौत के मद्देनजर प्रदर्शन और आंदोलन में बच्चों और शिशुओं को शामिल करने के मुद्दे पर स्वत: संज्ञान कार्रवाही में केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
यह संज्ञान एक छात्रा द्वारा देश के मुख्य न्यायाधीश को लिखे गए पत्र पर लिया गया है जिसमें इस मुद्दे पर अदालत के हस्तक्षेप का आग्रह किया गया है।
मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने उन दलीलों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया जिसमें कहा गया कि मुस्लिम बच्चों को पाकिस्तानी बताया जा रहा है।
पीठ ने कहा,
" हम नहीं चाहते हैं कि लोग इस प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग करके समस्याएं पैदा करें। चाहे वह स्कूल ही क्यों न हो। किसी बच्चे को पाकिस्तानी कहा जाता है, ये मामले का विषय नहीं है। हम आपको नहीं सुनेंगे।"
अपने बच्चों तो धरने में ले जाने वाली एक मां की ओर से कहा गया कि नोटिस जारी करने पर कानूनी रोक है और बच्चे विरोध प्रदर्शन में भाग ले सकते हैं। वकील ने कहा कि शाहीन बाग में बच्चों को पाकिस्तान से आए लोगों की संज्ञा दी जाती है।
लेकिन मुख्य न्यायाधीश ने कहा, " हम पूछ रहे हैं कि विरोध के लिए 4 महीने का बच्चा जा सकता है? वकील ने बताया कि यह बच्चा एक झुग्गी में रहता था। बच्चे NRC हिरासत केंद्र में मर रहे हैं।
CJI ने जवाब दिया, " हम CAA, NRC पर विचार नहीं कर रहे हैं। अगर कोई अप्रासंगिक तर्क देता है तो हम रोक देंगे। यह अदालत है, हमारे पास मातृत्व के लिए सर्वोच्च सम्मान है। बच्चे की मृत्यु पर यह विशेष समस्या खड़ी हुई है।"
दरअसल इस हफ्ते की शुरुआत में 12 साल की ज़ेन गुणरत्न सदावर्ते, जिसने ICCW राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार 2019 जीता था, ने 4 महीने के मोहम्मद जहान की मौत के बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे को लिखा था, जो अपने माता-पिता के साथ दिल्ली के शाहीन बाग में CAA विरोधी आंदोलन में शामिल था।
अपनी शिकायत में, सातवीं कक्षा की छात्रा ने अदालत से आग्रह किया है कि वो बच्चों और शिशुओं को विरोध- प्रदर्शन और आंदोलन में भाग लेने से रोकने के लिए दिशा-निर्देश तैयार करें और पुलिस और उपयुक्त अधिकारियों को इस मौत की जांच करने का निर्देश दे।
पत्र में कहा गया है कि ऐसे प्रदर्शनों के लिए बच्चों को लाना अत्याचार और क्रूर है, खासकर नए जन्में शिशुओं के लिए जो अपने दर्द को व्यक्त नहीं कर सकते हैं और प्रतिकूल मौसम की स्थिति की अनदेखी करके ऐसा करना जारी रखता है जो आगे बच्चे के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है जो बाल अधिकारों और प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है।
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए शिकायत में बताया गया है कि कैसे 4 महीने का शिशु अपनी मां के साथ हर रोज विरोध प्रदर्शन के लिए जाता था और 30 जनवरी को सुबह 1 बजे घर लौटा था और उसकी मां के अनुसार, नींद में गंभीर ठंड के कारण सुबह उसकी मौत हो गई।
ये मौत "बाहरी प्रदर्शन में सर्दियों की ठंड के संपर्क में आने के कारण हुई, जहां वह उसे ले जाती थी।" शिकायत के आरोप में माता-पिता और आयोजक बच्चे के अधिकारों की रक्षा करने में विफल रहे जिसके कारण मोहम्मद जहान की जान चली गई।
यह भी बताया गया है कि उपरोक्त रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बच्चे को अलशिफा अस्पताल पहुंचने पर मृत घोषित कर दिया गया था। ऐसे मामले में, दंड प्रक्रिया संहिता के अनुसार कानून की प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए लेकिन मृत्यु प्रमाण पत्र मृत्यु के किसी विशेष कारण को नोट करने में विफल रहा है।
"मेडिको लीगल केस के साथ पोस्टमार्टम सहित पूरी तरह से चिकित्सा जांच से गुजरना अनिवार्य था, " यह शिकायत करते हुए कहा गया है कि अदालत इस केस से संबंधित रिकॉर्ड और उसी की कार्यवाही को तलब करे।