सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र को वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान जब्त नकदी का विवरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। पीठ ने केंद्र पर नाराजगी जाहिर करते हुए बुधवार तक ये स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है और मामले को 9 मई के लिए सूचीबद्ध किया है।
कर्नाटक सरकार की अपील पर आया निर्देश
न्यायमूर्ति एन. वी. रमना और न्यायमूर्ति एम. शांतनगौदर की पीठ ने कर्नाटक सरकार की अपील पर यह निर्देश दिया जिसमें उसने बेल्लारी के व्यवसायी के खिलाफ चुनाव आयोग द्वारा दर्ज मामले को रद्द करने के उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी है।
"बेंच करना चाहती है जांच"
चुनाव के दौरान बेहिसाब नकदी या कीमती वस्तुएं और संदिग्ध वस्तुएं जो आयोग के अधिकारियों द्वारा जब्त की जा रही हैं, वह एक नियमित घटना है। लेकिन एक बार जब्ती हो जाने के बाद क्या होता है - क्या आरोपी पकड़े जाते हैं और मामला सुलझ जाता है? बेंच इस पहलू की जांच करना चाहती है।
चुनाव आयोग ने दिया आंकड़ा
चुनाव आयोग ने अदालत को यह सूचित किया कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान अवैध नकदी व सामान के 4,937 मामले दर्ज किए गए थे।
केंद्र सरकार और चुनाव आयोग के जवाब
पिछली सुनवाई में पीठ ने अपनी नाराजगी व्यक्त की जब न तो चुनाव आयोग और न ही केंद्र ने इस संबंध में पर्याप्त जानकारी अदालत को दी। चुनाव आयोग की ओर पेश वकील अमित शर्मा ने यह दावा किया कि उसका काम पहली सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) के पंजीकरण के साथ समाप्त हो जाता है, जबकि केंद्र ने कहा कि लोकसभा चुनावों के दौरान, वे हाथों-हाथ दृष्टिकोण का पालन करते हैं। इस मामले को बाद में संबंधित राज्य सरकारों द्वारा आगे बढ़ाया जाना चाहिए, जो शायद ही कभी उन अपराधियों को दंडित करने के लिए कोई रुचि रखते हैं जो पार्टी के उम्मीदवार या सत्ता से जुड़े होते हैं।
कर्नाटक सरकार की SC में अपील का क्या है मामला१
बता दें कि यह अपील कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा 12 फरवरी, 2015 को पारित एक आदेश से उत्पन्न हुई, जिसमें वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान बेल्लारी संसदीय क्षेत्र में एक व्यापारी के खिलाफ बेहिसाब संपत्ति के मामले को खारिज किया गया था।
दरअसल चुनाव आयोग के उड़नदस्ते ने कुछ सूचनाओं पर कार्रवाई करते हुए बेल्लारी के एक व्यापारी के घर पर धावा बोल दिया, जहां से दस्ते ने बेहिसाब नकदी और विभिन्न बैंकों के चेक द्वारा 20,48,355 रुपये जब्त किए थे।
उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 171 ई (रिश्वतखोरी) और 188 (लोक सेवक का अवज्ञा आदेश) के तहत मामला दर्ज किया गया था। चुनाव खत्म होने के साथ ही मामला कर्नाटक सरकार को हस्तांतरित हो गया था।
FIR का हवाला देते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में यह नोट किया कि अभियोजन पक्ष यह स्थापित करने में बुरी तरह से विफल रहा कि उसका "रिश्वत" का भुगतान करने का इरादा था क्योंकि पीड़ित या किसी भी प्रभावित लोगों द्वारा कोई शिकायत नहीं की गई थी। यहां तक कि जब्त की गई नकदी भी एफआईआर में उद्धृत आंकड़ों से मेल नहीं खाती। इस आदेश के खिलाफ कर्नाटक सरकार ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है।
पीठ ने केंद्र से पूछा कि दर्ज केसों में क्या हुआ१
मंगलवार को इस मामले पर फिर से शुरू हुई सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने रिकॉर्ड को प्रस्तुत किया जिसमें वर्ष 2014 के चुनावों के दौरान जब्त नकदी को इंगित किया गया था। लेकिन पीठ ने नाराजगी जताई कि इन केसों का क्या हुआ, ये जानकारी सरकार द्वारा नहीं दी गई।
जब वकील ने कहा कि आम चुनावों की घोषणा के बाद केंद्र की व्यावहारिक रूप से ऐसी कोई भूमिका नहीं है तो पीठ ने कहा कि केंद्रीय आयकर विभाग और केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड जैसी सभी एजेंसियां केंद्र की कमान में हैं। उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मामलों को उसके तार्किक अंत तक ले जाया जाए। पीठ ने केंद्र को वर्ष 2014 और 2019 के चुनावों से जुड़ी इस तरह के सभी मामलों की एक सूची पेश करने का निर्देश दिया।