रिट याचिका से संबंधित मामले में आदेश देने वाले अधिकारी को अदालत में बुलाने के हाईकोर्ट की प्रैक्टिस से सुप्रीम कोर्ट ख़ुश नहीं

Update: 2019-12-12 03:45 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने रिट याचिका पर ग़ौर करने के दौरान अधिकारियों को अदालत में बुलाने की हाईकोर्ट के प्रैक्टिस पर नाराज़गी ज़ाहिर की है।

उत्तर प्रदेश बनाम सुदर्शन चटर्जी के इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चिकित्सा शिक्षा और प्रशिक्षण विभाग में प्रधान सचिव को ख़ुद अदालत में हाज़िर होने और यह बताने को कहा था कि रिटायर होने के बाद प्राप्त होनेवाले लाभों के बारे में याचिकाकर्ता के दावे को क्यों रद्द किया गया।

न्यायमूर्ति आर बनुमती और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि सिर्फ़ इस वजह से कि प्रधान सचिव ने यह आदेश दिया था, हमारी राय में हाईकोर्ट का प्रधान सचिव को ख़ुद इस अदालत में हाज़िर होने और अपने आदेश का कारण बताने का आदेश देना ठीक नहीं था।

पीठ ने एनके जानू, सामाजिक वानिकी उप निदेशक, आगरा एवं अन्य बनाम लक्ष्मी चंद्रा मामले में व्यक्त की गई राय का ज़िक्र किया कि सिर्फ़ इस वजह से कि आदेश किसी अधिकारी ने दिया है, इसका मतलब यह नहीं है कि आदेश में उस अधिकारी को बुलाया जाए और अंततः आम जनता को प्रभावित किया जाए।

इस फ़ैसले में कहा गया था :

"अदालत में अधिकारियों को बुलाने से अधिकारी के कार्यकलाप पर असर होता है और अंततः इससे आम जनता प्रभावित होती है, क्योंकि संबंधित अधिकारी अपने काम पर मौजूद नहीं होता। अधिकारियों को अदालत में बुलाने की प्रैक्टिस से न्याय के प्रशासन को मदद नहीं मिलती है क्योंकि कार्यपालिका और न्यायपालिका के कार्यों में पूरा विभाजन है।

अगर कोई आदेश वैध नहीं है तो अदालत के पास इसका पूरा अधिकार होता है कि वह इसे ख़ारिज कर दे और ऐसा आदेश जारी करे जो मामले के तथ्यों के अनुरूप है।" 

आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहांं क्लिक करेंं



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