आईपीसी 376R/w 511 : भले ही आरोपी ने खुद के कपड़े न उतारे हों, बलात्कार के प्रयास का अपराध तब भी माना जाएगा : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2019-11-21 03:15 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने एक महिला के बलात्कार के प्रयास के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 376, धारा 511 के साथ पढ़ें, के तहत एक आरोपी को दोषी ठहराया।

अपील में अभियुक्त की ओर से यह दलील दी गई कि, क्योंकि उसने कोई स्पष्ट कृत्य जैसा कोई काम नहीं किया था, कथित कृत्य (बलात्कार) करने के लिए खुद कपड़े उतारने का भी कोई प्रयास नहीं किया था, इसलिए उसका कृत्य आईपीसी की धारा 511 धारा 376 के साथ पढ़ें, के तहत अपराध का गठन नहीं करता।

इस मामले [चैतू लाल बनाम उत्तराखंड राज्य] में यह साबित हो गया था कि आरोपी ने पीड़िता पर हमला किया था और उस पर बैठ गया और उसका पेटीकोट उतारने की कोशिश की। महिला ने इसका विरोध किया और वह रोने लगी। इस घटना का साक्षी एक पड़ोसी था और जब वह हंगामा सुनकर मौके पर पहुंचा तो आरोपी भाग चुका था। उच्च न्यायालय ने बलात्कार के प्रयास के लिए ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई सजा को बरकरार रखा था।

बचाव पक्ष की दलील

आरोपी की ओर से तारकेश्वर साहू बनाम बिहार राज्य (अब झारखंड) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया गया। यह एक ऐसा मामला था जिसमें अदालत ने अभियुक्त को इस आधार पर बरी कर दिया कि उसने मामूली डिग्री तक भी पेनिट्रेशन का कोई प्रयास नहीं किया था। यह देखा गया कि, अभियुक्त ने न तो खुद के कपड़े उतारे और न ही शिकायतकर्ता को ऐसा करने को कहा, इसलिए पेनिट्रेशन का कोई सवाल ही नहीं था।

न्यायमूर्ति एनवी रमना और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा कि जब आरोपी आवश्यक इरादे से कार्य करना शुरू करता है, तो अपराध का प्रयास शुरू होता है। पीठ ने कहा,

"लेकिन, वर्तमान मामले के तथ्यों और परिस्थितियों की पृष्ठभूमि में पूर्वोक्त निर्णय के सावधानीपूर्वक उल्लंघन पर, दोनों मामले अलग-अलग हैं, जैसा कि ऊपर उल्लेखित मामले में है, यह स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि अभियुक्त अपराध के कमीशन की तैयारी के चरण में विफल रहा है । जबकि, वर्तमान मामले में, हमारे सामने अलग तथ्य यह है कि अभियुक्त शिकायतकर्ता-पीड़ित के घर में शराब पीकर जबरन घुसा और उसके बार-बार प्रतिरोध के बावजूद उसका पेटीकोट खोलने के लिए आपराधिक बल का उपयोग किया। "

अदालत ने आरोपी को दोषी करार देते हुए कहा कि अगर पड़ोसी का हस्तक्षेप नहीं होता, तो आरोपी अपने आपराधिक कृत्य को अंजाम देने में सफल हो जाता। वर्तमान मामले में अभियुक्त का आचरण उक्त अपराध करने के उसके निश्चित इरादे का द्योतक है। 

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