सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेसी नेता के खिलाफ कई राज्यों में दर्ज FIR रद्द करने से इनकार किया, धार्मिक भावनाएंं आहत करने का है आरोप
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को हरियाणा के कांग्रेसी नेता पंकज पूनिया की उस याचिका को खारिज कर दिया है,जिसमें उन्होंने उनके खिलाफ कई राज्यों में दर्ज FIR (प्राथमिकी ) रद्द करने की मांग की थी।
ट्विटर पर एक पोस्ट के माध्यम से धार्मिक भावनाओं को आहत करने के मामले में दर्ज प्राथमिकी के आधार पर 21 मई को पूनिया को हरियाणा पुलिस ने गिरफ्तार किया था। इसी ट्वीट के आधार पर उनके खिलाफ उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी केस दर्ज किए गए हैं। पूनिया ने इन सभी एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी।
पूनिया की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े की दलीलें सुनने के बाद तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने इस रिट याचिका को खारिज कर दिया।
पीठ ने कहा कि
''हम भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर इस याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं हैं।''
जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस अब्दुल नजीर और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की पीठ ने हालांकि याचिकाकर्ता को यह छूट दी है कि वह संबंधित हाईकोर्ट/ उचित फोरम का दरवाजा खटखटाने के लिए स्वतंत्रत है।
हरियाणा के करनाल के रहने वाले एक विवेक लांबा की शिकायत पर मधुबन पुलिस स्टेशन में आईपीसी की धारा 153ए, 295-ए, 505 (2) व आईटी एक्ट की धारा 67 के तहत केस दर्ज किया गया था। पूनिया ने 19 मई की शाम को यह ट्वीट किया था।
शीर्ष अदालत के समक्ष अपनी रिट याचिका में पूनिया ने तर्क दिया था कि
"जांच एजेंसियों के बीच कार्रवाई के एक ही कारण पर कई एफआईआर दर्ज करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, जिससे जांच लंबित होने के नाम पर राज्य को लंबे समय तक एक नागरिक को हिरासत में रखने की अनुमति मिल जाती है।"
यह भी दलील दी गई कि चूंकि ये एफआईआर विभिन्न राज्यों में दर्ज की गई हैं, इसलिए आरोपी के लिए यह संभव नहीं है कि देश भर में अलग-अलग जांच एजेंसियों और न्यायालयों के समक्ष पेश हो। इस प्रथा से देश में लोकतंत्र, निष्पक्ष प्रक्रिया और स्वतंत्र भाषण पर हानिकारक प्रभाव पड़ रहे हैं।
याचिका में कहा गया कि हरियाणा पुलिस (पीएस मधुबन, करनाल में) द्वारा दर्ज की गई एफआईआर में जांच शुरू हो गई है। याचिकाकर्ता को 21 मई 2020 को गिरफ्तार किया गया था, जिस मोबाइल फोन से यह ट्वीट किया गया था, उसे पुलिस ने बरामद कर लिया है। इसके बाद याचिकाकर्ता को 22 मई 2020 को 14 दिन की न्यायिक हिरासत के तहत जेल भेज दिया गया था।
याचिका में मांग की गई थी कि
"उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में दर्ज एफआईआर में अभी जांच अभी शुरू नहीं हुई है, इसलिए याचिकाकर्ता आग्रह करता है कि इन एफआईआर को रद्द कर दिया जाए।"
यह भी दलील दी गई कि पूनिया के साथ ठीक वैसा ही किया गया है, जैसा रिपब्लिक टीवी के संपादक अर्नब गोस्वामी के साथ हुआ था और उसके मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 19 मई को अपना फैसला सुनाया था। मामले में समान तथ्य इस प्रकार हैं-
ए- याचिकाकर्ता के खिलाफ विभिन्न राज्यों में कई एफआईआर दर्ज की गई हैं, जो सभी एक ही ट्वीट से संबंधित हैं।
बी- एफआईआर विवादास्पद और गैरकानूनी है और याचिकाकर्ता के राजनीतिक विरोधियों ने उसकी राजनीतिक आवाज को दबाने के मकसद से यह प्राथमिकी दर्ज करवाई हैं।
याचिका में यह भी बताया गया कि देश भर में लाखों मजदूर देशव्यापी बंद के मद्देनजर फंसे हुए हैं। इन श्रमिकों की पीड़ा को कम करने और इनको वापस घर भेजने के लिए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव ने 1000 बसें प्रदान करने की पेशकश की थी। इस प्रस्ताव को शुरू में उत्तर प्रदेश सरकार ने स्वीकार किया था। हालाँकि राज्य सरकार ने बाद में कई प्रकार की शर्तें लगा दी, जिस कारण यह बसें श्रमिकों को उपलब्ध नहीं कराई जा सकीं।
19 मई 2020 को याचिकाकर्ता ने अपने ट्विटर अकाउंट का उपयोग करते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की आलोचना करते हुए एक ट्वीट किया था। उक्त ट्वीट में दो घटनाओं का संदर्भ भी दिया गया था-
1- एक मृत मुस्लिम महिला को कब्र से बाहर निकालकर उससे ब्लात्कार करने के मामले का जिक्र एक भाषण में किया गया था। उक्त भाषण 2007 में उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री श्री अजय मोहन बिष्ट (योगी आदित्यनाथ) द्वारा स्थापित संगठन हिंदू युवावाहिनी द्वारा आयोजित एक रैली के दौरान किया गया था। जब यह भाषण दिया गया,उस समय श्री बिष्ट मंच पर मौजूद थे। इस घटना की रिपोर्ट राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में की गई थी।
