केंद्र सरकार द्वारा कोयला खदान की नीलामी के खिलाफ झारखंड सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया

Update: 2020-07-14 16:34 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को झारखंड सरकार की उस याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें केंद्र सरकार द्वारा कोयला खदान की नीलामी की शुरुआत करने के फैसले को चुनौती दी गई है। केंद्र सरकार द्वारा कोयला खदान की नीलामी की शुरुआत करने के बाद झारखंड सरकार ने केंद्र के इस क़दम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

इस याचिका में उस नीलामी प्रक्रिया को चुनौती दी गई है जिसको इसलिए शुरू किया गया है कि देश में औद्योगिक गतिविधियां ज़ोर पकड़ें और उत्पादन बढ़ने से इसकी बाज़ार में क़ीमत में थोड़ी नरमी आए और भारत कोयला उत्पादन में आत्मनिर्भर हो जाए। याकचिका में कहा गया है कि इस क़दम से आदिवासी लोगों को नुक़सान होगा।

सीजेआई एसए बोबडे, जस्टिस एन सुभाष रेड्डी और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने मामले में नोटिस जारी करते हुए कहा कि मामले को सुनने के इच्छुक होने के अलावा, यह पीठ कोयला ब्लॉक की नीलामी के खिलाफ निषेधाज्ञा की याचिका पर सुनवाई करने की भी इच्छुक है।

सीनियर एडवोकेट फली एस नरीमन झारखंड सरकार के लिए पेश हुए और मामले को जल्द लिस्टिंग के लिए कहा।

पीठ ने इस मामले को 4 सप्ताह के बाद आगे विचार के लिए सूचीबद्ध किया।

वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी भी झारखंड सरकार के लिए पेश हुए, जबकि अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता केंद्र के लिए पेश हुए।

अधिवक्ता तपेश कुमार सिंह द्वारा दायर याचिका, उस नीलामी प्रक्रिया को चुनौती देती है जिसे औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया है, जो इस आधार पर आत्मनिर्भर ऊर्जा संसाधनों को लक्षित करके जारी है कि चल रही महामारी वैध बाजार मूल्य को कम कर देगी। याचिका में यह भी कहा गया है कि इससे देसी आदिवासी आबादी नष्ट हो जाएगी और कोयला खनन गतिविधियों का शोषण होगा।

याचिका में कहा गया है कि,

"विशाल आदिवासी जनसंख्या पर सामाजिक और राज्य के विशाल वन क्षेत्रों और यहां रहने वाले लोगों पर पर्यावरण के प्रभाव के आकलन की ज़रूरत है जिन पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका है…COVID-19 के कारण दुनिया में जो निवेश का जो नकारात्मक माहौल है उसको देखते हुए इस विरल प्राकृतिक संपदा के वाणिज्यिक दोहन के बदले अच्छी क़ीमत मिलने की उम्मीद कम है।"

याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि चूंकि खनिज क़ानून (संशोधन) अधिनियम 14 मई 2020 को ख़त्म हो चुका है इसलिए नीलामी की प्रक्रिया क़ानूनी रूप से वैध नहीं कही जा सकती।

याचिका आगे यह भी कहती है कि खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम 1957 की धारा 11(A)(1) के तहत कोयला के खनन के लिए प्रतिस्पर्धी ठेके के लिए ऐसे कंपनियों को आवेदन की अनुमति है जो भारत में कोयले का खनन करती हैं, इस तरह 11 जून को जो अधिसूचना जारी की गई उसके द्वारा वैश्विक भागीदारी और प्रतिस्पर्धा की बात को समाप्त कर दिया गया है।

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