सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में पाबंदियों के खिलाफ याचिकाओं को भी संविधान पीठ को भेजा
CJI रंजन गोगोई, जस्टिस एस. ए. बोबडे और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर की पीठ ने सोमवार को जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट व संचार माध्यमों को बंद करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं को संविधान पीठ के पास भेज दिया है।
संदर्भित मामलों में कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन की मीडिया पर पाबंदी वाली याचिका और डॉ. समीर कौल द्वारा इंटरनेट और मोबाइल कनेक्शन बंद करने के खिलाफ याचिकाएं शामिल हैं।
कश्मीर में बच्चों की कथित अवैध हिरासत से जुड़ी याचिका भी संविधान पीठ को संदर्भित
पीठ ने जम्मू और कश्मीर में बच्चों की कथित अवैध हिरासत के खिलाफ राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग (NCPCR) की पहली अध्यक्षा प्रोफ़ेसर शांता सिन्हा और प्रबुद्ध बाल अधिकार विशेषज्ञ एनाक्षी गांगुली द्वारा दायर जनहित याचिका को भी संविधान पीठ को सौंप दिया है। CJI गोगोई ने कहा कि आरोपों के संबंध में जम्मू-कश्मीर किशोर न्याय समिति की रिपोर्ट मिल गई है।
सीताराम येचुरी एवं गुलाम नबी आजाद समेत अन्य की याचिकाएं भी संविधान पीठ को सन्दर्भित
माकपा महासचिव सीताराम येचुरी द्वारा दायर हैबियस कॉरपस याचिका भी संविधान पीठ को संदर्भित की गई है। साथ ही कांग्रेस सांसद गुलाम नबी आजाद समेत अन्य याचिकाओं को भी संविधान पीठ को भेज दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने गठित की है संविधान पीठ
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस एन. वी. रमना, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी, जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस सूर्यकांत की संविधान पीठ गठित की है जो अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा हटाने के राष्ट्रपति के आदेशों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। ये पीठ 1 अक्टूबर से सुनवाई शुरू करेगी।
गौरतलब है कि बीते 28 अगस्त को CJI गोगोई, जस्टिस बोबडे और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर की पीठ ने राष्ट्रपति के आदेशों को चुनौती देने वाली 15 याचिकाओं को संविधान पीठ को भेज दिया था।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अन्य याचिकाकर्ता
इनमें नेशनल कांफ्रेंस के नेता मोहम्मद अकबर लोन और हसनैन मसूदी (जो जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश हैं), पूर्व IAS अधिकारी और जम्मू-कश्मीर के राजनेता शाह फैसल, एक्टिविस्ट शेहला राशिद, कश्मीरी वकील शाकिर शबीर, वकील एम. एल. शर्मा समेत कुछ अन्य याचिकाकर्ता शामिल हैं।
कुछ याचिकाओं में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती दी गई है, जिसके अंतर्गत राज्य को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया है।