डॉक्टर कफील खान को मथुरा जेल में हिरासत में रखने के खिलाफ दायर याचिका के जल्दी निपटान करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को निर्देश दिया

Update: 2020-08-11 09:58 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को 29 जनवरी, 2020 से मथुरा जेल में बंद डॉक्टर कफील अहमद खान द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को शीघ्रता से निपटाने का निर्देश दिया है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ता की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर निर्देशों की मांग करने वाली एक अर्जी पर सुनवाई की और उच्च न्यायालय को निर्देश दिया कि वह इस मामले का निपटारा शीघ्रता से करें, अधिमानतः 15 दिनों की अवधि के भीतर।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कोर्ट को बताया कि खान की हिरासत, उन्हें मिली ज़मानत पर काउंटर-ब्लास्ट उपाय के रूप में की गई कार्रवाई है।

"उन्हें एक उचित ज़मानत आदेश द्वारा ज़मानत दी गई थी जिसे चुनौती नहीं दी गई थी और एक काउंटर-ब्लास्ट उपाय के रूप में उन पर एनएसए लगाया गया। इस साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद से कोर्ट ने गुण के आधार पर मामले की सुनवाई नहीं की है।"

मुख्य न्यायाधीश बोबडे ने कहा,

"पर्सनल लिबर्टी ( व्यक्तिगत स्वतंत्रता) एक ऐसी चीज है जिसे हमने हर समय प्राथमिकता दी है।"

सीजेआई ने तदनुसार निर्देश दिया कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता का प्रश्न शामिल होने के बाद उच्च न्यायालय को इस मामले का निपटारा उस समय करना था, जिस तारीख को पक्षकार उसके समक्ष पेश हुआ था।

इसके लिए, जयसिंह ने "वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से" शब्द को जोड़ने का आग्रह किया।

सीजेआई ने जवाब दिया, "उन्हें इसे किसी भी तरह से करने दो। पेश होने का मतलब वीडियो भी है। वह भी पेश होना ही है। अभी, आप हमारे समक्ष पेश हो रहे हो।"

जयसिंह ने कहा, "हां, मी लॉर्ड। इसे एक नियमित पेशी के रूप में गिना जाता है।"

हल्के अंदाज़ में सीजेआई ने टिप्पणी की,

" वर्चुअल सुनवाई नई नहीं है, हमने इसे महाभारत के दिनों से देखा है।"

जवाब में इंदिरा जयसिंह मुस्कुराईं और कहा,

"मुझे इसके बारे में नहीं पता, लेकिन  हां,महामारी के दिनों से, मी लॉर्ड।"

इस पर सीजेआईने टिप्पणी की,

"नहीं, नहीं। हम कह रहे हैं कि इस तरह की उपस्थिति संजय ने की थी।"

खान, जो कि जाने-माने और योग्य बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर हैं, उन्हें 12 दिसंबर, 2019 को एक भाषण दिया था और उस भाषण के आधार पर उनके खिलाफ अलीगढ़ में एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी। 29 जनवरी, 2020 को एक विशेष कार्य बल और उत्तर प्रदेश पुलिस ने खान को मुंबई से गिरफ्तार किया। उन्हें पहले अलीगढ़ जेल में बंद किया गया, और फिर मथुरा जेल में स्थानांतरित कर दिया गया।

10 फरवरी को खान को जमानत दिए जाने के बावजूद, उन्हें रिहा नहीं किया गया था, और 3 दिन बाद उनके खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) 1980 के प्रावधान लागू किए गए।

इसके बाद खान की मां की ओर से एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड फुजैल अहमद अय्यूबी द्वारा एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की गई और एडवोकेट इबाद मुश्ताक द्वारा इसे ड्राफ्ट किया गया, जिसमें कहा गया कि "वर्तमान याचिकाकर्ता के बेटे के खिलाफ राज्य द्वारा की गई हालिया और मनमानी कार्रवाई।"

वर्तमान याचिकाकर्ता के बेटे को किसी भी वैध आधार के बिना 13.02.2020 को जल्दबाजी में आदेश पारित करके राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के प्रावधानों के तहत मनमाने तरीके से हिरासत में लिया गया है। "

यह मामला 18 मार्च, 2020 को सुनवाई के लिए आया था और सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय को निर्देश दिया कि वह इस मामले को दर्ज करे।

हालांकि, COVID-19 महामारी के मद्देनजर लगाए गए लॉकडाउन के कारण, उच्च न्यायालय की रजिस्ट्री से फॉलो अप करना मुश्किल हो गया और, जैसा कि आवेदन में प्रस्तुत किया गया है, याचिकाकर्ता के वकीलों ने रजिस्ट्री से सुप्रीम कोर्ट से प्रसारित मामला पंजीकृत करने का अनुरोध किया।

आवेदन में कहा गया है कि कई प्रयासों के बावजूद, याचिकाकर्ता का मामला अप्रैल के महीने में दर्ज नहीं किया गया और यह 11 मई को दर्ज हुआ।

"इस दौरान, याचिकाकर्ता के बेटे को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के तहत मनमाने ढंगऔर दुर्भावना से पारित एक आदेश के माध्यम से निवारक हिरासत की आड़ में हिरासत में रखा है।"

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