कर्नाटक : अयोग्य विधायकों को राहत, उपचुनाव लड़ सकेंगे, सुप्रीम कोर्ट ने कहा, राजनीतिक नैतिकता को संवैधानिक नैतिकता से बदला नहीं जा सकता

Update: 2019-11-13 07:34 GMT

कर्नाटक में अयोग्य करार दिए गए 17 बागी विधायकों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए स्पीकर के अयोग्य ठहराने के फैसले को बरकरार रखा लेकिन विधानसभा कार्यकाल यानी 2023 तक अयोग्य ठहराने के फैसले को रद्द कर दिया। इसके साथ ही अब ये अयोग्य विधायक पांच दिसंबर को होने वाले उपचुनाव में हिस्सा ले सकते हैं।

जस्टिस एन वी रमना, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने बुधवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि अयोग्यता उस तारीख से संबंधित है जब इस तरह के दलबदल की कार्रवाई होती है। इस्तीफे का स्पीकर के अधिकार क्षेत्र पर कोई असर नहीं पड़ता है।

निष्कर्ष प्रत्येक मामले के अनूठे तथ्यों और परिस्थितियों पर आधारित

पीठ ने कहा

"उपरोक्त सभी मामलों में विशिष्ट समय न देने के आरोपों पर हमारे निष्कर्ष प्रत्येक मामले के अनूठे तथ्यों और परिस्थितियों पर आधारित हैं। इसका मतलब यह नहीं समझा जाना चाहिए कि स्पीकर सुनवाई की अवधि कम कर सकता है। अयोग्यता कार्यवाही का निर्णय लेने से पहले स्पीकर को एक सदस्य को पर्याप्त अवसर देना चाहिए और विधानमंडल के नियमों में निर्धारित समय सीमा का पालन करना चाहिए। यह स्पष्ट है कि स्पीकर के पास दसवीं अनुसूची के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करने की या उस अवधि को इंगित करने की शक्ति नहीं है जिसके लिए कोई व्यक्ति अयोग्य होगा और न ही वो किसी को चुनाव लड़ने से रोक सकता है।"

फैसले में कहा गया कि हमें यह याद रखना चाहिए कि किसी विशेष नियम या कानून की वांछनीयता, किसी भी स्थिति में उसी के अस्तित्व के सवाल के साथ भ्रमित नहीं होनी चाहिए और संविधान की नैतिकता को कभी भी राजनीतिक नैतिकता द्वारा बदला जाना नहीं चाहिए।

पीठ ने कहा,

" अंत में हमें ध्यान देने की आवश्यकता है कि स्पीकर से ,एक तटस्थ व्यक्ति होने के नाते, सदन की कार्यवाही या किसी याचिका की कार्यवाही का संचालन करते हुए स्वतंत्र रूप से कार्य करने की अपेक्षा की जाती है। उसके ऊपर संवैधानिक ज़िम्मेदारी का पालन करने का कर्तव्य है उनका राजनीतिक जुड़ाव पक्षपात के रास्ते में नहीं आ सकता।यदि स्पीकर अपनी राजनीतिक पार्टी से अलग नहीं हो पाता है और तटस्थता और स्वतंत्रता की भावना के विपरीत व्यवहार करता है, तो ऐसा व्यक्ति सार्वजनिक विश्वास और भरोसे के लायक नहीं है।"

पीठ ने कहा चूंकि हम अयोग्यता का फैसला कर रहे हैं, इसलिए इस्तीफे पर विचार करना जरूरत नहीं है। जैसे कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि अयोग्यता का इस्तीफे से कोई लेना-देना नहीं है। पीठ ने याचिकाकर्ताओं के हाईकोर्ट जाने की बजाए सीधे सुप्रीम कोर्ट आने पर नाराजगी जाहिर की है।

यह था मामला

गौरतलब है कि कर्नाटक के 17 अयोग्य विधायकों ने तत्कालीन स्पीकर के रमेश कुमार के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की थी जिसमें उनके इस्तीफे को खारिज कर दिया था और उन्हें 15 वीं कर्नाटक विधानसभा के कार्यकाल के लिए अयोग्य घोषित कर दिया। विधायकों को येदियुरप्पा मंत्रालय में शामिल नहीं किया जा सका क्योंकि उन्हें अयोग्य घोषित किया गया था। विधायकों ने अयोग्य ठहराए जाने को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का स्पष्ट उल्लंघन बताया क्योंकि शीर्ष अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा था कि विश्वास मत के दौरान सदन में उपस्थित होने के लिए बाध्य करने के लिए स्पीकर द्वारा कोई कदम नहीं उठाया जा सकता। उन्होंने अध्यक्ष पर 10 वीं अनुसूची के प्रावधानों को तोड़-मरोड़कर

अयोग्य ठहराने को गलत बताया और यह भी कहा है कि अनिवार्य नोटिस अवधि के बिना निर्णय लिया गया। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि अध्यक्ष ने संविधान की व्याख्या के साथ जानबूझकर छेड़छाड़ की।

अपनी याचिका में बागी विधायकों ने यह भी तर्क दिया कि उनमें से अधिकांश ने पहले ही इस्तीफा दे दिया था और उनके इस्तीफे पर फैसला करने के बजाए स्पीकर ने अवैध रूप से उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया जबकि स्पीकर को पहले इस्तीफों पर फैसला करना चाहिए था।

यह भी तर्क दिया गया कि स्पीकर ने प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन किया है क्योंकि अयोग्यता से पहले कोई सुनवाई नहीं की गई। इन अयोग्य विधायकों ने कहा कि 28 जुलाई को पारित स्पीकर के आदेश "पूरी तरह से अवैध, मनमानी और दुर्भावनापूर्ण" हैं क्योंकि उन्होंने मनमाने ढंग से उनके स्वैच्छिक इस्तीफे को अस्वीकार कर दिया था।

उन्होंने कहा कि उन्होंने 6 जुलाईकोइस्तीफा दे दिया था लेकिन स्पीकर केआर रमेश कुमार ने कांग्रेस पार्टी द्वारा 10 जुलाई को "पूरी तरह से गलत" याचिका के आधार पर उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया।

वहीं तीन JDS सदस्यों - एएच विश्वनाथ, के गोपालैया और केसी नारायगौड़ा ने उन्हें अयोग्य घोषित करने के लिए स्पीकर के आदेश की वैधता पर सवाल उठाते हुए अपनी अलग रिट याचिका दायर की और स्पीकर के आदेश को रद्द करने की मांग की।   

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