असहमत ऋणदाता के साथ भेदभाव न किये जाने के एनसीएलएटी के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने किया निरस्त

Update: 2019-11-17 04:45 GMT

उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के उस आदेश को शुक्रवार को निरस्त कर दिया, जिसमें उसने व्यवस्था दी थी कि असंतुष्ट वित्तीय ऋणदाताओं के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता ।

न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति रवीन्द्र भट की पीठ ने रावे स्कैन प्राइवेट लिमिटेड की दिवालिया प्रक्रिया समाधान आवेदन से संबंधित राहुल जैन की अपील मंजूर कर ली।

अपीलकर्ता असंतुष्ट वित्तीय ऋणदाता हीरो फिनकॉर्प के दावे को बढ़ाने संबंधी स्वीकृत समाधान योजना में संशोधन के एनसीएएलटी के निर्देश से असंतुष्ट थे।

हीरो फिनकॉर्प को इसके प्रविष्ट दावे का 32.34 प्रतिशत दिया गया था, जबकि अन्य वित्तीय ऋणदाताओं- टाटा कैपिटल फाइनेंस सर्विसेज को प्रविष्ट दावे का 75.73 फीसदी और इंडियन ओवरसिज बैंक, बैंक ऑफ बड़ोदा तथा पंजाब नेशनल बैंक जैसे ऋणदाताओं को 45 प्रतिशत उपलब्ध कराया गया था।

समाधान आवेदक ने दलील दी थी कि यह मामला 2018 में संबंधित संशोधन से पहले से लंबित था, इसलिए इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया (इन्सॉल्वेंसी रेजोलुशन प्रॉसेस फॉर कॉरपोरेट पर्सन्स) रेग्यूलेशन 2016 के संशोधन नियम 38(सी) के अनुसार, असंतुष्ट वित्तीय ऋणदाता को केवल लिक्विडेशन वैल्यू यानी परिसमापन मूल्य ही दिये जाने की जरूरत है। दिवालिया हुई कंपनी का परिसमापन मूल्य 36 करोड़ रुपये था। जिसके एवज में हीरो फिनकॉर्प को समाधान योजना के तहत 54 हजार करोड़ मंजूर किये गये। इसलिए, समाधान आवेदनकर्ता ने दलील दी की कि योजना ठीक थी।

एनसीएलएटी ने निष्कर्ष निकाला था कि वह पहले के एक मामले में भेदभाव के आधार पर नियम 38(सी) को गैर-कानूनी ठहरा चुका है। साथ ही, नियम 38 पांच अक्टूबर 2018 से संशोधित हो चुका था, जिसके तहत उस पुराने प्रावधान को हटा दिया गया था कि असंतुष्ट ऋणदाता को केवल लिक्विडेशन वैल्यू ही मंजूर किये जाने की आवश्यकता है। एनसीएलटी ने पांच अक्टूबर को आदेश सुनाया था, इसके बाद अपीलीय न्यायाधिकरण एनसीएलएटी ने व्यवस्था दी कि एनसीएलटी को संशोधित नियम 38 पर विचार करना चाहिए था।

एनसीएलएटी ने समाधान आवेदक को हीरो फिनकॉर्प के दावे के 45 प्रतिशत का भुगतान करने का आदेश देते हुए कहा, "नियम 38 के तहत असंतुष्ट मत का आधार बनाकर वित्तीय ऋणदाताओं के बीच भेदभाव नहीं किया जा सकता। इसलिए सफल समाधान आवेदक निरस्त हो चुके पुराने नियम 38(ए)(सी) का लाभ नहीं ले सकता।"

इस आदेश को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि एनसीएलएटी को संशोधित नियम 38 का इस्तेमाल जनवरी 2017 में शुरू की गयी दिवाला प्रक्रिया पर नहीं करना चाहिए था।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

"दिवाला शोधन प्रक्रिया संशोधित नियम के अमल में आने से बहुत पहले (जनवरी 2017 में ही) शुरू हो चुकी थी और समाशोधन योजना पहले ही तैयार और मंजूर भी हो चुकी थी। ऐसी स्थिति में एनसीएलएटी द्वारा अन्य वित्तीय ऋणदारों के समान ही हीरो को भी बराबर भुगतान करने का अपीलकर्ता को आदेश देना न्यायोचित नहीं था।"

कोर्ट ने महसूस किया कि दिवाला शोधन प्रक्रिया में गयी कंपनी का परिसमापन मूल्य 36 करोड़ निर्धारित किया गया था। इसके एवज में अपीलकर्ता ने 54 करोड़ रुपये का प्रस्ताव दिया था। योजना मंजूर हो गयी थी और केवल असंतुष्ट क्रेडिटर (हीरो) की आपत्तियों के बावजूद योजना को अंतिम रूप दिया जा चुका था।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

"इन तथ्यों और परिस्थितियों के मद्देनजर यह व्यवस्था दी जाती है एनसीएलएटी का आदेश और दिशानिर्देश न्यायोचित नहीं था। इसलिए इसे निरस्त किया जाता है एनसीएलटी का आदेश बहाल किया जाता है।" 

आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहांं क्लिक करेंं



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