उमर अब्दुल्ला की PSA के तहत हिरासत : सारा की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन को नोटिस जारी किया, दो मार्च को सुनवाई

Update: 2020-02-14 09:44 GMT

जम्मू- कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की बहन की पब्लिक सेफ्टी एक्ट ( PSA) के तहत अपने भाई की नजरबंदी के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

शुक्रवार को जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की पीठ ने मामले को दो मार्च के लिए सूचीबद्ध किया है। सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने पीठ ने अनुरोध किया कि ये मामला अवैध हिरासत का है इसलिए अदालत अगले हफ्ते ही केस की सुनवाई करे।

लेकिन जस्टिस मिश्रा ने कहा कि उमर एक साल से हिरासत में हैं और इतनी जल्दी सुनवाई नहीं हो सकती।सिब्बल ने कहा कि यहां सिर्फ PSA को चुनौती दी गई है। शुरुआत में पीठ ने कहा कि क्या इस मामले में कोई याचिका हाईकोर्ट में हैं लेकिन सिब्बल ने कहा कि ऐसी कोई याचिका दाखिल नहीं की गई है।

दरअसल बुधवार को जस्टिस एन वी रमना, जस्टिस मोहन एम शांतनागौदर और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ सुनवाई के लिए बैठी तो जस्टिस शांतनागौदर ने कहा कि था वो इस सुनवाई में नहीं रहेंगे।

याचिका में सारा अब्दुल्ला पायलट ने कहा है कि उनके भाई को अदालत में पेश किया जाए और रिहा किया जाए। याचिका में कहा गया है कि ऐसे व्यक्ति को हिरासत में लेने के लिए कोई सामग्री उपलब्ध नहीं हो सकती है, जो पिछले 6 महीने से हिरासत में है। हिरासत के आदेश के लिए आधारों मे पूरी तरह से किसी भी भौतिक तथ्यों या विवरणों की कमी है जो ऐसे आदेश के लिए जरूरी हैं।

ये भी कहा गया है कि PSA की धारा 8 (3) के प्रावधानों का पूरी तरह से उल्लंघन किया गया है और हिरासत आदेश को सही ठहराने के लिए निर्धारित शर्तों में से कोई भी मौजूद नहीं है और न ही इसका प्रचार किया गया है। इससे संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 22 का घोर उल्लंघन हुआ है।

सारा ने कहा है कि उमर की हिरासत के इसी तरह के आदेश पिछले 7 महीनों में पूरी तरह से यांत्रिक तरीके से जारी किए गए हैं, जो बताता है कि सभी राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को थका देने के लिए लगातार और ठोस प्रयास किया गया है।

याचिका में कहा गया है कि वास्तव में, हिरासत के दौरान अपनी पहली नज़रबंदी के दौरान हिरासत में लिए गए उमर के सभी सार्वजनिक बयानों और संदेशों के संदर्भ से पता चलता है कि वह शांति और सहयोग के लिए अपील करते रहे हैं और ऐसे संदेश जो गांधी के भारत में दूरस्थ रूप से भी सार्वजनिक व्यवस्था को प्रभावित नहीं कर सकते।

साथ ही उमर को वो तथ्य भी नहीं बताए गए जिनके आधार पर हिरासत में लिया गया। ये कदम एक लोकतांत्रिक राजनीति के लिए पूरी तरह से विरोधी है और भारतीय संविधान को कमजोर करता है।

दरअसल उमर अब्दुल्ला 5 अगस्त, 2019 से सीआरपीसी की धारा 107 के तहत हिरासत में थे। इस कानून के तहत उमर अब्दुल्ला की छह महीने की एहतियातन हिरासत अवधि गुरुवार यानी 5 फरवरी 2020 को खत्म होने वाली थी लेकिन 5 जनवरी को सरकार ने जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के खिलाफ पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) लगा दिया है। इसके बाद उनकी हिरासत को 3 महीने से 1 साल तक बिना किसी ट्रायल के बढ़ाया जा सकता है।  

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