कैंपस में जातिगत भेदभाव रोकने को लेकर वेमुला और पायल तड़वी की माता की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को रोहित वेमुला और डॉ. पायल तड़वी की मां द्वारा उच्च शिक्षा संस्थानों में जातिगत भेदभाव को समाप्त करने के उपायों के लिए दायर जनहित याचिका में नोटिस जारी किया है। जस्टिस एन. वी. रमना और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के लिए पेश वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह से कहा कि UGC के जातिगत भेदभाव के खिलाफ नियम पहले से ही लागू हैं तो कोर्ट के आदेशों की क्या जरूरत है।
इस पर इंदिरा जयसिंह ने उत्तर दिया कि ये नियम लागू नहीं होते हैं। UGC द्वारा अनिवार्य इक्विटी आयुक्त, 288 विश्वविद्यालयों में नियुक्त नहीं किए गए हैं। पीठ ने इसके बाद केंद्र सरकार और UGC को नोटिस जारी किया।
"मानदंड और नियमों का अनुपालन न होने से जातिगत भेदभाव की घटनाएं बढ़ी हैं"
याचिका में यह कहा गया है कि एससी, एसटी समुदाय के सदस्यों के खिलाफ जातिगत भेदभाव की घटनाओं का व्यापक प्रसार हो गया है क्योंकि जातिगत रूप से भेदभाव पर आधारित संवैधानिक उदासीनता के साथ-साथ मौजूदा मानदंड और नियमों का अनुपालन नहीं किया जा रहा है।
"मौजूदा मानदंड हैं अपर्याप्त"
इसके अलावा अभी लागू मानदंड अपर्याप्त हैं क्योंकि वे शिक्षकों और छात्र दोनों के खिलाफ परिसर में जाति आधारित भेदभाव को उचित रूप से संबोधित नहीं करते हैं, स्वतंत्र, निष्पक्ष शिकायत निवारण तंत्र प्रदान करने में विफल रहते हैं और कैंपस में जाति के आधार पर भेदभाव को रोकने के लिए सकारात्मक कदम उठाने में विफलता के लिए उच्च शैक्षणिक संस्थानों पर कोई दंडात्मक मंजूरी प्रदान नहीं करते हैं।
याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा है कि नई दिल्ली के इनसाइट फाउंडेशन ने अनूप कुमार की अध्यक्षता में किए गए एक स्वतंत्र अध्ययन में वर्ष 2012 में 19 आत्महत्याओं की सूची तैयार की थी जिनमें दलित-आदिवासी-बहुजन समुदायों के छात्रों ने वर्ष 2007 से 2012 तक देश के विभिन्न उच्च शिक्षण संस्थानों में आत्महत्या की थी।
"राज्य ऐसी घटनाओं को रोकने में रहा है विफ़ल"
यह कहा गया कि, "जातिगत भेदभाव की लगातार घटनाओं से पता चलता है कि राज्य न केवल परिसर में एससी/एसटी/ओबीसी छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने में विफल रहा है, बल्कि इन घटनाओं के अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करने से भी बच रहा है। यह ध्यान दिया गया है कि विश्वविद्यालयों ने जाति-आधारित भेदभाव की घटनाओं के खिलाफ कार्रवाई करने से इनकार कर दिया है या स्वयं वो ऐसे भेदभाव के अपराधी हैं जहां जाति के आधार पर भेदभाव संस्थागत रूप में पला- बढ़ा है।"
"UGC रहा है मौजूदा नियमों को लागू करने में विफल"
आगे यह भी कहा गया है कि यूजीसी ने अपनी जिम्मेदारियों का पालन नहीं किया है। याचिका में कहा गया है कि विश्वविद्यालयों में मौजूदा नियमों को लागू करने में विफल रहने और जाति आधारित भेदभाव का मुकाबला करने के लिए प्रभावी तंत्र विकसित नहीं करने से कई विश्वविद्यालयों में होने वाली घटनाओं पर आंखें मूंद ली जाती हैं।
याचिकाकर्ताओं के अनुसार, "UGC, (उच्च शिक्षा संस्थानों में इक्विटी का संवर्धन) विनियम, 2012' नियम कोई प्रभावी स्वतंत्र मैकेनिज्म प्रदान नहीं करता क्योंकि अपीलीय प्राधिकरण और भेदभाव विरोधी अधिकारी दोनों प्रोफेसर/एसोसिएट प्रोफेसर और संस्थान के प्रमुख होते हैं। इसका उन छात्रों पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है जो यदि प्रशासन के ही खिलाफ शिकायतें करते हैं तो उन्हें इसके दुष्परिणामों का खतरा हो सकता है।"
याचिकाकर्ता की मांग
याचिकाकर्ता ने UGC द्वारा जारी दिनांक 17.12.2012, के यूजीसी, (उच्च शिक्षा संस्थानों में इक्विटी के संवर्धन) नियमों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करने के लिए दिशा- निर्देश की मांग की है। याचिकाकर्ता सभी विश्वविद्यालयों और HEI को ऐसी अन्य मौजूदा भेदभाव-विरोधी आंतरिक शिकायत तंत्रों की तर्ज पर समान अवसर प्रकोष्ठों की स्थापना करने और SC, ST समुदायों से जुड़े लोगों और NGO या सोशल एक्टिविस्ट जैसे स्वतंत्र प्रतिनिधियों को शामिल करने के लिए दिशा-निर्देश चाहते हैं जिससे पूरी प्रक्रिया में निष्पक्षता सुनिश्चित की जा सके।
"छात्रों/कर्मचारियों के उत्पीड़न के खिलाफ हो कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई"
एक अन्य प्रार्थना में वहां सभी विश्वविद्यालयों को छात्रों/कर्मचारियों के उत्पीड़न के खिलाफ कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के दिशा- निर्देश की मांग की गई है, जहां जाति आधारित भेदभाव का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज की जाती हैं।
रोहित वेमुला एवं डॉ. पायल तड़वी की आत्महत्या रही सुर्खियों में
दरअसल दलित समुदाय के अधिकारों के लिए काम करने वाले हैदराबाद विश्वविद्यालय में पीएचडी स्कॉलर रोहित वेमुला अंबेडकर स्टूडेंट्सोसिएशन के सदस्य थे। एबीवीपी द्वारा उन्हें जातिवादी और देशद्रोही बताने वाली एक शिकायत के आधार पर कैंपस निवास से निलंबित कर दिया गया था, जिसके बाद उन्होंने आत्महत्या कर ली थी।
वहीं टीएन टोपीवाला नेशनल मेडिकल कॉलेज की एक आदिवासी छात्र डॉ. पायल तड़वी ने कॉलेज में अपने उच्च जाति के साथियों द्वारा जाति आधारित भेदभाव का शिकार होने के बाद इसी वर्ष 22.05.2019 को आत्महत्या कर ली थी।