2- नई दिल्ली के गार्गी कॉलेज में फरवरी, 2020 में हुई एक घटना, जहां शराबी पुरुषों ने कथित तौर पर जय श्री राम के नारे लगाते हुए महिला छात्राओं के साथ छेड़छाड़ की थी और उनका उत्पीड़न किया था। यह घटना भी मीडिया में काफी चर्चित हुई थी।
हालांकि इन ट्वीट को ऊपर उल्लिखित घटनाओं के संदर्भ में रखा गया था, फिर भी याचिकाकर्ता ने अगली सुबह इन्हें हटाने के निर्णय लिया था।
उन्होंने एक स्पष्टीकरण देते हुए कहा था कि यह ट्वीट गार्गी कॉलेज में हुई घटना के संदर्भ में किया गया था। याचिकाकर्ता ने इस पोस्ट पर खेद भी व्यक्त किया था और कहा था कि अगर किसी की भावना आहत हुई है तो वह उनसे माफी मांगता है।
इस ट्वीट को हटाए जाने के बावजूद भी कई ट्विटर यूजर ने इस ट्वीट के स्क्रीनशॉट साझा किए और इसे सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की। याचिकाकर्ता को उनके फोन और सोशल मीडिया पर जान से मारने की कई धमकी भी मिली।
याचिकाकर्ता को मिली दर्जन भर धमकियों के बाद उन्होंने मजबूरी में पुलिस अधीक्षक, करनाल को पत्र लिखा ओर पुलिस सुरक्षा मुहैया कराने का अनुरोध किया। उन्होंने यह भी अनुरोध किया कि उनके खिलाफ दायर सभी प्राथमिकी को करनाल में दर्ज प्राथमिकी के साथ सम्मिलित कर लिया जाए और यहीं पर जांच कर ली जाए।
याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि वह करनाल में जांच में शामिल होने और सहयोग करने के लिए पूरी तरह इच्छुक है। याचिकाकर्ता को 21 मई 2020 को उसका मोबाइल फोन जब्त करने के उद्देश्य से हरियाणा पुलिस की हिरासत में भेज दिया गया था। यहां यह उल्लेख करना भी जरूरी है कि याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी के तुरंत बाद सोशल मीडिया पर ऐसे कई पोस्ट आए ,जिनमें कहा गया था कि याचिकाकर्ता को ''बेहतर इलाज'' के लिए यूपी पुलिस को सौंप दिया जाएगा।
याचिकाकर्ता को 22 मई 2020 को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। जमानत के लिए उनकी अर्जी को एसीजेएम, करनाल ने 23 मई 2020 को खारिज कर दिया था। यह भी बताया गया है कि एसीजेएम के समक्ष सुनवाई के दौरान, उत्तर प्रदेश पुलिस पेश हुई थी, जिसके पास सीजेएम, नोएडा की तरफ से जारी किए गए पेशी वारंट भी थे।
उन्होंने मांग की थी कि याचिकाकर्ता को वहां की कोर्ट के समक्ष पेश करना है। यह वारंट उत्तर प्रदेश के नोएडा में दर्ज एफआईआर के संबंध में जारी किए गए थे। हालांकि उस दिन इन वारंट पर कोई निर्णय नहीं लिया गया था।
यह भी बताया गया कि याचिकाकर्ता के ट्वीट का उद्देश्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक विचारधारा का अनुसरण करने वाले व्यक्तियों की आलोचना करना था। इस मामले में जिन प्रावधानों के तहत एफआईआर की गई हैं,उनके तहत कोई मामला नहीं बनता है।
वास्तव में हरियाणा राज्य ने भी याचिकाकर्ता की जमानत अर्जी का विरोध करते हुए कहा था कि याचिकाकर्ता का ट्वीट कांग्रेस पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ताओं के बीच दुश्मनी और नफरत पैदा करने के लिए पर्याप्त था।
याचिकाकर्ता की तरफ से कहा गया कि '' हरियाणा सरकार की इन दलीलों से भी स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए, धारा 295-ए और धारा 505 (2) के तहत अपराध नहीं बनाता है।''
एफआईआर के तथ्य या सामग्री
जैसा कि हरियाणा पुलिस की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध है। 20 मई को दर्ज की गई एफआईआर में लिखा है कि "जब राष्ट्र COVID 19 के खतरे से जूझ रहा है तो कुछ असंतुष्ट तत्व अपने निहित स्वार्थ के लिए जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण तरीके से हिंदुओं की धार्मिक भावनाएं और उनके विश्वास का अपमान करके उनको भड़काने की कोशिश करने का कारण बन रहे हैं।''
पूनिया द्वारा उनके ट्विटर हैंडल पर की गई पोस्ट की तरफ इंगित करते हुए यह भी आरोप लगाया गया है कि उन्होंने ''धर्म के आधार पर समाज के वर्गों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के लिए''गलत तरीके से भड़काऊ पोस्ट किया है। उनकी यह पोस्ट सद्भाव को बनाए रखने के लिए पूर्वाग्रह से ग्रस्त है, जो न केवल भड़काऊ हैं बल्कि जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण रूप से हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाली है। जैसा कि पंकज पूनिया चाहते हैं और उन्होंने सब कुछ जानते हुए भी यह शब्द लिखकर हिंदू धर्म और हिंदुओं के धार्मिक विश्वासों का अपमान किया है।''