भले ही दुर्घटना के पहले वाहन बिक गया हो, दुर्घटना की तारीख पर वाहन का पंजीकृत मालिक मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी : बॉम्बे हाईकोर्ट

Update: 2019-11-28 05:15 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना है कि यदि कोई व्यक्ति जिसने अपनी कार बेची है, लेकिन संबंधित क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय के रिकॉर्ड में पंजीकृत मालिक है, तो वह दुर्घटना के मामले में संबंधित पक्ष को मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी होगा।

न्यायमूर्ति आरडी धानुका ने हुफरीज़ सोनवाला की अपील पर सुनवाई की। हुफरीज़ ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी), मुंबई के फैसले को चुनौती दी, जिसमें 7.4% ब्याज के साथ 1,34,000 रुपये की पूरी मुआवजा राशि का भुगतान करने के लिए उन्हें उत्तरदायी ठहराया गया था।

यह था मामला

अपीलार्थी के अनुसार उसने उक्त वाहन को एक कल्पेश पांचाल को बेच दिया था और आरटीओ के अभिलेखों में उसके नाम से उक्त वाहन को हस्तांतरित करने के लिए पांचाल को सक्षम करने के लिए एक सुपुर्दगी और आवश्यक दस्तावेज के साथ वाहन का कब्जा सौंप दिया था।

8 मार्च, 2008 को पांचाल ने भारत दवे नाम के एक व्यक्ति को वाहन से टक्कर मारी और उसे घायल कर दिया। दवे को अस्पताल में भर्ती कराया गया था और दो सप्ताह तक उसका इलाज किया गया। इसके बाद, दवे ने एमएसीटी, मुंबई में पांचाल और अपीलकर्ता के खिलाफ मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 166 के तहत एक आवेदन दायर किया, जिसमें 'नो फॉल्ट लायबिलिटी' के लिए उक्त अधिनियम की धारा 140 के तहत आवेदन किया गया था। 11 जून, 2009 को एमएसीटी, मुंबई ने दवे को मुआवजे का भुगतान करने के लिए अपीलकर्ता को ज़िम्मेदार ठहराते हुए फैसला सुनाया।

सब्मिशन

अपीलकर्ता के वकील रवि तलरेजा ने कहा कि भले ही अपीलकर्ता द्वारा सभी अपेक्षित दस्तावेजों के साथ डिलीवरी नोट सौंप दिया गया हो, लेकिन खरीदार ने उसके नाम पर उक्त वाहन को हस्तांतरित नहीं करवाया। तलरेजा ने कहा कि दुर्घटना के समय अपीलकर्ता को इस आधार पर क्षतिपूर्ति राशि का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं बनाया जा सकता है कि वह वाहन उसके नाम पर खड़ा था।

दूसरी ओर, एएमके गोखले द्वारा निर्देशित एडवोकेट कृतिका पोकाले प्रतिवादी नंबर 1 भारत दवे की ओर से पेश हुईं। उन्होंने कहा कि उक्त वाहन को 29 दिसंबर, 2008 को पांचाल के नाम पर स्थानांतरित कर दिया गया था और इस प्रकार यह स्पष्ट है कि दुर्घटना की तारीख में वाहन अपीलकर्ता के नाम पर था।

अपीलार्थी द्वारा निर्धारित समय के भीतर उक्त अधिनियम की धारा 50 के तहत उक्त वाहन को हस्तांतरित करने की बाध्यता थी, पोकले ने तर्क दिया। अपनी दलील में उन्होंने नवीन कुमार बनाम विजय कुमार और अन्य के मामले में 6 फरवरी, 2018 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया।

उक्त निर्णय में सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न पूर्व निर्णयों को संदर्भित किया गया है और मोटर वाहन अधिनियम की धारा 2 (30) और धारा 50 की जांच के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि जिस व्यक्ति के नाम पर वाहन दुर्घटना की तारीख पर रजिस्टर्ड था और जिस वाहन का बीमा नहीं किया गया था, वह धारा 2 (30) के अर्थ के भीतर वाहन का मालिक बना रहेगा और क्षतिपूर्ति का भुगतान करने के लिए जिम्मेदार होगा।

कोर्ट का निर्णय :

कोर्ट ने नवीन कुमार (सुप्रा) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लेख किया और कहा कि 14 दिनों के भीतर वाहन के कथित हस्तांतरण की रिपोर्टिंग करना अनिवार्य थी, जिसे करने में अपीलकर्ता करने में विफल रहा-

"मेरे विचार में, माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित सिद्धांत वर्तमान मामले के तथ्यों पर स्पष्ट रूप से लागू होंगे। मैं उक्त निर्णयों से सम्मानजनक रूप से बाध्य हूं। अपीलकर्ता को मोटर वाहन अधिनियम की धारा 50 द्वारा निर्धारित समय के भीतर स्थानांतरण की सूचना नहीं थी और वह दुर्घटना के दिन उक्त वाहन का मालिक बना रहा और इस तरह अपीलकर्ता स्वामित्व की अवधि के दौरान हुई दुर्घटना के मद्देनजर मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी था। "

इस प्रकार, एमएसीटी के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए, न्यायमूर्ति धानुका ने अपील खारिज कर दी-

"मेरे विचार में, ट्रिब्यूनल द्वारा पारित जजमेंट और ऑर्डर किसी भी तरह का हस्तक्षेप नहीं करता है, क्योंकि यह मोटर वाहन अधिनियम के अनुरूप है और कानून के सिद्धांतों का पालन करते हुए, मुझे उक्त निर्णय में कोई दुर्बलता नहीं मिलती।"

आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहांं क्लिक करेंं


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