मानसिक रूप से बीमार लोगों के उपचार के लिए चिकित्सा बीमा उपलब्ध करवाने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया
SC Issues Notice On Plea To Direct Insurers To Provide Medical Insurance For Mental Illness Treatment
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र और बीमा नियामक विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) को नोटिस जारी किया है। इस याचिका में मांग की गई है कि मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 2017 (एमएचसी) की धारा 21 (4) उल्लंघन के संबंध में निर्देश जारी किए जाएं क्योंकि यह धारा बीमाकर्ता को मानसिक बीमारी के उपचार के लिए चिकित्सा बीमा प्रदान करने के लिए बाध्य करती है।
जस्टिस रोहिंटन एफ नरीमन, जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और आईआरडीएआई को नोटिस जारी किया।
एमएचसी अधिनियम की धारा 21 (4) में कहा गया है कि प्रत्येक बीमाकर्ता उसी आधार पर मानसिक बीमारी के इलाज के लिए चिकित्सा बीमा का प्रावधान करने के लिए बाध्य है, जो शारीरिक बीमारी के इलाज के लिए उपलब्ध है।
अधिवक्ता गौरव कुमार बंसल की तरफ से यह याचिका दायर की गई है, जिसमें कहा गया है कि आईआरडीएआई द्वारा बनाए गए वैधानिक प्रावधान और जारी किए गए एक पत्र में सभी बीमा कंपनियों को धारा 21 (4) का अनुपालन करने का निर्देश दिया गया है। उसके बावजूद भी आईआरडीएआई ने यह नहीं देखा कि इनका अनुपालन हो रहा है या नहीं। न ही इनका उल्लंघन करने बीमा कंपनियों के खिलाफ कोई कार्रवाई की गई है।
याचिका में कहा गया है कि यह भारत सरकार द्वारा यूएनसीआरपीडी के अनुसमर्थन का परिणाम है कि धारा 21 (4) को इस अधिनियम में शामिल किया गया है।
''यूएनसीआरपीडी के अनुच्छेद 21 में हेल्थ इंश्योरेंस के प्रावधान दिए गए है और इसके खंड (ई) में कहा गया है कि किसी भी विकलांग व्यक्ति के साथ हेल्थ इंश्योरेंस के साथ-साथ जीवन बीमा के प्रावधानों में भी भेदभाव नहीं किया जाएगा या ऐसे भेदभाव को निषेध किया गया है।''
इस जनहित याचिका में प्रस्तुत किया गया है कि सर्वोच्च न्यायालय उन हजारों लोगों के पुनर्वास के मुद्दे पर लगातार निगरानी कर रहा है जो डिस्चार्ज करने के लिए फिट हैं परंतु अभी विभिन्न अस्पतालों में भर्ती हैं। इस संदर्भ में, आईआरडीएआई की निष्क्रियता ने हजारों लोगों को स्वास्थ्य बीमा योजना का लाभ लेने से वंचित कर दिया है।
''यहां यह उल्लेख करना आवश्यक है कि REHABILITAION टर्म अपने आप में एक व्यापक शब्द है जिसमें चिकित्सा, शारीरिक, व्यावसायिक, संचार और मनोसामाजिक सेवाओं के साथ-साथ रोजमर्रा के कौशल और गतिशीलता में प्रशिक्षण शामिल है।''
याचिकाकर्ता की शिकायत यह है कि आईआरडीएआई बीमा कंपनियों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई करने का इच्छुक नहीं है और उसने बस एक अनौपचारिक रूख अपनाते हुए स्वास्थ्य बीमा योजना में मानसिक बीमारी वाले व्यक्तियों को भी शामिल कर दिया है।
''मेंटल हेल्थकेयर एक्ट, 2017 के प्रावधानों को शामिल न करने के मामले में बीमा कंपनियों पर दंड लगाने की बजाय प्रतिवादी नंबर दो बस अपनी जिम्मेदारियों को दरनिकार कर रहा है।''
इसलिए इस याचिका में मांग की गई है कि एमएचसी अधिनियम की धारा 21 (4) को लागू करने के निर्देश जारी किया जाए और इसको लागू करने के मुद्दे पर एक कार्रवाई रिपोर्ट भी पेश की जानी चाहिए।
दलील के दौरान, याचिकाकर्ता ने व्यक्तिग तौर पर पेश होते हुए पीठ को सूचित किया कि आईआरडीएआई लालफीताशाही रवैया अपना रहा है। यही कारण है कि प्रावधानों का अनुपालन नहीं किया जा रहा है। वहीं इस प्रावधान का अनुपालन न होने के कारण मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों के सामने बहुत कठिनाई आ रही है।
इस प्रकार सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और आईआरडीएआई को नोटिस जारी किया है।
याचिका डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें