यूएन के विशेष प्रतिनिधि की हस्तक्षेप याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजने पर केंद्र से जवाब मांगा

Update: 2020-01-11 09:30 GMT

रोहिंग्या शरणार्थियों के प्रस्तावित निर्वासन के बारे में एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र से इस मुद्दे पर जवाब मांगा। इस बारे में दायर एक हस्तक्षेप याचिका में यूएन के विशेष प्रतिनिधि ने इसे जातिवादी, जाति आधारित भेदभाव और विदेशियों के प्रति घृणा और इससे संबंधित असहिष्णुता बताया।

देश में सीएए और एनआरसी को लेकर जो देशव्यापी आंदोलन चल रहे हैं, उसे देखते हुए यह और ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हो गया है और यूएन के प्रतिनिधि ने अपने आवेदन में कहा है कि बड़े पैमाने पर रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजने के गृहमंत्रालय के निर्णय की 'अन्तरराष्ट्रीय मानव अधिकार क़ानून के तहत' अनुमति नहीं है। प्रतिनिधि ने इस बात पर जोर दिया कि भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि भारत में रोहिंग्या को भी 'क़ानून के समक्ष समान अधिकार और न्यायिक मदद मिलनी चाहिए।

जल्दी सुनवाई की मांग

याचिका की पैरवी करते हुए एडवोकेट प्रशांत भूषण ने सुझाव दिया कि मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता में पीठ रोहिंग्या मामले पर शीघ्रता से विचार करे। मुख्य न्यायाधीश ने सीएए के ख़िलाफ़ याचिकाओं पर 22 जनवरी को सुनवाई करने की बात कही थी।

वरिष्ठ वक़ील सीयू सिंह ने मामले में हस्तक्षेप याचिका की पैरवी करते हुए कहा कि याचिका रोहिंग्या मुसलमानों के प्रति म्यांमार सरकार के रवैए की ओर ध्यान खींचना चाहती है। यूएन के पास इस बात के काफ़ी व्यापक प्रमाण हैं कि म्यांमार की सरकार ने मानवता के ख़िलाफ़ अपराध किया है।

याचिका में कहा गया कि म्यांमार राज्य ने पिछले दो सालों में 24,000 से अधिक रोहिंग्या की हत्या कर दी है। हालांकि, म्यांमार के ख़िलाफ़ अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय में मामला शुरू होने वाला है, संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि यह अपराध जारी है।

उन्होंने कहा कि भारत ने International Convention on the Elimination of All Forms of Racial Discrimination (ICERD), पर हस्ताक्षर किया है और इस वजह से यह उसकी ज़िम्मेदारी है कि वह जातीय समानता सुनिश्चित करे और इस आधार पर किसी भी तरह का भेदभाव न करे।

भारत का उत्तरदायित्व सिर्फ़ ICERD के प्रति उसकी प्रतिबद्धता की वजह से ही नहीं है बल्कि International Covenant on Civil and Political Rights (ICCPR) के अनुच्छेद 2(1); International Covenant on Economic and Social Rights (ICESCR) के अनुच्छेद 2(2) & 3; Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination Against Women (CEDAW) के अनुच्छेद 2, और Convention on Rights of the Child (CRC) के अनुच्छेद 2(1) के तहत भी उसकी यह ज़िम्मेदारी बनती है।

यह कहा गया कि कुछ अपवादों को छोड़कर राज्य को चाहिए कि वह ग़ैर-नागरिकों को भी नागरिकों के बराबर समान सिविल, राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक अधिकार दे। इन उत्तरदायित्वों को देखते हुए भारत किसी की राष्ट्रीयता के आधार पर उससे रिहाइश, नागरिकता, शरण देने, शरणार्थी की स्थिति और निर्वासन को लेकर भेदभाव नहीं करे।

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