सुप्रीम कोर्ट ने बाल देखभाल संस्थानों और परिवारों में बहाल किए गए बच्चों की शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों को बाल देखभाल संस्थानों (सीसीआई) में और सीसीआई से परिवारों में बहाल किए गए बच्चों की शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए।
जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने एमिकस क्यूरी एडवोकेट गौरव अग्रवाल के सुझाव को स्वीकार करने के बाद बाल सरंक्षण गृहों में कोविड़ की रोकथाम पर संज्ञान मामले में ये निर्देश जारी किए।
निम्नलिखित निर्देश दिए गए हैं:
आज से 30 दिनों की अवधि के भीतर जिला बाल देखभाल सुरक्षा इकाइयों (डीसीपीयू) द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर ऑनलाइन कक्षाओं के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा, किताबें, स्टेशनरी, प्रिंटर और अन्य उपकरण प्रदान करें।
राज्य सरकारें यह सुनिश्चित करेंगी कि विभिन्न सीसीआई में बच्चों को पढ़ाने के लिए आवश्यक संख्या में शिक्षक भी उपलब्ध कराए जाएं।
अगले वर्ष आयोजित होने वाली अंतिम परीक्षाओं की तैयारी में बच्चों की मदद के लिए यदि आवश्यक हो तो अतिरिक्त कक्षाएं भी ली जानी चाहिए।
डीसीपीयू जिला कानूनी सेवा प्राधिकरणों को एक महीने में एक बार, सीसीआई को प्रदान की जाने वाली संरचना में प्रगति और समय-समय पर ऑनलाइन कक्षाओं के कामकाज के बारे में सूचित करेंगे।
डीसीपीयू को उन बच्चों का मूल्यांकन करने के लिए भी निर्देशित किया जाता है, जिन्हें अन्य सांविधिक निकायों की सहायता से माता-पिता / अभिभावकों / पालक घरों में बहाल किया गया है। डीसीपीयू को बच्चों के माता-पिता / अभिभावकों की वित्तीय स्थिति के बारे में पूछताछ करने के लिए निर्देशित किया जाता है और अगर यह पाया जाता है कि माता-पिता / अभिभावकों की वित्तीय कठिनाई को देखते हुए बच्चों को स्कूल नहीं भेजा जा रहा है, तो यह सुनिश्चित करने के लिए राज्य को वित्तीय सहायता देने की सिफारिश करें कि बच्चे स्कूलों में पढें।
डीसीपीयू द्वारा की गई ऐसी सिफारिश पर, राज्य के संबंधित अधिकारियों को निर्देशित किया जाता है कि वे संकट में पड़े बच्चों के माता-पिता / अभिभावकों को प्रति माह 2000 रुपये जारी करें, जिसका उपयोग केवल बच्चों की शिक्षा के उद्देश्य से किया जाएगा।
डीसीपीयू को उन बच्चों की संख्या का पता लगाने के लिए भी निर्देशित किया जाता है जो एक विशेष भौगोलिक इलाके में लॉकडाउन के दौरान परिवारों में बहाल किए गए हैं और 25 बच्चों के समूह के लिए एक मार्गदर्शक / शिक्षक का इंतजाम किया जाए।
यदि दिशा-निर्देशों के संबंध में स्पष्टीकरण की आवश्यकता महसूस की जाती है, तो राज्यों को एमिकस क्यूरी से संपर्क करने की स्वतंत्रता दी गई है।
अदालत ने आदेश में कहा है,
न्यायालय ने बाल देखभाल घरों में बच्चों की शिक्षा के संबंध में तेलंगाना, त्रिपुरा और कर्नाटक राज्यों द्वारा अपनाई गई सर्वोत्तम प्रथाओं का भी उल्लेख किया, जैसा कि एमिकस द्वारा प्रस्तुत किया गया है। आदेश में कहा गया है कि तेलंगाना राज्य सीसीआई में बच्चों के लिए अतिरिक्त कक्षाओं की व्यवस्था कर रहा है। यह भी दर्ज किया गया है कि त्रिपुरा राज्य बच्चों की शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वित्तीय संकट में माता-पिता / अभिभावकों को 2160 रुपये प्रति माह प्रदान कर रहा है। कर्नाटक राज्य एक भौगोलिक इलाके में हर 25 बच्चों के लिए एक गाइड / ट्यूटर प्रदान कर रहा है, जिन्हें लॉकडाउन अवधि के दौरान उनके परिवारों को बहाल किया गया है।
न्यायालय ने आदेश में कहा कि किसी भी राज्य सरकार ने एमिकस द्वारा दिए गए सुझावों पर आपत्ति नहीं जताई।
न्यायालय ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण परिषद को यह भी निर्देश दिया कि वह किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2015 की धारा 109 के तहत दिशा-निर्देशों के कार्यान्वयन की निगरानी करें।
एमिकस ने प्रस्तुत किया कि मार्च 2020 में COVID19 महामारी की शुरुआत से पहले, सीसीआई में 2,27,518 बच्चे थे। लॉकडाउन के दौरान, 1,48,788 बच्चों को उनके परिवारों में बहाल किया गया था। एमिकस ने प्रस्तुत किया कि उन बच्चों के संबंध में जिन्हें उनके परिवारों में बहाल किया गया है, उनकी शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति के बारे में एक अनुवर्ती कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
3 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने COVID19 महामारी के बीच सीसीआई में बच्चों की स्थिति की निगरानी के लिए एक स्वत: संज्ञान केस की शुरुआत की। तब से, शीर्ष अदालत समय-समय पर बाल घरों में भीड़ कम करने और बच्चों के कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न दिशा-निर्देश जारी कर रही है। न्यायालय इस संबंध में केंद्रीय और राज्य एजेंसियों द्वारा धन के उपयोग की निगरानी भी कर रहा है। न्यायालय ने सीसीपी से माता-पिता / अभिभावकों को बच्चों को बहाल करने पर एनसीपीसीआर की प्रतिक्रिया भी मांगी।
1 दिसंबर को, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि किशोर न्याय अधिनियम की धारा 40 (3) के तहत प्रक्रिया के अनुसार माता-पिता / अभिभावकों की क्षमता का पता लगाने के बाद ही बच्चों को वापस बहाल किया जाना चाहिए।