ब्लड बैंक और संशोधित एनबीटीसी दिशानिर्देशों के विनियमन की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस

Update: 2020-02-04 05:29 GMT

न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन और न्यायमूर्ति एस रविंद्र भट की खंडपीठ ने देश में ब्लड बैंकों और रक्त भंडारण इकाइयों को मज़बूत बनाने और इनको विनियमित करने से संबंधित जनहित याचिका (पीआईएल) पर नोटिस जारी किया है।

यह याचिका एसोसिएशन ऑफ रुरल सर्जन्स ऑफ़ इंडिया, जन स्वास्थ्य सहयोग शहीद हॉस्पिटल ने दायर किया है। याचिका में श्रेणी A, B और C के तहत वरीयता वाले जिलों में ब्लड बैंकों के विनियमन का आदेश देने की मांग की गई है। श्रेणियों का यह वर्गीकरण नेशनल एड्ज़ कंट्रोल प्रोग्राम- III ने नेशनल एड्ज़ कंट्रोल ऑर्गनायज़ेशन के तहत किया है।

इसमें कहा गया है कि भारत में रक्त प्रसंस्करण उपकरणों की क़ीमतें अनियंत्रित हैं और इनको औषधि मूल्य नियंत्रण आदेश के माध्यम से विनियमित किए जाने की ज़रूरत है।

याचिकाकर्ता ने कहा है कि सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में ब्लड ट्रैन्स्फ़्यूज़न सेवाएं देने में विफल रही हैं जबकि इन क्षेत्रों में बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध हैं। यह कहा गया कि कई बड़े अस्पतालों और नर्सिंग होम्स के पास अपना ब्लड बैंक नहीं है जिसकी वजह से निजी ब्लड बैंकों की भरमार हो गई है और इनमें से कई पंजीकृत नहीं होते।

याचिका में कहा गया है कि देश में पंजीकृत और लाइसेन्सधारी ब्लड बैंकों की संख्या काफ़ी कम है - प्रति 10 लाख जनसंख्या पर तीन से भी कम ब्लड बैंक हैं।

यह कहा गया कि राष्ट्रीय ब्लड ट्रैन्स्फ़्यूज़न काउन्सिल (एनबीटीसी) ने 2007 में जो दिशानिर्देश जारी किया उसके तहत सभी प्रथम रेफ़रल इकाइयों (बीएसयू) में ब्लड स्टोरेज यूनिट्स स्थापित किए जाने की ज़रूरत है, ताकि रक्त की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके। लेकिन सिर्फ़ कुछ ही एफआरयू में इसके लिए बुनियादी सुविधा उपलब्ध है और इनमें से भी कुछ ही हैं जो काम कर रही हैं और इनके कार्य के स्तर को इसी बात से आँका जा सकता है कि कई ने एक साल में 100 यूनिट रक्त भी उपलब्ध नहीं कराए हैं।

इसलिए याचिकाकर्ता ने राष्ट्रीय रक्त नीति और एनबीटीसी दिशानिर्देशों के तहत सभी ज़िला अस्पतालों में ब्लड बैंक स्थापित किए जाने का निर्देश देने की मांग की है। याचिका में सभी राज्यों के प्रभागीय मुख्यालयों, अधिकांशतः सरकारी मेडिकल कॉलेजों में क्षेत्रीय रक्त बैंक खोले जाने का निर्देश दिए जाने की माँग की गई है ताकि ये ये ज़िला अस्पतालों के ब्लड बैंकों और बीएसयू में रक्त की आपूर्ति सुनिश्चित कर सकें।

याचिकाकर्ता ने कहा कि ट्रैन्स्फ़्यूज़न मेडिसिन के क्षेत्र में प्रशिक्षित लोगों का अभाव लगभग 80-85% है और सरकार के लिए ज़रूरी है कि वह इसको अंतकाल दूर करे ताकि ब्लड बैंक काम कर सकें।

याचिका में यह भी कहा गया है कि भारत में रक्त की उपलब्धता तक पहुँच नहीं होने की वजह से माताओं की मृत्य दर काफ़ी अधिक है। "दुनिया भर में प्रसव के समय 5 लाख से अधिक माताओं की मौत हो जाती है। इनमें से एक-तिहाई मौत भारत में होती है…अगर सरकारी और ग़ैर सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं के नज़दीक 50 किलोमीटर की परिधि में कोई ऐसी सुविधा उपलब्ध होती जो काम कर रही है तो इनमें से लगभग 50 हज़ार की जान बचाई जा सकती है।"

याचिका के अनुसार,

"भारत में कम से कम 81 जिले ऐसे हैं जहाँ न तो कोई कार्यरत रक्त बैंक है और न ही बीएसयू…रक्त के अभाव के कारण बेवजह मरीज़ों को दूसरी जगह भेजा जाता है जिसकी वजह से बीमारों की हालत और ख़राब हो जाती है और इन जवान महिलाओं की मौत हो जाती है।"

याचिका में कहा गया है कि 2020 तक रक्त देकर रक्त लेने की बात को पूरी तरह समाप्त किए जाने की बात कही गई है पर यह अभी भी चल रहा है और यहाँ तक कि आपातकालीन स्थिति में जहाँ कोई ख़ून देने वाला उपलब्ध नहीं होता, यह शर्त लगाई जाती है।

याचिकाकर्ता की पैरवी वरिष्ठ वक़ील कॉलिन गान्साल्वेज़, एओआर सत्य मित्र और स्नेह मुखर्जी ने की।  

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